(मौलवी मुहम्मद मुराद अली साहब प्रोप्राइटर राजपूताना गजट’ अजमेर से वार्तालाप का वृत्तान्तनवम्बर १८७८ ई०)

ट्टट्टमुझे श्री महाराज स्वामी जी जगतारक से पांच बार मिलने का अवसर

प्राप्त हुआ । प्रथम बार सन् १८७८ में जब कि मुंशी अमीचन्द साहब सरदार

भूतपूर्व जुडीशियल असिस्टैण्ट कलक्टर ने प्रशंसनीय महाराज को यहां बुलाया

था, रात को सेठ गजमललूथ की हवेली जो चौका कड़क्का में है, में प्रशंसनीय

महाराज ने उपदेश दिया । उस दिन प्रथम तो लगभग दो बजे दिन को भेंट

हुई थी । चूंकि स्वामी जी महाराज की प्रसिद्धि समस्त देशों में फैल रही

थी और यहां आप प्रथम बार ही पधारे थे इसलिए मैं एक प्रश्नकर्त्ता के रूप

में आपकी सेवा में गया । मेरे साथ एक सेवक और हिन्दू जो दीवान बूटासिंह

के यहां कम्पोजीटर था, गये और बैठते ही महाराज जी से मैंने ये प्रश्न किए?

१. आत्मा क्या वस्तु है ।

२. बहुत से मत शरीर के नष्ट होने के पश्चात् शुभ कर्मों के कारण

मनुष्य का मुक्त होना स्वीकार करते हैं, वास्तव में यह मोक्ष किस वस्तु का

नाम है ?

३. बार—बार जन्म लेने का क्या कारण है ? यदि इस कथन को माना

जाये कि पाप करने से मनुष्य बार—बार जन्म लेने का अधिकारी है तो मेरे

विचार में मनुष्य का स्वभाव यही है कि जब तक ज्ञान प्राप्त न हो वह अवश्य

पाप किया करता है, इस से सिद्ध होता है कि स्वयम् ईश्वर की ही इच्छा

से मनुष्य बार—बार जन्म लेने का अधिकारी ठहरता है। यदि ईश्वर की इच्छा

न हो तो मनुष्य मां के पेट से ही पवित्रता प्राप्त कर ले ऐसा उत्पन्न हो ताकि

पाप न करे ।

४. बुराई या तो शैतान से उत्पन्न हुई या खुदा से या अपनी ही इच्छा

से । यदि अपनी इच्छा से उत्पन्न है तो विदित हुआ है कि ईश्वर के अतिरिक्त

भी कोई कारण बुराई या भलाई का ऐसा है जो स्वयं ही उत्पन्न होने की

शक्ति रखता है । खुदा के बस का नहीं और जो खुदा ही ने इस बुराई को

उत्पन्न किया तो विदित हुआ कि बुराई का आविष्कारक भी परमेश्वर है और

चूंकि उसकी उत्पन्न की हुई कोई वस्तु श्रेष्ठता से रहित नहीं और न निकम्मी

है, इसलिए इस से यह मानना पड़ेगा कि स्वयं खुदा ने मनुष्य के लिए बुराई

उत्पन्न की तो फिर अब बुराई का दण्ड क्यों ?

इन प्रश्नों के उत्तर स्वामी जी महाराज ने कई प्रकार से देर तक दिये।

प्रश्न नं० १ और ४ का उत्तर ऐसा युक्तियुक्त था कि मेरा सन्तोष हो गया

था और प्रश्न नं० २ और ३ के विषय में उत्तर देने का वचन दिया था ।

उसी दिन सायंकाल स्वामी जी ने उपदेश दिया । अजमेर के असंख्य सामान्य

और विशेष व्यक्ति एकत्रित थे । चूंकि उपदेश करने में दो चार वाक्य कहने

के पश्चात् गिलास में से पानी के घूंट लेते थे । दूसरे दिन मैंने उस के विषय

में भी आप से निवेदन किया कि यह रीति तो अंगरेज पादरियों की है आप

क्यों करते हैं ? कहा कियह वैघक से सम्बद्ध बात है । मनुष्य दुर्बल है,

कहते—कहते चित्त में उत्तेजना आ जाती है । पानी के घूंट लेने से वह दूर

हो जाती है इस में क्या बुरा है ?

उसी दिन स्वामी जी महाराज की गोरक्षा के विषय में चिरकाल तक

मुझ से बातें हुईं ? चूंकि मेरे विचार पहले ही से गोहत्या के विरुद्ध हैं, मैंने

निरन्तर लेखों में और विशेष पत्रिका में यह बात भली भांति सिद्ध कर दी

है कि भारत जैसे देश में गाय मारना बिल्कुल मूर्खता और नासमझी है, और

यह कि गाय मारने में मुसलमानी नहीं धरी हुई है । इसलिए स्वामी जी मुझ

से बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि आज से हम तुम को अपने विचारों का

एक स्तम्भ समझते हैं और यह भी कहा कि तुम जो पत्रिका गोरक्षा के बारे

में लिखो उस की एक प्रतिलिपि हम को भी दिखलाना । उस समय एक

चित्र भी स्वामी जी ने अपना मुझ को दिया ।

इसके पश्चात् जब स्वामी जी उदयपुर गये तब भी भेंट हुई, जोधपुर

में गये तब भी हुई थी । मेरे विचार में स्वामी जी महाराज एक महान् पुरुष

थे और उन के मरने से भारतवर्ष को बहुत बड़ा धक्का लगा है ।

हस्ताक्षरमुराद अली

(लेखराम पृष्ठ ४२९—४३०)