मेरे कुल का काम विष देना नहीं

(वल्लभाचार्य—मतवालों के साथ शास्त्रार्थ बम्बई में

१६ नवम्बर, १८७४)

बम्बई पहुंचकर जब स्वामी जी को वल्लभाचार्य मत का समस्त वृत्तान्त

विदित हुआ तो उसका यथार्थ ज्ञान हो जाने के पश्चात् उन्होंने लगातार उस

मत के खण्डन और उसकी पोल खोलने के लिये भाषण देने और उपदेश

करने आरम्भ किये और ब्रह्म सम्बन्ध वाले मन्त्र की भी जिससे वह चेले

और चेलियों का तन मन धन अपने अर्पण कराके ब्रह्म सम्बन्ध कराते हैं

अच्छी प्रकार छीछालेदर की । गुसाईं जी की बहुत हानि होने लगी तब जीवन

जी गुसाईं ने स्वामी जी के सेवक बलदेवसिंह जी कान्यकुब्ज ब्राह्मण को

बुलाकर कहा कि तुम को मैं एक हजार रुपया दूंगा यदि स्वामी जी

को मार दो । उसी समय पांच रुपया नकद और ५ सेर मिठाई प्रसाद के

रूप में दी और हजार रुपये देने की प्रतिज्ञा करके एक रुक्का (प्रतिज्ञापत्र)

लिख दिया । बलदेवसिंह अभी स्वामी जी के पास पहुंचा नहीं था उनको

सूचना मिल गई कि तुम्हारा रसोइया जीवन जी के पास खड़ा है । जब वह

पहुंचा तब स्वामी जी ने पूछा कि तुम गोकुलियों के मन्दिर में गये थे ?

बलदेवसिंहहां महाराज गया था ।

स्वामी जीक्या ठहरा ?

बलदेवसिंहपांच रुपया नकद और पांच सेर मिठाई और यह रुक्का

लिखकर दिया है कि मार दो तो हजार रुपये ले लो ।

स्वामी जीमुझ को कई वार विष दिया गया है परन्तु मरा नहीं ।

बनारस में विष दिया गया, कर्णवास में राव कर्णसिंह चक्राटिती ने पान में

विष दिया तब भी नहीं मरा और अब भी नहीं मरूंगा ।

बलदेवसिंहमहाराज मेरे कुल का काम विष देना नहीं है और फिर

ऐसे को जिससे समस्त जगत् को लाभ पहुंच रहा है ।

स्वामी जी ने मिठाई फिंकवा दी और रुक्का फाड़कर फेंक दिया और

कहा कि ट्टट्टसावधान, भविष्य में उनके यहां कभी मत जाना ।’’

(लेखराम पृ० २४६)