मेरा प्रश्न है कि ऋषि के सत्यार्थ प्रकाश के अनुसार शरीर की चार अवस्था मानी गई हैं। सुषुप्ति, स्वप्न और जागृत व तुरीय। हम सामान्य पुरुषों की तुरिय न होकर अन्य तीन अवस्थाएँ मैं समझती हूँ। इन तीन अवस्थाओं में आत्मा का निवास कहाँ होता है। ये मेरी शंका है क्योंकि मैंने स्वाध्याय में पाया है- प्रथम आत्मा का ज्ञान होगा तो तभी ईश्वर का ज्ञान होगा, अन्यथा नहीं। त्रैतवाद का दूसरा अंग आत्मा ही है। अतः मैं आत्मा के विषय मैं पूरा-पूरा ज्ञान जानना चाहती हूँ। कृपया मुझे बताईये। – सुमित्रा आर्या, 961/10, आदर्श नगर, सोनीपत, हरियाणा।

सत्यार्थप्रकाश के 9वें समुल्लास में महर्षि ने मुक्ति साधन कहे हैं, उन साधनों में तीन अवस्थाओं का वर्णन है- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति। वहाँ तुरीय को अवस्था न कहकर ऋषि ने चौथे शरीर रूप में वर्णन किया है। इस तुरीय शरीर की व्याया करते हुए महर्षि लिखते हैं – ‘‘तुरीय शरीर वह कहाता है, जिसमें समाधि से परमात्मा के आनन्दस्वरूप में जीव होते हैं। इसी समाधि संस्कारजन्य शुद्ध शरीर का पराक्रम मुक्ति में भी यथावत् सहायक रहता है।’’ इस प्रकार यह तुरीय अवस्था न होकर तुरीय शरीर है।

आप शरीर में आत्मा निवास को जानना चाहती हैं, इस विषय में उपनिषद् में लिखा हुआ कि उसका निवास स्थान हृदय है। महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका में उपासना विषय में इस हृदय स्थान की व्याया स्पष्ट की है। यह भी लिखा है कि इसी हृदय प्रदेश में योगी जन अपने आत्मा का मेल परमात्मा से करते हैं। यह मेल जाग्रत अवस्था समाधि में होता है, सुषुप्ति में नहीं। इससे ज्ञात होता है कि आत्मा का शरीर में मुय निवास स्थान हृदय प्रदेश में ही है। इसकी अनुभूति आप स्वयं भी कर सकते हैं, जब हमें भय लगता है तो भय की अनुभूति न तो आँखों में होती न ही कण्ठ व अन्य स्थान पर, यह अनुभूति हृदय प्रदेश में ही होती है। क्योंकि वहाँ आत्मा रहता है, जो कि अनुभव करने वाला है। भय के समान सुख-दुःख आदिकी अनुभूति समझें।

रही आत्मा के स्वरूप की बात तो यह स्वरूप ऋषियों ने शास्त्र में वर्णित कर रखा है। जीवात्मा नित्य है, चेतन, अनादि, निराकार, अल्पज्ञ एकदेशीय, अल्पशक्तिवाला, जन्म-मरण में जाने आने वाला, कर्म करने में स्वतन्त्र, फल भोगने में परतन्त्र है इत्यादि स्वरूप आत्म का वर्णन मिलता है।

लिंग की दृष्टि से देखें तो आत्मा स्त्री, पुरुष, नपुंसक लिंग भेद नहीं। पुरुष का आत्मा अन्य जन्म में स्त्री शरीर में और स्त्री का आत्मा पुरुष शरीर में आता-जाता है, आ-जा सकता है। लिंग निर्धारण तो शरीर के आधार पर होता है, यथार्थ आत्मा का कोई लिंग नहीं है। इस प्रकार आत्मा के स्वरूप को जानने के लिए ऋषियों के ग्रन्थों का स्वाध्याय करें विस्तार से जानकारी मिलेगी। अस्तु।

– ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर।