(पादरी पार्कर साहब से मुरादाबाद में शास्त्रार्थनवम्बर, १८७६)
पहली बार स्वामी जी सन् १८७६ में मुरादाबाद पधारे । यहां स्वामी जी
का पादरी पार्कर साहब से कई दिन तक प्रातःकाल लिखित शास्त्रार्थ होता रहा।
साहू श्यामसुन्दर जी रईस मुरादाबाद ने वर्णन किया कि पादरी पार्कर
साहब का शास्त्रार्थ राजा जयकिशनदास साहब बहादुर की कोठी पर कम
से कम १५ दिन तक होता रहा । मैं नित्य जाया करता था । कुंवर परमानन्द,
रूपकिशोर अध्यापक मिशन स्कूल, मास्टर हरिसिंह तथा और भी कई सज्जन
जाया करते थे । अन्तिम दिन का विषय था कि सृष्टि कब उत्पन्न हुई ?
पादरी साहब का कथन था कि सृष्टि पांच हजार वर्ष से उत्पन्न हुई और
स्वामी जी इसका खण्डन करते थे ।
इसी समय में ब्रिटिश इण्डियन ऐसोसियेशन कमेटी की सभा उस कोठी
के एक कमरे में हुआ करती थी । उस अन्तिम दिन स्वामी जी दूसरे कमरे
में जाकर एक बिल्लौर का पत्थर उठाकर लाये कि आप लोग विज्ञान जानते
हैं, इसको विज्ञान से सिद्ध करें कि कितने वर्ष में यह पत्थर इस रूप में
आया । अन्त में खोज से यही सिद्ध हुआ कि वह कई लाख वर्ष में बना
है। फिर कहा कि जब सृष्टि नहीं थी तो यह पत्थर कैसे बन गया ? जिस
पर पादरी साहब ने यह निकम्मा बहाना किया कि हम मनुष्य की उत्पत्ति
को पांच हजार वर्ष कहते हैं । इस पर स्वामी जी ने कहा कि जब सृष्टि
की उत्पत्ति की चर्चा है तो सृष्टि के भीतर मनुष्यादि सब आ गये । इसी
पर शास्त्रार्थ समाप्त हुआ था । पादरी साहब ने इस शास्त्रार्थ का वृत्तान्त किसी
समाचारपत्र में भी प्रकाशित कराया था परन्तु उसका नाम मुझे ज्ञात नहीं और
यह भी सुना कि पादरी साहब ने एक चिट्ठी अमरीका भेजी कि हम ने आजतक
ऐसा विद्वान् पण्डित कोई नहीं देखा ।
बाबू रूपकिशोर जी ने वर्णन किया कि रैवरेण्ड डब्ल्यू पार्कर साहब
और स्वामी जी के मध्य जो शास्त्रार्थ हुआ था वह मैंने लिखा था, परन्तु
खेद है कि मेरे पुत्र के प्रमाद से वे कागज नष्ट हो गये । अब जो कण्ठस्थ
मुझे ज्ञात है वह लिखवाता हूं । इस शास्त्रार्थ में तीन अंग्रेज सज्जन उपस्थित
थे। एक पादरी पार्कर, दूसरे मिस्टर बेली साहब और तीसरे एक और पादरी
साहब। इनके अतिरिक्त डिप्टी इमदाद अली, बाबू रामचन्द्र बोस, वुंQवर
परमानन्द, मास्टर हरिसिंह और इसी प्रकार ४०—५० मनुष्य थे । शास्त्रार्थ लिखा
जाता था । १४—१५ दिन शास्त्रार्थ होता रहा । बेली साहब अब अलीगढ़ में
रजिस्ट्रार हैं । प्रतिदिन प्रातः दो तीन घण्टे बैठते थे ।
अन्त में एक बात मुझे स्मरण है कि स्वामी जी ने सिद्ध कर दिया
था कि मसीह मूर्तिपूजा की शिक्षा देता था क्योंकि ईश्वर को किसी के द्वारा
मानता तथा किसी के द्वारा इच्छापूर्ति की प्रार्थना करता है वह मूर्तिपूजक है
और हम मूर्तिपूजक नहीं हैं । (लेखराम पृष्ठ ४४१)