पहले यह जान लें, कि सुधार और बिगाड़ का जो समय है, वो पन्द्रह साल के बाद नहीं है। दरअसल, उससे पहले है। अब तो घोड़ा हाथ से छूट गया। पन्द्रह साल का हो गया बेटा। अब तो गया हाथ से। इसका भी उत्तर बतायेंगे।
स जिनके बच्चे अभी पन्द्रह साल से छोटे हैं, वो लोग पहले ध्यान से सुनें। अगर आप अपने बच्चों को अनुशासन में रखना चाहते हैं। और उनको बुराईयों से, व्यसनों से बचाना चाहते हैं, अच्छी बात सिखाना चाहते हैं, अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं, तो शुरु से ही सावधान हो जायें। सावधानी शुरू से होती है। जन्म से भी पहले से होती है।
स विवाह-संस्कार के बाद पहला संस्कार होता है- ‘गर्भाधान संस्कार।’ वहाँ से बच्चे को तैयारी शुरू होती है। बल्कि उससे भी पहले से होती है। शास्त्र का नियम तो यह है कि- पहले माता-पिता योजना बनाते हैं, कि हमको कैसी संतान चाहिये। उनके लिए मानसिक-संकल्प करते हैं। वो वैसी मानसिक तैयारी करते हैं। वैसी पुस्तकें पढ़ते हैं। वैसा खान-पान रखते हैं। इतनी तैयारी करके फिर वो ‘गर्भाधान-संस्कार’ करते हैं। तो उसी तरह की ‘आत्मा’ ईश्वर भेजता है। वहाँ से शुरूआत हो सकती है। लेकिन लोगों को पता नहीं है। अब कोई व्यक्ति गृहस्थ आश्रम के नियम जानते ही नहीं तो पालन क्या करेंगे?
स दरअसल, गृहस्थ आश्रम उत्तम संतान बनाने के लिये ही निर्धारित किया गया है, मौज-मस्ती के लिये नहीं। आज जितने लोग गृहस्थ में जाते हैं, शादी करते हैं, उनसे आप पूछो- आप शादी क्यों कर रहे हैं? उनके पास कोई उत्तर नहीं है। सारी दुनिया करती है, इसलिये हम भी कर रहे हैं, यह उनका जवाब है। हमारे माता-पिता का दबाव (प्रेशर( है। शादी करो, इसलिये कर रहे हैं। यह उत्तर है, उनके पास। गृहस्थ का उद्देश्य पता नहीं है।
स क्यों शादी करनी चाहिये, संतान कैसी बनानी चाहिये, संतान कैसे बनाई जाती है, कुछ पता नहीं। इसीलिये वो बच्चों को बिगाड़-बिगाड़ के रख देते हैं। सीखा ही नहीं, कि बच्चों को कैसे बनाया जाता है। यह बहुत बड़ा विज्ञान (साइंस( है। आप मकान बनाते हैं। उसके लिये कितनी मेहनत करते हैं। इंजीनियरिंग करते हैं, सिविल इंजीनियरिंग करते हैं। मकान बनाना सीखते हैं। और कितने सालों तक मेहनत करते हैं, तब जाके मकान ठीक से बनता है। यह तो जड़ वस्तु है। जड़ वस्तु को बनाने, सीखने के लिये कितनी मेहनत करते हैं। कितने सालों तक योजना बनाते हैं। कितनी प्रैक्टिस करते हैं, अभ्यास करते हैं। और एक बच्चे को अच्छा इन्सान बनाना है तो वो तो चेतन वस्तु है, वो तो मकान बनाने से हजार गुना कठिन है। और इंसान को अच्छा कैसे बनाया जाये, यह सीखते नहीं। किसी को पता नहीं। और इसीलिये बच्चों को बिगाड़ के रख देते हैं। और जब बच्चे बिगड़ जाते हैं तो फिर हमारे पास ले आते हैं- महाराज जी यह बच्चा बिगड़ गया, इसको सुधारो। बिगाड़ो आप, सुधारें हम। तो पहले आप बच्चों को बनाना सीख लो। बच्चे कैसे बनाये जाते हैं। इसके कैसे नियम होते हैं। कैसे पालन करना चाहिये।
