भारत में करोड़ों लोग ऐसा मानते हैं, कि हर व्यक्ति की मृत्यु कब, कहाँ, कैसे होगी, वो परमात्मा ने निश्चित कर रखी है। हम उसको बिलकुल घटा-बढ़ा नहीं सकते। जिस दिन हमारी मौत जहाँ लिखी है, वहीं पर होगी और उसी तरीके से होगी, जैसी भगवान ने निश्चित कर रखी है। यह बात गलत है। कारण किः-
स वेदों में लिखा है कि आयु घटती है और बढ़ती है। वेदों में लिखा है कि मनुष्य की आयु फ्लेक्सिबल है। कोई मरने का दिन, समय, स्थान पहले से निर्धारित नहीं है।
स संध्या का एक मंत्र आप रोज बोलते होंगे – ”जीवेम् शरदः शतम्, भूयश्च शरदः शतात्।” हे प्रभु ! हम सौ वर्ष तक, और सौ वर्ष से अधिक भी जिएं।
अगर किसी की मृत्यु भगवान ने तय कर दी कि यह पैंतीस वर्ष में मरेगा, अमुक हाईवे पर मरेगा, ट्रक के नीचे टकराकर मरेगा। वह आदमी यदि कहे कि – ”हे भगवान ! मैं सौ साल जियूँ।” उसको यह सौ साल जीने की प्रार्थना भगवान ने सिखाई। इसका मतलब यह है कि भगवान हमसे झूठ बुलवाता है। एक ओर तो कहता है कि – ”तुम्हें पैंतीस से आगे तो जाने ही नहीं दूँगा।” दूसरी ओर कहता है :- ”मुझसे बोलो कि ‘मैं सौ साल जियूँ, सौ से ऊपर भी जियूँ।” यह विरोधाभास है।
जब हम प्रार्थना करते हैं – ‘हे ईश्वर! हम सौ वर्ष जिएं, सौ से अधिक भी जिएं’। इसका मतलब यह है कि हमारी आयु निर्धारित नहीं है। हम कभी भी उसको घटा-बढ़ा सकते हैं।
स मान लीजिए कि एक व्यक्ति नेशनल-हाईवे पर स्कूटर से जा रहा था और पीछे से उसको ट्रक वाले ने टक्कर मार दी। लोग कहते हैं – साहब देखो, इसकी मौत यहीं लिखी थी। थोड़ी देर के लिए मान लिया कि भगवान ने लिखा था कि इसको इस दिन, यहाँ पर मरना है और ट्रक ड्राइवर ने ईश्वर के आदेश का पालन किया। ट्रक वाले ने उसको मार दिया। अब यह बताइए, जब ट्रक ड्राइवर ईश्वर के आदेश का पालन कर रहा है, तो उस पर मुकदमा करना चाहिए या उसको ईनाम देना चाहिए?
स वेद में लिखा है कि ईश्वर के आदेश का पालन करना धर्म है। और धर्म का फल सुख है। उसको तो सुख देना चाहिए, उस पर मुकदमा क्यों करो? क्या आप इस बात को मानने के लिए तैयार हैं कि जो ट्रक वाला किसी को ठोकर मार दे, तो उस पर आप मुकदमा नहीं करेंगे, बल्कि ट्रक ड्राइवर को ईनाम देंगे? क्योंकि आप इस बात को मानते हैं कि इसकी मौत ईश्वर ने यहीं लिखी थी। आप कहते हैं कि ईनाम नहीं देंगे। इसका मतलब हुआ, वह अपराधी है, तभी तो उस पर मुकदमा करते हैं। इसलिए वह मृत्यु ईश्वर की लिखी हुई नहीं है। ट्रक वाले की लापरवाही से दुर्घटना के कारण हुई है।
एक उदाहरण सुनिए – एक आतंकवादी ने बीस लोगों को मार दिया। कालान्तर में वह पकड़ा गया, उस पर कोर्ट में मुकदमा
चला और प्रमाणित हो गया कि इसने बीस लोगों को मारा है। न्यायाधीश महोदय ने कागज पर लिख दिया कि इसको इक्कीस दिसंबर को सुबह ग्यारह बजे फाँसी पर लटका दिया जाए। वह लिखित आदेश जल्लाद के पास आया। जल्लाद ने न्यायाधीश के आदेश का पालन किया और इक्कीस दिसंबर को सुबह ग्यारह बजे उस आतंकवादी को फाँसी पर लटका दिया। क्या जल्लाद अपराधी है या नहीं है? उस पर मुकदमा करेंगे कि नहीं करेंगे? नहीं करेंगे, बल्कि उसको वेतन देंगे।
जल्लाद न्यायाधीश के आदेश का पालन करता है, और वह अपराधी नहीं कहलाता तो इसी प्रकार जो ट्रक ड्राइवर है, वो भी ईश्वर के आदेश का पालन कर रहा है, वह अपराधी क्यों होगा? उसको भी वेतन दो, ईनाम दो, तब तो हम मानें, कि हाँ भगवान का दिया हुआ आदेश है। अगर आप, जो भी मनुष्यों को मारें, उनको ईनाम देना शुरु कर दें, तो मैं यह मानने के लिए तैयार हूँ, कि हाँ वो भगवान ने लिखा है। तैयार हैं आप लोग? अगर नहीं, तो इसका मतलब, वह कथन झूठ है, ईश्वर का आदेश नहीं है। जैसे आतंकवादी ने कानून तोड़ा और निर्दोष लोगों को मारा, इसलिए वो अपराधी माना गया। ऐसे ही उस ट्रक ड्राइवर ने कानून को तोड़ा और निर्दोष व्यक्तियों को मारा, इसलिए वो अपराधी गिना गया। इसलिए उस पर मुकदमा हुआ। इससे सि( हुआ कि, यह सब भगवान का लिखा हुआ नहीं है।