एक जन्म कब से गिनना शुरु करेंगे? यहाँ आर्यवन में, शिविर में आने के बाद एक जन्म गिनना शुरु करेंगे, या जब से मुक्ति से लौटे तब से गिनना शुरु करेंगे? दरअसल, जब से हम मोक्ष से लौटकर इस संसार में आए, एक जन्म की गिनती तब से शुरु होती है। वो पहला जन्म होता है। जीवात्मा जब-जब संसार में मुक्ति से लौटकर आया, और उसने जन्म लिया, वो उसका पहला जन्म है।
स अब समस्या तो ये भी है कि लोगों के दिमाग में यही नहीं बैठता कि हम मुक्ति से लौटकर आए हैं। निश्चित रूप से आप जितने लोग यहाँ बैठे हैं, और जितनी जीवात्माएं संसार में हैं, वो सब की सब मुक्ति से लौटकर आयी हुई हैं, और सबको वापस वहीं जाना भी है।
स उस एक जन्म में तो मुक्ति नहीं हो सकती। सत्यार्थ प्रकाश का नवां समुल्लास (चैप्टर) पढ़िए। उसमें लिखा है, मुक्ति एक जन्म में होती है या अनेक जन्मों में? उत्तर दिया गया-अनेक जन्मों में। मुक्ति के लिए कई जन्म तक तपस्या करनी पड़ेगी। एक जन्म में पूरा जोर लगाने पर भी मोक्ष नहीं हो सकता, उसके लिए और जन्म लेने पड़ेंगे।
स और कितने जन्म लेने पड़ेंगे, वो हमारी और आपकी मेहनत की बात है, हमारे पुरुषार्थ, प्रगति की बात है। मोक्ष के लिए हम कितना परिश्रम करते हैं, कितना आलस्य करते हैं, यह उस पर आधारित है। उसमें पाँच जन्म लगें, या पचास भी लगें, पाँच हजार भी लगें, पाँच लाख भी लगें, पाँच करोड़ भी लगें, कितने भी लग सकते हैं। सबको बराबर काल लगेगा, ऐसा कोई नियम नहीं है।
स ‘सांख्य-दर्शन’ के चौंथे अध्याय में एक सूत्र है- ”न कालनियमो वामदेववत्।” अर्थात् काल (समय) का कोई नियम नहीं है, वामदेव ऋषि के समान। वामदेव ऋषि कई जन्मों से तपस्या करते चले आ रहे थे। अब इस जन्म में उन्होंने पिछली तपस्या आदि को भी साथ जोड़ लिया। इस जन्म में पूरा जोर लगाया और उनकी ‘मोक्ष’ प्राप्ति की योग्यता बन गई, उनको
‘समाधि’ प्राप्त हो गई। वामदेव ऋषि ने पूरा जोर लगाया, इसलिए वर्तमान जन्म में उनकी योग्यता बन गई।
स अब यह आवश्यक नहीं कि सब लोगों की योग्यता इसी जन्म में ही बन जाएगी। सबकी स्थिति अलग-अलग है, सबकी रुचि अलग-अलग है, सबकी योग्यता अलग-अलग है, सबके संस्कार अलग-अलग हैं, सबके वैराग्य अलग-अलग हैं, सबका पुरुषार्थ अलग-अलग है। इसलिए सबके लिए समान काल का नियम लागू नहीं है। कोई पहले, कोई पीछे।
मान लीजिए, अहमदाबाद से दिल्ली बहुत सारे लोग जा रहे हैं। सबके पास वाहन अलग-अलग प्रकार के हैं। कोई कार में जा रहा है, कोई स्कूटर पर चल रहा है, कोई बाइक पर जा रहा है, किसी के पास साइकिल है, कोई ट्रेन में जा रहा है, कोई विमान में जा रहा है, और कोई पैदल ही जा रहा है तो कोई पहले पहुँचेगा, कोई पीछे पहुँचेगा। जैसा जिनका साधन, वो उसी हिसाब से पहुँचेंगे। मोक्ष की भी यही बात है।
स यदि अच्छे कर्म करके किसी बु(िमान के यहाँ जन्म ले लिया, फिर आगे कर दिए घोटाले, फिर बुरे कर्म कर दिए, तो वापस नीचे। कूद जाओ वापस शूद्र परिवार में। और अधिक बुरे काम कर लिए, तो और नीचे जाओ, जैसे सुअर, बिल्ली बनो। फिर वहाँ जाके दंड भोगो। इस तरह से अप-डाउन, अप-डाउन चलता रहता है। यह सब कर्मों का फल है।
बड़ा आदमी, ऑफीसर बनकर रिश्वत लेता है, डकैती करता है, दूसरों को परेशान करता है और वो पकड़ा जाता है, तो उसको सस्पेंड भी तो कर देते हैं। फिर नीचे उतार देते हैं।
स अब पीछे पता नहीं, कितने जन्म हो गए, वो तो किसी को मालूम नहीं। हमको याद नहीं रहता, याद रखने की जरूरत भी नहीं। अब हम आज कहाँ खड़े हैं, ‘मोक्ष’ कितनी दूर है, हमारी ताकत कितनी है, हमारी योग्यता कितनी है, सामर्थ्य कितना है, उसको देखना है। उसको ध्यान में रखकर चल दीजिए। लक्ष्य की ओर बढ़ते रहिए, कभी न कभी तो वह हाथ में आएगा ही।
स दुःख से छूटने के लिये, मोक्ष प्राप्ति के लिए, और कोई मार्ग नहीं है। “न अन्यः पंथाः”, दूसरा कोई रास्ता नहीं है। मार्ग एक ही है। यही मार्ग है। अब आप इसको सरल कहो या फिर कठिन कहो, लंबा कहो, या छोटा कहो। जो भी है, हमारे सामने ही है। चलना इसी पर है। इस पर हम चलने का प्रयत्न करेंगे, तो पहुँच जाएंगे।