स गर्भाधान-संस्कार से पहले तैयारी करो। हमको कैसा बच्चा चाहिये। हम उसको क्या बनाना चाहते हैं, पहले से योजना बनाओ। वैसी तैयारी करो, वैसी पुस्तकें पढ़ो। वैसा स्वाध्याय करो। ऐसे लोगों के साथ बैठो। ऐसा चिंतन करो। ऐसा खान-पान रखो। फिर आत्मा को बुलाओ। फिर ईश्वर आपके पास अच्छी आत्मा भेजेगा। और फिर उसको वैसे ही संस्कार देना। वैसा ही सोचना। वैसी ही बात सुनाना, वैसे ही लोरियाँ सुनाना। वैसी ही बातें सिखाना। फिर जब डेढ़-दो साल का बच्चा हो जाये, तब से वो समझने लगता है। फिर उसके सामने अच्छी-अच्छी बातें करना। उसको अच्छी-अच्छी चीज सिखाना। शिष्टाचार से वार्तालाप सिखाना। सभ्यता से उठना-बैठना सिखाना। लेन-देन सिखाना। और उसको धीरे – धीरे सब बातें समझाते जाना।
स उसके सामने झूठ नहीं बोलना। बहुत मातायें देखी गई हैं। जो बच्चों के सामने झूठ बोलती हैं। पिता भी कम नहीं हैं। वो भी बच्चे से झूठ बोलते हैं। और जब बच्चा सीख लेता है तो फिर कहते हैं- यह बच्चा कैसे बिगड़ गया। यह कहाँ से सीख आया झूठ बोलना। हमने तो नहीं सिखाया। अच्छा जी, आपने ही तो सिखाया था। आपको पता भी नहीं चला, कि आपने इसको झूठ बोलना कब सिखा दिया। कैसे सिखा दिया। कल्पना करो एक माता रसोई में काम करती हैं, वहाँ रसोई में चाकू रखा था। दो साल के बच्चे ने चाकू उठा लिया। बच्चा, तो अपनी मनमर्जी करता है। जैसा मन में आता है, वैसा ही करता है। माँ ने देखा, तो कहा बेटा, चाकू छोड़ दो। उसने चाकू नहीं छोड़ा, तो माँ ने उससे चाकू छीन लिया। और छीन करके पीठ के पीछे छुपा लिया। और कहा, वो कौआ ले गया। बोलो ऐसा करते हो या नहीं करते? करते हैं। आप समझते हो, यह बच्चा तो दो साल का है, यह नहीं समझेगा। हम तो इसको उल्लू बना लेंगे, इसको मूर्ख बना लेंगे। आपका यह सोचना गलत है। वो सब समझता है। हाँ बोल नहीं सकता। अभी वो बता नहीं सकता कि आपने झूठ बोला है। लेकिन वो समझ गया। वो देखता है, कि कौआ तो आया नहीं। ये कहते हैं, कौआ ले गया। पीठ के पीछे छुपाया और बोले कौआ ले गया। फिर उसने दूसरी चीज उठा ली, तो आपने फिर छीन ली, और पीठ के पीछे छिपाकर कहा, वो बंदर ले गया। न कौआ आया, और न बंदर आया। उसने देखा, कि मेरी माँ झूठ बोलती हैं। कभी कहती है, कौआ ले गया, और कभी कहती है, बंदर ले गया। न कौआ आया, न बंदर। झूठ बोलती है। माँ से बच्चे ने झूठ ‘बोलना’ सीख लिया।
