३० मई, सन् १८६६ को स्वामी जी पुष्कर से अजमेर आये । वहां
स्वामी जी का पादरी लोगों से मित्रतापूर्ण शास्त्रार्थ हुआ । एक तो रैवरेण्ड
जे० ग्रे साहब मिशनरी प्रेस वी टेरेन मिशन अजमेर और दूसरे पादरी राबिन्सन
शूलब्रेड साहब थे और तीसरे साहब पादरी मेरवाड़ अर्थात् ब्यावर थे । प्रथम
तीन दिन ईश्वर, जीव, सृष्टिक्रम और वेद—विषय में बातचीत रही । स्वामी
जी ने उनके उत्तर उत्तम रीति से दिये । चौथे दिन ईसा के ईश्वर होने पर
और मरकर जीवित होने और आकाश में चढ़ जाने पर स्वामी जी ने कुछ
प्रश्न किये । दो—तीन सौ मनुष्य इस धर्मचर्चा के समय आया करते थे ।
अन्तिम दिन जब पादरी लोग इस विषय पर कोई बुद्धिपूर्ण उत्तर न दे सके
तो स्कूल के लड़के ताली पीटने लगे परन्तु स्वामी जी ने रोक दिया । आपस
में शास्त्रार्थ का ढंग यह था कि प्रथम एक पक्ष प्रश्न ही प्रश्न करे और
दूसरा पक्ष उत्तर ही उत्तर दे, बीच में प्रश्न न करे । तत्पश्चात् इसी प्रकार
दूसरा पक्ष करे । प्रथम प्रश्न पादरी लोगों ने किये जिनके उत्तर स्वामी जी
ने दिये। इस शास्त्रार्थ में ईसाइयों ने एक वेदमन्त्र का भी प्रमाण दिया था
जिसे स्वामी जी ने अस्वीकार किया कि यह वेदमन्त्र नहीं । उन्होंने कहा
कि हम वेद लाकर दिखावेंगे परन्तु वेद से न दिखला सके ।
राबिन्सन साहब का जो उन दिनों बड़े पादरी थेएक प्रश्न यह था
कि ब्रह्मा जी ने जो व्यभिचार किया है उसका क्या उत्तर है ?
स्वामी जी ने कहा कि क्या एक नाम के बहुत से मनुष्य नहीं हो
सकते ? फिर यह कौन बात है कि यह ब्रह्मा वही है प्रत्युत कोई और व्यक्ति
होगा । वे महर्षि ब्रह्मा ऐसे नहीं थे । (लेखराम पृष्ठ ६३)