(पं० हरिशटर कन्नौज से प्रश्नोत्तरसंवत् १९२६)
पण्डित हरिशटर जी ने वर्णन किया कि संवत् १९२६ में जब स्वामी
जी कन्नौज में ठहरे हुए थे तो मूर्तिपूजा पर हमारी उनसे यह बातचीत हुई
स्वामी जी ने कहा कि मूर्तिपूजा का शास्त्रों में निषेध है ।
हमने कहा कि आप वचन पढ़ें ।
स्वामी जी ने कहा कि तुम कोई विधिवचन पढ़ो । हम ने कहा कि
श्रुति, स्मृति, सदाचार इत्यादि अर्थात् सदाचार श्रुति, स्मृति के अनुसार है और
मूर्तिपूजा सदाचार है । (उस समय हमने और ग्रन्थ नहीं देखे थे और न वेद
पढ़े थे) ।
स्वामी जी ने कहा किसदाचार पञ्चमहायज्ञ है न कि मूर्तिपूजा
और प्रतिमापूजन के कारण से लोगों ने बलिवैश्वादिक पञ्चयज्ञ छोड़ दिये
हैं, जब उससे अश्रद्धा होगी तब वह काम करने लगेंगे और जब वैदिक
कर्म करने लगोगे तब तुम्हारा बड़ा मान होगा ।
हमने कहा कि वैदिककर्म तो अब कोई कर नहीं सकेगा और मूर्तिपूजा
पर अश्रद्धा हो जावेगी तो इससे लोक भ्रष्ट हो जावेंगे ।
(लेखराम पृष्ठ १२७, १२८)