स और दो महीने बाद क्या हुआ। बच्चे ने माचिस उठा ली। माँ बोली- नहीं-नहीं माचिस मत उठाओ। यह मुझे दे दो। अब वही बच्चा माचिस अपनी पीठ के पीछे छिपाकर जवाब देगा, माँ माचिस तो कौआ ले गया। मैंने ऐसा भी देखा है। माँ को बोलते देखा है। और फिर उसी मां के बच्चे को झूठ बोलते भी देखा है। अपनी आँख से देखा है। अब आपको समझ में आया, कि आपने अनजाने में क्या पढ़ा दिया। तो ऐसे नहीं पढ़ाना। आप खुद ही उनको बिगाड़ते हैं। खुद झूठ बोलते हैं। और फिर कहते हैं साहब! बच्चा बिगड़ गया। उसका दोषी और कोई नहीं है। आप हैं। तो ऐसी गलतियाँ न करें।
स उसको चाकू नहीं देना। सच बोल करके उससे चाकू ले लेना। झूठ बोलकर नहीं। चाकू उससे छीन लो। और कहो तुमको चाकू नहीं मिलेगा। चाकू हमारे पास है। हम नहीं देंगे। चाकू उठाके ऊपर रख दो। जहाँ उसका हाथ नहीं पहुँचे। चाकू नहीं मिलेगा। उसको प्रेम या गुस्से से डराते हुए समझायें तुम्हारा हाथ कट जायेगा, इसीलिये चाकू बिल्कुल नहीं मिलेगा। सच बोल करके उसको ब्रेक लगाओ। ब्लेड उठा लिया, ब्लेड छीन लो। तुम्हारा हाथ कट जायेगा। ब्लेड ऊँचा रख दो। ब्लेड नहीं मिलेगा। माचिस उठा ली। माचिस छीन लो, ऊपर रख दो। नहीं मिलेगी। ऐसे बच्चों को सच बोल करके सिखाओ। ये मातायें झूठ बोलती हैं, तो बच्चे झूठ पकड़ते हैं।
स और पिता लोग भी कम नहीं हैं। बच्चा हो गया पाँच-छह साल का। एक बार क्या हुआ, एक व्यापारी आया पैसा लेने। तो पिताजी ने दरवाजे में से देखा कि अरे! ये तो पैसे लेने आया है, और पैसे तो हैं नहीं। तो पिताजी ने बच्चे से कहा उसको जाकर के बोलो, पिताजी घर पर नहीं है। बच्चा बेचारा छोटा था। उसने जैसा सुना, वैसा बोल दिया। पिताजी कह रहे हैं, पिताजी घर पर नहीं हैं। तो वो व्यापारी जो आया था पैसे लेने के लिये, वो भी समझ गया पिताजी घर पर हैं या नहीं हैं।
स बाद में उस बच्चे ने सोचा, कि पिताजी तो घर में हैं। पिताजी घर में नहीं हैं, यह ये तो झूठ है। अब पिताजी ने तो उसको झूठ बोलना सिखा दिया। फलस्वरूप दो-तीन साल के अंदर वो बच्चा पिताजी को धोखा देने लग गया। दो-चार साल का और बड़ा हो गया। दसं में ग्यारह फिर और बड़ा- चौदह-पन्द्रह साल का हो गया। स्कूल जाता है। दोस्तों के साथ इधर-उधर घूमता रहता है। होमवर्क करता नहीं है, कभी गार्डन में टाइम बर्बाद करता है। तो कभी पिक्चर देखने चला जाता है। और शाम को घर आ जाता है फिर कहता है, मैं तो स्कूल गया था। मैं कहीं गार्डन में नहीं गया था। मैं कहीं पिक्चर देखने नहीं गया था। मैं तो स्कूल गया था। अब बोलो, किसने उसको झूठ बोलना सिखाया? उत्तर है माता-पिता ने। तो अगर आप ऐसी गलतियाँ करेंगे तो आपके बच्चे बिगड़ेंगे। इसलिए कृपया ऐसी गलतियाँ न करें। जो भी बच्चे को सिखाना है सच-सच सिखाओ। हमेशा सच बोलो।
स दस में से आठ बातें बच्चे आपके आचरण से सीखते हैं। आप जो करते हैं, बच्चे आपकी नकल करते हैं। दो बात केवल आपके उपदेश से सीखेंगे। बेटा यह अच्छी चीज है यह करो, ये खराब चीज है यह मत करो। बाकी तो आपके प्रैक्टिकल-जीवन में से सीखते हैं। आप सच बोलेंगे, तो आपके बच्चे सच बोलेंगे। आप झूठ बोलेंगे, तो आपके बच्चे झूठ बोलेंगे। तो बच्चे बिगड़ते हैं, उसके लिए सबसे बड़े दोषी उनके माता-पिता हैं।
