मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम-कृति है। वह इस संसार में रहते हुए मोक्ष प्राप्ति का प्रयत्न करता है। तब ‘यह संसार मूढ़ व्यक्ति के लिए है’ यह बात कैसे उचित हुई?

ये दो अलग-अलग बातें हैं। प्रश्नकर्ता ने इन दोनों को मिला दिया है। इस संसार में मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। यह एक अलग बात है, अलग प्रसंग है।
स गाय, घोड़े, कुत्ते, बिल्ली, सुअर, मक्खी आदि की तुलना में मनुष्य सबसे उत्तम है, यह बात ठीक है। इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
स अब दूसरी बात देखिए कि- क्या मनुष्य पूरी तरह से सुखी है ? सारी पृथ्वी पर राज्य करने वाला कोई चक्रवर्ती राजा ही क्यों न हो, चाहे बुश जैसा हो या बिलगेट्स जैसा हो, चाहे कितना ही बलवान हो, कितना ही प्रतिष्ठित हो, क्या वो पूरी तरह सुखी है? नहीं है न।
स क्या मनुष्य सब दुःखों से छूट गया है? नहीं। जो भी मनुष्य शरीरधारी है, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ दुःख उसको भोगने ही पड़ते हैं।
स अब आपको यह सुनकर बड़ा आश्चर्य होगा कि ‘संसार में रहना कोई बु(िमत्ता नहीं है।’ क्यों नहीं है, समझ लीजिए। क्या दुःख भोगना बु(िमत्ता है या सुख भोगना? सुख भोगना बु(िमत्ता है। और क्या संसार में सुख मिलता है? नहीं। संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो पूरी तरह सुखी हो। इसका अर्थ हुआ कि – पूर्ण बु(िमान तो कोई हुआ ही नहीं। तो बताओ, संसार में रहना बु(िमत्ता कैसे हुई!
स संसार में दुःख मिलता है। दुःख भोगना बु(िमत्ता नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि – ”यह संसार मूढ़ व्यक्तियों के लिए है।” क्योंकि जिसने संसार में जन्म लिया, उसने कुछ न कुछ दुःख भोगा ही है। दुःख भोगना ही पड़ेगा। उसने संसार में जन्म लेकर दुःख भोगा है, तो इसका मतलब हुआ कि अभी उसमें कुछ न कुछ मूढ़ता अर्थात कुछ अविद्या बाकी है।
स अविद्या को मारने के लिए ही हमें मनुष्य जन्म मिला है। मनुष्य जन्म प्राप्त किया है, तो समाधि लगाओ, शास्त्र पढ़ो, समाज की सेवा करो, निष्काम कर्म करो और मोक्ष में जाओ। संसार मे पड़े-पड़े दुःख मत भोगो।
जो अपनी अविद्या को यहाँ पर मार डालता है, उखाड़ देता है, फिर वह पूर्ण बु(िमान हो जाता है। फिर उसकी मुक्ति हो जाती है। जब मुक्ति हो जाती है, तो वो इस दुःखमय संसार से छूट गया।
स मुक्ति में उसको शाश्वत सुख मिलता है। मनुष्य अविद्या को यहाँ पर उखाड़ कर पूर्ण बु(िमान होकर मोक्ष में जाकर पूर्ण सुख भोगता है।
स और जो संसार में बाकी बच गए, वो मूढ़ बार-बार जन्म लेकर दुःख भोगेंगे। इन मूढ़ व्यक्तियों में से जो बु(िमान हो जाता है, वह संसार में जन्म नहीं लेना चाहता, मुक्ति में जाता है। इसलिए कहा जाता है कि संसार मूढ़ व्यक्तियों के लिए है, बु(िमानों के लिए नहीं है। संसार में जन्म लिया अर्थात् अभी मूढ़ता बाकी है। उसको दूर करना है। यही तो मनुष्य जीवन का उद्देश्य है।

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