मानव तो उन्नाति कर रहा है, अतः भगवान को तो खुश होना चाहिए?

आज जो हो रहा है, वह उन्नाति नहीं है।
स उन्नाति की सही परिभाषा है किः-”जिससे लौकिक सुख बढ़े, दुःख-तनाव कम हो, और ‘मोक्ष’ की सि(ि (प्राप्ति) हो, वह उन्नाति है।”
आधिभौतिक उन्नाति वहाँ तक करो, जहाँ तक मोक्ष प्राप्ति में सहायता मिले। जो ऐश्वर्य और मोह-माया आपको मोक्ष तक जाने से ही रोक दे, वह उन्नाति नहीं है। ऐश्वर्य उतना ही बढ़ना चाहिए, जितना कि वह मोक्ष प्राप्ति में सहायक हो, और संसार को सुचारु रूप से चला सकने में समर्थ हो।
स आज तो ऐसा देखने में नहीं आ रहा। आज तो सम्पत्ति से लोगों का सुख नहीं बढ़ रहा। दुःख-तनाव, असंतोष, अशांति एवं
अपराध ही बढ़ रहे हैं।
स यह स्थिति मोक्ष-प्राप्ति में भी सहायक नहीं है। इसलिए आज की स्थिति को हम ‘उन्नाति’ नहीं कह सकते।
स स्वामी दयानंद जी ने कहा है कि-”जब ऐश्वर्य मात्रा से अधिक बढ़ता है, तो मनुष्य में प्रमाद और आलस्य आदि दोष उत्पन्ना होते हैं।” महाभारत यु( का कारण भी यही था। उस समय शक्ति और ऐश्वर्य अधिक बढ़ गया था। इसलिए यु( हुआ। महाभारत यु( का परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं। अतः अधाधुंध धन बढ़ाते जाना उन्नाति नहीं है।

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