स और तीसरा दोषी है, स्कूल का टीचर। आजकल टीचर अपना कर्तव्य छोड़ चुका है। केवल सिलेबस पढ़ा देने मात्र से अध्यापक की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। उसको चाल-चलन, व्यवहार, बोलना, सभ्यता और मॉरल-एजूकेशन भी देना चाहिये। यह भी टीचर की बड़ी जिम्मेदारी है। पहले के टीचर लोग ऐसा करते थे। लेकिन अब छोड़ दिया। इसलिये दुनिया बिगड़ गई।
स बच्चों के बिगाड़ के बहुत सारे कारण हैं। और भी कई कारण हैं। मैंने अभी केवल तीन मुख्य कारण बतलाये। तीन बड़े कारण हैं। एक माता, दूसरा पिता और तीसरा गुरू, (आचार्य, शिक्षक, टीचर स्कूल का( तो अगर यह तीनों अच्छे हैं। तो बच्चे अच्छे बनेंगे। अगर ये तीनों खराब हैं, तो बच्चे खराब बनेंगे। तो जिनके बच्चे अभी छोटे हैं, वो अभी से सावधान हो जायें। ऐसा कोई व्यवहार न करें, जिससे बच्चे का बिगाड़ हो।
स अपने व्यवहार को शु( रखें। मेरे पास आते हैं लोग, कहते हैं साहब! मेरे बच्चे रात को बारह बजे, एक बजे तक जागते हैं। मैंने पूछा, अच्छा आप कितने बजे तक जागते हैं। वे बोले, साहब मैं भी एक बजे सोता हूँ। मैंने कहा, जब आप एक बजे सोते हैं तो बच्चे दस बजे क्यों सोयेंगे? आप क्यों एक बजे तक जागते हो। आप भी दस बजे सोओ न, फिर देखो बच्चे क्यों नहीं सोयेंगे। तो पहले माता-पिता को अपने सुधार की जरूरत है, फिर बच्चे सुधरेंगे। मैंने कुछ मूल-मूल सि(ांत बतलाये, कि बच्चे का बिगाड़ और सुधार कैसे होता है। उस पर विशेष ध्यान दें। और जो बात आप अपने बच्चे को सिखाना चाहते हैं पहले खुद अपने जीवन में आचरण करें। जिस दोष से बच्चे को बचाना चाहते हैं, पहले स्वयं उस दोष को छोड़ें, स्वयं अच्छे कामों को करें। फिर आपका बच्चा अच्छे काम करेगा।
स पन्द्रह साल का लड़का हो गया, अब छोटा नहीं है, बड़ा हो गया। उसको जिस दुर्व्यसन से बचाना चाहते हैं। उस व्यसन की हानियाँ, नुकसान बतलायें। हानियों की सूची (लिस्ट( बनायें। उसमें लिख-लिखकर बतायें, कि यह आपने जो दुर्व्यसन पकड़ लिया है। ऐसा करने से ये हानियाँ होंगी। और उस दुर्व्यसन से बचकर ठीक काम करेंगे, तो उससे क्या लाभ होंगे? लाभ की दूसरी लिस्ट बनायें। और उससे कहें बेटा, ये जो सूचियाँ हैं, इनको हर रोज तीन बार, चार बार, पाँच बार रोज पढ़ना है। और कुछ नहीं करना, बस सूची को पढ़ना है। जैसे डॉक्टर लोग तीन बार दवा खिलाते हैं ना सुबह, दोपहर, शाम। वैसे ही यह तुम्हारी दवा है। तुमको तीन बार यह दवा खानी है। अर्थात् तीन बार यह सूचियाँ पढ़नी हैं। चार बार पढ़ो, पाँच बार पढ़ो, कोई नुकसान नहीं है। इसमें कोई ओवर डोज (अति( नहीं होती है। पाँच बार पढ़ेंगे जल्दी लाभ होगा। तीन बार पढ़ेंगे, तो कुछ देर लगेगी। तो उसको हानि और लाभ समझायें। उसकी बु(ि जागने लग जाएगी। बु(ि जाग्रत होने लग गयी, बु(ि विकसित होने लग गई। और अब शरीर भी बड़ा हो रहा है। साल दो साल में अच्छी ताकत आ जायेगी।
