मरने के बाद कहानी खत्म नहीं होती। ऐसा क्यों कहा जाता है?

यही तो बात है, जो लोगों के दिमाग में नहीं बैठती। शरीर मरता है और आत्मा नया जन्म ले लेती है। जैसे स्कूटर को गैराज में रखकर हम उससे अलग हो जाते हैं। वैसे ही मृत्यु होने पर शरीर और आत्मा दोनों अलग-अलग हो जाते हैं। अंतर इतना है कि स्कूटर पर तो हम रोज बैठते हैं, फिर अलग हो जाते हैं। उससे तो जल्दी अलग हो जाते हैं, पर शरीर से पचास, साठ, अस्सी या सौ साल के बाद अलग होते हैं।
तात्पर्य है कि, एक न एक दिन आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। उसी क्षण का नाम ‘मृत्यु’ है। उसके बाद, अगला ‘जन्म’ होता है। ठीक वैसे ही, जैसे आप पुराने स्कूटर को छोड़कर नया स्कूटर खरीदते हैं। गीता में इसी बात को पुराने कपड़े त्यागकर नये वस्त्र धारण करने के उदाहरण से समझाया गया है। स्कूटर घिस-पिट गया, नया ले लिया। ऐसे ही शरीर जर्जर हो गया, तो छोड़ दिया। फिर नया शरीर मिल जाएगा। मरने के बाद कहानी खत्म नहीं होती, ऐसा इसीलिए कहा जाता है।

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