मन में विचारों की उत्पत्ति के दो कारण है- ‘इच्छा’ और ‘प्रयत्न’। विचारों को रोकने का उपाय यही है, कि- इच्छा को रोक दीजिए और प्रयत्न को रोक दीजिये। इससे मन में आने वाले विचार रुक जाएँगे।
स योगदर्शन में पतंजलि महाराज ने दूसरे दो शब्दों का प्रयोग किया। पहला है- ‘वैराग्य’ और दूसरा है- ‘अभ्यास’। वृत्तियों (विचारों( को रोकने के लिए बस ये दो उपाय अभ्यास और वैराग्य हैं।
स लंबे समय तक दीर्घकाल तक अभ्यास में जुटे रहिये। निरंतर अभ्यास कीजिए। धीरे-धीरे मन एकाग्र होता जाएगा। जो विचार हम उठा लेते हैं, उन्हें मन से हटाते जाइये। इस तरह धीरे- धीरे अभ्यास करेंगे तो लाभ होगा। और थोड़ा वैराग्य बढ़ाइये। वैराग्य का मतलब- संसार से राग भी नहीं और द्वेष भी नहीं करना। इन दोनों से बचना।
स राग से कैसे बचें? संसार की वस्तुओं में सुख न लेवें। इससे धीरे-धीरे राग कम हो जाएगा। द्वेष से कैसे बचें? किसी भी परिस्थिति में दुःखी न हों। कैसे? जब छोटी-मोटी प्रतिकूल घटना हो, तब सोचें- ‘कोई बात नहीं’। जब बड़ी घटना होवे, तब अपनी रक्षा का पूर्ण प्रयत्न तो अवश्य करें। फिर भी यदि संसार में न्याय न मिल पाए, तब सोचें- ‘ईश्वर न्याय करेगा।’ इस प्रकार से ‘अभ्यास’ और ‘वैराग्य’ दो उपाय हैं। इनसे वृत्तियों को रोका जा सकता है।