स जब बेटा-बेटी पन्द्रह साल के हो जायें, या उससे ऊपर सोलह-अठारह के हो जायें, तब उनको प्रेम से समझायें। बु(ि में डालें, कि यह जो तुम गलती करते हो, इससे क्या-क्या नुकसान हैं। और ऐसा नहीं करोगे, ठीक काम करोगे तो क्या-क्या फायदे हैं। यह उनको समझायें, बार-बार बतायें। और फिर उनके ऊपर छोड़ दें, कि तुम्हें अपना भविष्य अच्छा बनाना हो, तो ऐसा काम करो। और ये काम करोगे तो भविष्य खराब होगा। अब तुम जानो। हमने समझा दिया, हमारी ड्यूटी खत्म। यह पन्द्रह साल की उम्र वाले और उससे बड़ी उम्र वाले बच्चों के साथ व्यवहार होना चाहिये।
स और अगर बच्चे छोटे हैं, छोटे बच्चों का भी समझ लीजिये, कैसा होना चाहिये। छोटे बच्चे पाँच साल से कम उम्र वाले, दो साल, तीन साल, चार साल, छोटी उम्र के। उनको भी आप प्रेम से बतलायें, बेटा ऐसा करो। ऐसा मत करो। दो बार, पाँच बार, प्रेम से बतलाओ, नहीं मानते, थोड़ा-थोड़ा हल्की डाँट लगा सकते हैं। पर पाँच साल से कम उम्र वाले बच्चों की पिटाई नहीं करना। पीटना नहीं। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की आप यदि पिटाई करेंगे, तो वे जिद्दी हो जायेंगे। अड़ियल हो जायेंगे, हठी हो जायेंगे। प्रेम से काम चलाओ, उनको कुछ खाने-पीने की चीज दो, कोई मिठाई दो, कोई फल दो। कोई और खाने की अच्छी चीज दो। कोई खिलौना दो और अपना काम चलाओ। जो काम करवाता है, वो काम करवाओ। उनको खिलाओ-पिलाओ और काम करवाओ,
स वही काम कराना है, जो आप चाहते हैं। हम बड़े हैं आपको पता है। क्या ठीक है, क्या गलत है। बच्चे छोटे हैं, उनको पता नहीं। वो तो अपनी मनमानी करेंगे। पर उनकी मनमानी बात नहीं माननी है। जो घर के बड़े लोग हैं, समझदार हैं, वो अपनी मनमानी करवायेंगे। जो उनको ठीक लगता है, वो करवायेंगे। प्यार से, डाँट से, खिला करके, कोई प्रलोभन दे के, कोई ईनाम देकर, जैसे भी।
स कभी-कभी ईनाम भी दिया, नहीं मानता। प्यार से समझाया, नहीं मानता। थोड़ी डाँट भी लगायी, नहीं मानता। छोटे-बच्चों के लिये बहुत बढ़िया उपाय है। जब ये उपाय काम नहीं करें, तो एक अंतिम उपाय है। छोटे बच्चों से बात करना बंद कर दें, बोलना बंद। उनसे कहो, बेटा यह काम करो। वो कहता है, हम नहीं करेंगे। तो बोलो- ठीक है, हम तुमसे बात नहीं करेंगे। ऐसे मुँह घुमाके बैठो। हम बात नहीं करेंगे। छोटे-बच्चे यह नहीं सहन कर सकते। पाँच साल से कम उम्र के बच्चे जब आपकी बात नहीं मानें, तो बोलो- तुम हमारी नहीं मानते, जाओ हम भी तुम्हारी नहीं मानते। हम बात नहीं करेंगे। ऐसे घूम के बैठ जाओ। दो मिनट में दिमाग ठीक हो जायेगा। फटाफट कहेंगे- हाँ-हाँ, आप जो कहोगे, हम करेंगे। वो सीधे हो जायेंगे।
