घर में बिजली काम कर रही है। जिस बिजली से हमारे साधन काम कर रहे हैं जैसे कि- माइक्रोफोन चल रहा है, ट्यूबलाइट्स जल रही हैं, पंखे चल रहे हैं, कारखानों में मशीनें चल रही हैं। बताइये कि यह जो बिजली है, यह जड़ है या चेतन? जड़ है। और अगर हम बिजली के तार का यहाँ से लेकर के दिल्ली तक पूरा कनेक्शन लगा दें, और यहाँ से बटन ऑन कर दें, तो करंट कितनी देर में दिल्ली पहुँच जायेगा? एक सेकंड से भी पहले पहुँच जायेगा। बिजली एक सेकंड में एक लाख, छियासी हजार, दो सौ मील चली जाती है। और दिल्ली तो मात्र एक हजार किलोमीटर ही है।
स जड़ होते हुए भी, बिजली कितनी चंचल है, कितनी तीव्रता से काम करती है। जब बिजली जड़ होते हुए इतनी तीव्रता से चल सकती है, तो फिर मन भी जड़ है, तो वो तीव्रता से काम क्यों नहीं कर सकता?
स मन की अपनी गति है, घोड़े की अपनी गति है, शरीर की अपनी गति है। वस्तुतः हर चीज की अपनी अलग-अलग गति है। शरीर इतनी तेज नहीं दौड़ सकता, स्कूटर शरीर से ज्यादा तेज दौड़ सकता है। स्कूटर से कार ज्यादा तेज दौड़ सकती है, और कार से विमान और तेज चल सकता है। मन की भी अपनी गति है, वो बहुत तेज चलता है, फटाफट विचार करता है। भगवान ने मन के अंदर ऐसी क्षमता दी है, कि जीवात्मा मन से जल्दी-जल्दी विचार कर सके। यदि इतनी जल्दी विचार न कर सके, तो उसके सांसारिक व्यवहार सि( न हों।
स पायलट विमान चलाता है, और विमान की गति आप जानते हैं, वो आठ सौ, एक हजार, बारह सौ, पन्द्रह सौ किलोमीटर प्रति घंटे की तेजी (स्पीड( से चलता है। मान लो, दो हजार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से विमान चलता है, तो जो पायलट उसको चला रहा है, उसका दिमाग विमान से तीव्र चलना चाहिये या
धीमे चलना चाहिये? तीव्र चलना चाहिये। तभी तो वो विमान को नियंत्रित कर पायेगा, नहीं तो दुर्घटनाग्रस्त हो जायेगा। दिमाग तेज चलेगा, तभी तो वो सामने आने वाली वस्तुओं से बचा पायेगा, नहीं तो टकरा जायेगा।
स भगवान ने मन इसलिये तीव्रता से कार्य करने वाला बनाया, कि हम विमान को भी चला सकें, हम रॉकेट भी चला सकें, हम सेटेलाइट भी चला सकें, हम कम्प्यूटर भी चला सकें, तीव्रता से काम करने वाली मशीनों पर नियंत्रण कर सकें। और ऐसे ही समाधि भी लगा सकें, उसके लिए भी मन तीव्र गति वाला होना चाहिये।
स मन जड़ होते हुये भी बहुत तीव्रता से कार्य करता है, बिल्कुल बिजली की तरह। बिजली बहुत तीव्र गति से चलती है। और यहाँ से एक सेकंड में अमेरिका तक, लंदन तक पहुँच जायेगी, पर है जड़। मन भी ऐसा ही है। आत्मा उसको चलाता है। और वो एक-एक क्षण में फटाफट विचार बदलता है, स्मृतियाँ उठाता है, स्मृतियाँ बदलता रहता है। आत्मा चेतन है, वो उसको चलाता है। मन में इतनी क्षमता है, कि वो ये सब कार्य इतनी तेजी से कर सकता है।