मन, बु(ि और अहंकार क्या काम करते हैं?

मन दो काम करता है। मन से संकल्प-विकल्प करते हैं। संकल्प पॉजीटिव थॉट है, विकल्प- नेगेटिव थॉट है। जब सकारात्मक विचार करते हैं तो उसका नाम है- ‘संकल्प’। जब उससे विपरीत विचार करते हैं तो उसका नाम है- ‘विकल्प’। दोनों तरह के विचार होते हैं। उनको करने का साधन है ‘मन’। उदाहरण के लिये जब आपको योग शिविर की सूचना मिली थी तो आपने सोचा होगा कि, शिविर में जाऊँ या नहीं जाऊँ। शिविर में जाऊँ – यह संकल्प है। नहीं जाऊँ – यह विकल्प है। जब तक ये दो विचार रहेंगे,तब तक इस विचार को करने का साधन है- ‘मन’। तब इसका नाम ‘मन’ होता है।
स जब यही मन पुरानी घटनाओं को स्मरण करने में सहयोग देता है, स्मृतियाँ उत्पन्न करता है, तब इसको ‘चित्त’ कहते हैं। जैसे कम्प्यूटर के अंदर हार्डडिस्क होती है और उसके अंदर बहुत सी फाइल सेव कर एकत्र कर देते हैं। और हम आवश्यकता अनुरूप जो चाहें वो फाइल खोल लेते हैं। इसी प्रकार मन भी हार्डडिस्क के समान है। उसमें बहुत सारे संस्कार जमा रहते हैं। जिसे कम्प्युटर की भाषा में ‘फाइल’ कहते हैं, उसे ही हम आध्यात्मिक भाषा में ‘संस्कार’ कहते हैं। मन में जमा संस्कारों में से जो संस्कार हम उठाना चाहें, जो स्मृति लाना चाहें, वो हम ले आते हैं। वो फाइल खुल जाती है अर्थात् वो संस्कार जाग जाते हैं। और हमें वो चीज स्मरण आती है। इस प्रकार जब स्मरण करने का काम करते हैं, तब इसका नाम चित्त होता है। ये दोनों काम एक ही वस्तु करती है। बु(ि इससे अलग पदार्थ है।
स आपके मन में दो विचार थे, कि योग शिविर में जाऊँ या नहीं जाऊँ? आपको दो में से एक निर्णय लेना पड़ा कि जाऊँ या नहीं जाऊँ। आपने अंतिम निर्णय ले लिया कि जाऊँगा। वहाँ जाने से मुझे कुछ लाभ होगा इसलिये शिविर में जाऊँगा। जब आपने यह डिसीजन लिया, दो में से एक फाइनल हो गया, कि मैं जाऊँगा, वो बु(ि की सहायता से हुआ। बु(ि का काम है – निर्णय दिलवाना, निर्णय लेने में सहयोग देना। बु(ि निर्णय लेने का साधन है। जैसे आँख देखने का साधन है। आँख के बिना आप नहीं देख सकते हैं, मन के बिना विचार नहीं कर सकते, ऐसे ही बु(ि के बिना डिसीजन नहीं ले सकते। इस प्रकार मन का काम अलग है, बु(ि का काम अलग है। ये दो अलग-अलग साधन है। दोनों अंतःकरण हैं।
स तीसरा साधन है – अहंकार। अहंकार का काम है- आत्मा को अपनी अस्तित्त्व की अनुभूति कराना। आँख के बिना आप देख नहीं सकते। कान के बिना आप सुन नहीं सकते। अहंकार के बिना आप ये अनुभव नहीं कर सकते कि- मैं हूँ । सबको अनुभूति होती है कि- मैं हूँ। ऐसा तो कोई भी नहीं है जिसको ये लगता हो कि मैं नहीं हूँ। मैं हूँ, ये अनुभूति हमे अहंकार नामक पदार्थ करायेगा। जीवात्मा को उसकी सहायता मिलेगी तो व्यक्ति अनुभव करेगा कि, मैं हूँ। जब अहंकार भी नहीं रहे या अहंकार का काम बंद हो जाये या वो आत्मा से अलग हो जाये, तो आत्मा को भी अनुभूति नहीं होगी कि, मैं हूँ।

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