स पाँच साल से बड़ी उम्र के बच्चों और बारह, अधिकतम तेरह तक की उम्र तक यानि पाँच से तेरह, इस ऐज ग्रुप में बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करें? इस पर चर्चा करते हैं।
स आप जो भी काम करवाना चाहते हैं, उसके बारे में, उससे होने वाले लाभ के बारे में उनको समझायें। प्यार से कहें- बेटा यह काम करो। कई तो चुपचाप मान लेंगे। कई अड़ियल होंगे, नहीं मानेंगे। तो दो बार, चार बार प्रेम से बतायें, नहीं मानते, फिर डाँट लगाओ, जबरदस्ती करवाओ। चलो करो, करना पड़ेगा। चलो जल्दी करो, फटाफट जल्दी करो। उनको ऐसे थोड़ा जबरदस्ती करवाओ। फिर कोई उससे भी नहीं मानेगा तो फिर उसको थप्पड़ लगाओ, कैसे नहीं करेगा। दो थप्पड़ लगेंगे। जल्दी काम करेगा। और थप्पड़ से भी बात नहीं बनी, तो खाना बंद। तुम हमारी बात नहीं मानोगे, शाम को खाना नहीं मिलेगा। खाना बंद कर दो। कैसे नहीं करेगा। बिलकुल करेगा। उसके खिलौने बंद कर दो। ‘तुम हमारी बात नहीं मानोगे, हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे। तुमको अच्छे खिलौने लाकर नहीं देंगे।’ ऐसे-ऐसे उन पर प्रतिबंध लगाओ। जो करवाना है, आप करवाओ। जो आपको ठीक लगता है, वो काम बच्चों से करवाओ। जो ठीक नहीं लगता, वो नहीं करवाना।
स बच्चे चाहे जो भी करें। जो भी मानें, कहें, उनकी गलत बात बिल्कुल नहीं सुननी। हाँ, जो उनकी उचित बात है, वो तो मानेंगे। अगर वो अनुचित बात कहते हैं, गलत बात कहते हैं, नहीं मानेंगे। रोते हैं, तो रोने दो। कोई चिंता नहीं। वो ही करवाना, जो आप चाहते हैं।
स अगर आपने बच्चों की उल्टी-सुल्टी मनमानी बातें स्वीकार करनी शुरू कर दी, फिर वो थोड़े दिनों में अच्छी तरह बिगड़ जायेंगे। फिर वो आपकी नहीं सुनेंगे। और अपनी सब मनमानी पूरी करवायेंगे। फिर आप कहेंगे, देखो साहब! ये कैसे बच्चे हो गये हमारे। हमने इनके ऊपर मेहनत की, इतना समय खर्च किया, इतने पैसे खर्च किये, दिन-रात पसीना बहाया और आज ये बड़े हो गये, हमारी बात ही नहीं सुनते। अरे! आपने स्वयं बिगाड़े। आपका दोष है। आपने बच्चों का संचालन करना सीखा नहीं। उनकी गलत बातें मानते रहे तो वो अपनी ही मनवायेंगे। आपकी बात नहीं सुनेंगे।
स घर-गृहस्थी वाले लोग, सि(ांत याद कर लें। ”बच्चों की गलत बात एक भी नहीं मानेंगे। सही बात सब मानेंगे।” बस, और मान लो कई-कई अड़ियल बच्चे होते हैं, बड़े ढीठ होते हैं, हठी होते हैं, इतना सब करने के बाद भी वे नहीं मानते। मान लो दस साल का बच्चा है। आपने कहा बेटा, यह काम करो- वो कहता है, मैं नहीं करूँगा। अब उसके लिये फाइनल (अंतिम( हथियार है, उसको धमकी लगाओ। यह घर हमारा है। तुमको इस घर में रहना है या नहीं रहना है? वो कहेगा- हाँ रहना है। रहना है, तो जो हम कहेंगे, वो करो। तुम नहीं करोगे, तो भाग जाओ यहाँ से। वो दरवाजा खुला है, भाग जाओ यहाँ से। हम नहीं रखते अपने घर में, निकल जाओ। उसको धमकी लगा दो, दस साल का बच्चा है, ग्यारह साल का है, बारह साल का है। आपकी धमकी सुनकर डर जायेगा। सीधा हो जायेगा। हाँ, एकाध होता है जो सचमुच भाग जाता है। इसीलिये मैंने बारह साल उम्र बताई है। बारह साल से कम उम्र का बच्चा घर छोड़ के नहीं भागेगा।
