मोक्ष से लौटने के बाद पहला जन्म शूद्र परिवार में क्यों मिलेगा?

मोक्ष से लौटने के बाद पहला जन्म शूद्र परिवार में मिलेगा। क्योंकि,
स महर्षि दयानंद जी ने ऋग्वेद (पहला मंडल, चौबीसवाँ सूक्त, मंत्र संख्या दो) के भाष्य में लिखा है कि – जो आत्माएँ मुक्ति से लौटती हैं, उनके पुण्य और पाप तुल्य (बराबर) होते हैं। पहले के लौकिक-सुख प्राप्ति के लिए किए गए सकाम कर्म-जनित पाप-पुण्य उनके जमा रहते हैं। और अपने कर्मानुसार पुण्य-पाप तुल्य होने से शूद्र माता-पिता के यहाँ जन्म लेकर वो शरीर धारण करते हैं।
जब पाप-पुण्य तुल्य होते हैं, तब साधारण मनुष्य का जन्म होता है। यह वेद की बात है, हमारे घर की बात नहीं है।
स कोई भी यात्रा शून्य (ज∙ीरो) किलोमीटर से आरंभ (स्टार्ट) होती है। शूद्र परिवार ज∙ीरो किलोमीटर है। जीरो मध्य में होता है। बाईं तरफ माइनस (-) और दाईं तरफ प्लस (+) होता है। शूद्र से बाईं तरफ पशु-पक्षी, पेड़-पौध़े यानी माइनस (-) है। और दाईं तरफ ब्राह्मण परिवार प्लस (+) है। इसलिए मोक्ष से लौटकर पहला जन्म जीरो शूद्र परिवार में मिलेगा।
आप घर से चले मुंबई, तो कहाँ से किलोमीटर गिनना शुरू करेंगे? अपने घर से, वो है जीरो। फिर एक किलोमीटर चले, तो एक किलोमीटर यात्रा पूरी हो गई। तो शुरुआत कहाँ से होती है? जीरो से। इसी प्रकार से मुक्ति से जब लौट के आए, तो नई यात्रा चली। मुक्ति के लिए भी यात्रा जीरो से शुरु होगी। जीरो मतलब शूद्र परिवार, सामान्य जन्म, साधारण मनुष्य। यहाँ से यात्रा शुरु होती है। इसलिए मुक्ति से लौटकर आने वाले आत्मा को भगवान शूद्र के घर में जन्म देता है। अब यहाँ से आपकी यात्रा शुरु हुई।
स अब मेहनत करो। कोई एक जन्म में दस मील पार करेगा, कोई बीस मील पार करेगा। पशु-पक्षी से लौटकर शूद्र बना। शूद्र के बाद वैश्य बना। फिर क्षत्रिय बना। फिर ब्राह्मण, फिर संन्यासी बना और फिर मोक्ष की प्राप्ति। जैसा कि पहले बताया था। दस-दस मील पार करते जाएँ। यह सामान्य नियम है कि- शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण, फिर संन्यासी और फिर मोक्ष।
स एक व्यक्ति ज्यादा जोर से दौड़ लगाएगा, तो वो सीधा चालीस मील पार कर जाएगा। लेकिन आगे जाकर ठंडा पड़ गया, दूसरे काम शुरु किए, तो बीस मील वापस भी आ जाएगा। यह अप-डाउन तो होता रहता है। सामान्य नियम है कि क्रमशः उत्तरोत्तर उन्नाति होगी। और उसमें जो ऊँचे-नीचे स्तर बन रहे हैं, वो कर्म के आधार पर हैं, जन्म के आधार पर नहीं हैं।
स कर्म से व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र माना जाता है। यदि अच्छे कर्म करेगा, तो अच्छे बु(िमान के यहाँ जन्म लेगा। यह कर्म-फल है, मुफ्त में नहीं मिलता। कर्म के आधार पर ही उसको अगला फल – जन्म मिला। और आगे उन्नाति का अवसर जन्म से ही मिलेगा। वो पिछले कर्म का फल भोगेगा।
स और कोई अपवाद यँूं भी होता है कि पहले दो सौ, पांच सौ, हजार जन्म भोग चुका। अच्छे कर्म भी किए, बुरे भी किए। सब तरह के कर्म कर बहुत सारे संस्कार जमा कर लिए। फिर एक जन्म में शूद्र के घर में पैदा हुआ। अब पिछली बहुत सारी सम्पत्ति (संस्कार) थी। उसके बाद फिर कोई घटना देख ली। जैसे महर्षि दयानंद जी ने देख ली। महात्मा बु( ने देख ली। ऐसी और कई लोगों ने संसार की घटनाऐं देख लीं। उन घटनाओं को देखकर उनके मन में वैराग्य जाग गया। जो पिछले हजारों जन्मों की कमाई थी। वो जाग गई। अब इसी जन्म में उसने खूब पुरुषार्थ किया, तो शूद्र या क्षत्रिय परिवार में पैदा होकर के सीधा ब्राह्मण बन सकता है। यह अपवाद है। हमारे गुरुजी-स्वामी सत्यपति जी महाराज का जन्म तो ऐसे ही साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। अब फिर घटनाएं देखीं, तो वैराग्य हो गया। फिर खूब जोर लगाया। आज देखो कहाँ पहुँच गए।
जिस व्यक्ति ने 20 वर्ष की उम्र तक क, ख, ग भी नहीं सीखा हो। आज वह वेदों का विद्वान और कितने ऊँचे स्तर का योगी, तपस्वी और कितना शास्त्रों का पंडित, और कितना काम करने वाला व्यक्ति, कितनी संस्कृत भाषा जानने वाला बन गया। यह कोई साधारण बात है? हो सकता है, इसी जन्म में इनकी मुक्ति हो जाए। यह इनका अंतिम जन्म हो। और अगर मान लिया, कुछ कमी रह गई, तो एक दो जन्म और लेना पड़ेगा, बस फिर गाड़ी मोक्ष के स्टेशन पर जाकर रुकेगी।
स अब जब इतने महान पुरुष देख रहे हैं, तो इनको देखकर हम प्रेरणा ले सकते हैं। मुक्ति वाला तो आएगा नहीं, हमें प्रेरणा देने के लिए। उसके लिए तो भगवान ने मना कर दिया कि तुम मत करो संसार को प्रेरणा। तुम्हारे बस का नहीं है। यह हमारा ही काम है। हम कर लेंगे। तो ऐसे-ऐसे महान पुरुषों को देख करके हम बहुत सी प्रेरणा ले सकते हैं कि इतने साधारण परिवार में जन्म लेकर भी इतनी ऊँचाई तक पहुँच गए।
तात्पर्य है कि व्यक्ति बहुत तीव्र गति से भी उन्नाति कर सकता है। पर वो अपवाद है। ऐसे लोगो की संख्या बहुत कम होती है। सामान्य नियम तो वो ही है। स्टेप बाई स्टेप चलना अर्थात् पहले शूद्र, फिर वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, संन्यासी और फिर मोक्ष।

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