(राव राजा मोहनसिंह जोधपुर से प्रश्नोत्तरजून, १८८३)
जोधुपर निवासकाल में राव राजा शिवनाथसिंह जी के भाई राव राजा
मोहनसिंह जी जो संस्कृतज्ञ थे, कई बार स्वामी जी से मिलने के लिए आये
और जीव ब्रह्म की एकता के बारे में स्वामी जी से प्रश्न किया कि आप
जीव हैं या ब्रह्म ?
स्वामी जी ने कहा कि हम जीव हैं ।
उसने कहा कि मैं तो ब्रह्म हूं क्योंकि पण्डित का यही कथन है कि
वह समदर्शी हो और चराचर में उस को देखे ।
इस पर स्वामी जी ने कहा कि यदि ब्रह्म हो तो ब्रह्म के गुण होने चाहियें
जो कि आप में नहीं दीखते । इस पर कई मन्त्र पढ़कर सुनाये जिस पर उस
ने कहा कि यदि मैं चाहूं तो सब जान सकता हूं परन्तु जब मैं शुद्ध हो जाउंQ
तभी ब्रह्म बनूंगा ।
स्वामी जी ने कहा कि ब्रह्म में अशुद्धता कहां से आई, शुद्ध क्यों नहीं
होते ?
इसी प्रकार की बातें एक दिन हुईं परन्तु उन्होंने फिर कभी ऐसे प्रश्न
नहीं पूछे प्रत्युत स्वामी जी से प्रीतियुक्त बातें करते रहे और प्रेम रखते रहे।
स्वामी जी भी उन की योग्यता की प्रशंसा करते रहे । (लेखराम पृष्ठ ८३४)