स यहाँ एक श्रोता ने कहा- हम तो बच्चे को समझाते और डाँडते हैं । परन्तु उसकी दादी बीच में आ जाती है। वह नहीं मानती। तब मैंने कहा- दादी नहीं मानती, दादी को अलग बैठाओ। उसको समझाओ। खराबी बच्चे में नहीं है। खराबी बच्चे की दादी में है। जो नहीं मानती, जो उसको बिगाड़ रही है।
स बच्चे को धमकी लगाओ, यह घर हमारा है। तुमको इस घर में रहना है। तो जो हम कहेंगे वो करना पड़ेगा। और नहीं तो भाग जाओ यहाँ से। ‘अब दस-बारह साल का बच्चा छोटा है। उसको पता है, मैं अकेला नहीं जी सकता। अभी मेरे पास इतनी बु(ि सामर्थ्य नहीं है, ताकत नहीं है, मैं अकेला नहीं जी सकता। अभी मुझे माता-पिता की जरूरत है। तो वो आपकी धमकी सुन करके, सीधा हो जायेगा। वो कहेगा- नहीं-नहीं मुझे यहाँ रहना है। तो बोलो, ‘जो हम कहेंगे वो करोगे।’ तो यह धमकी चलेगी, थप्पड़ चलेगा, मार-पीट चलेगी। डाँट-धमकी चलेगी, कब तक बारह-तेरह साल की उम्र तक।
स उसके बाद अब चौदह का हो गया, पन्द्रह का हो गया, सोलह-अठारह का हो गया, अब धमकी नहीं देना। अब तो वो भाग जायेगा। तेरह के बाद धमकी नहीं लगाना। बेटा-बेटी बड़े हो जायें, फिर धमकी नहीं लगाना, कि यह हमारा घर है, भाग जा यहाँ से।’ फिर तो भाग जायेगा।
स फिर वही जो पहले बताया था। फिर वो करना। अब उसको बु(ि से समझाओ। ‘बेटा! अब तुम बड़े हो गये, तुम समझदार हो गये, जवान हो गये। तुम्हारे पास ताकत भी आ गई। अक्ल भी आ गई। अब अपनी अक्ल से सोचो। सुझाव देना हमारा काम है। क्या करना है, क्या नहीं करना है, वो तुम जानो।’ उसके सर पर भार डालो। तो वो थोड़ा सावधान होकर सोचेगा।’ अच्छा, अगर मैं ऐसा करूँगा, तो मेरा भविष्य बिगड़ेगा। और ऐसा करूँगा तो ठीक हो जायेगा। तो अब मुझे देखना है, अपना भविष्य ठीक करना है।’ कि बिगाड़ना है। बस वो हानि और लाभ वाली लिस्ट पढ़वाओ, और वो स्वयं पढ़ करके, उसको समझ जायेगा, क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये। अगर आपने बारह-तेरह-चौदह-पन्द्रह साल तक बच्चे को बचपन से पूरी ट्रेनिंग ठीक-ठीक दी है। यह सही है, यह गलत है, यह करना है, यह नहीं करना है, इसमें लाभ है, इसमें हानि है। तो आगे फिर उसके निर्णय ठीक चलेंगे। और पहले ही पन्द्रह साल तक आपने उसको अच्छा प्रशिक्षण (ट्रेनिंग( नहीं दिया, सही गलत नहीं समझाया, हानि-लाभ नहीं बताया, उचित-अनुचित का पालन नहीं करवाया, तो आगे फिर उसके निर्णय वैसे ही उलट-पुलट होंगे। फिर आपको नुकसान होगा। तो इस तरह से बच्चों का नियंत्रण करें।