मोक्ष एवम् ईसा पर विश्वास

मोक्ष एवम् ईसा पर विश्वास

(फर्रुखाबाद में दो पादरियों से प्रश्नोत्तरमई, १८७६)

एक दिन स्वामी जी से दो पादरियों की धर्म—विषय पर बातचीत हो

रही थी । उनमें से एक पादरी का नाम लूकस था । दूसरा देशी ईसाई था।

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लूकसआपके मत से मोक्ष का क्या उपाय है ?

स्वामी दया०हम से पादरी विल्सन ने भी यही प्रश्न किया था । उन्होंने

कहा मोक्ष का साधारण मनुष्यों के लिये एक प्रकार का उपाय है अर्थात्

ईश्वरप्राप्ति और ईसाइयों के लिए अन्य प्रकार का अर्थात् ईसा पर विश्वास

लाना। हमने इस पर उनसे कहा था कि पहला ही उपाय ठीक है।

लूकसमनुष्य ईसा पर विश्वास करने से ही मुक्ति पा सकता है, क्योंकि

वह ईश्वर का पुत्र और मनुष्यों का परित्राता था और इसलिए ईश्वर ने उसे

भेजा था । इसका प्रमाण यह है कि ईसा ने बहुत से मृत पुरुषों को जिलाया

था ।

दया०सत्य वेदोक्त धर्म में ईश्वर के अवलम्बन से ही मोक्ष होता

है। महाभारत में लिखा है कि शुक्राचार्य ने सञ्जीवनी विघा से मृत पुरुषों

को जिलाया था । अब हम शुक्राचार्य को ईश्वर का अवतार मानें या उन्हें

ईश्वर का भेजा हुआ मानें । यदि उत्तम उपदेश देने से ही ईसा को परित्राता

कहते हो तो बायबिल की अपेक्षा भगवद्गीता में अधिक उत्तम उपदेश हैं,

इसलिए भगवद्गीता के वक्ता श्रीकृष्ण भी परित्राता थे कि उन्होंने उत्तम कर्म

किये थे तो शटराचार्य अपेक्षाकृत उत्तमोत्तम कर्म कर गये हैं, इसलिये

शटराचार्य भी परित्राता हैं ।

पादरी साहब इन बातों का कुछ उत्तर न दे सके ।

स्वामी जी ने पादरी साहब से यह भी कहा था कि तुम्हारे देश में बहुत

धन है इसलिये तुम्हारी परिश्रम में अनास्था हो गई है । अतएव तुम्हारी मध्यस्थ

अवस्था नहीं रही है और तुम क्रमशः अवनति की ओर जा रहे हो । इसके

पश्चात् स्वामी जी ने शरबतादि से सत्कार करके पादरी साहब को विदा किया।

(देवेन्द्रनाथ २।२)