(पं० लेखराम जी द्वारा किये हुए प्रश्नों का उत्तर१७ मई, १८८१)
आर्यपथिक पं० लेखराम जी अपने बनाये हुए महर्षि के जीवनचरित्र
में लिखते हैं
११ मई, सन् १८८१ को संवाददाता पेशावर से स्वामी जी के दर्शनों
के निमित्त चलकर १६ की रात को अजमेर पहुंचा । और वहां पहुंचकर स्टेशन
के समीप वाली सराय में डेरा किया । और १७ मई को प्रातःकाल सेठ जी
के बागीचे में जाकर स्वामी जी का दर्शन प्राप्त किया । उन के दर्शन से
मार्ग के समस्त कष्टों को भूल गया और उन के सत्योपदेशों से समस्त समस्याएं
सुलझ गईं । जयपुर के एक बंगाली सज्जन ने मुझ से प्रश्न किया था कि
आकाश भी व्यापक है और ब्रह्म भी, दो व्यापक किस प्रकार इकट्ठे रह
सकते हैं ?
मुझ से इस का कुछ उत्तर न बन पाया । मैंने यही प्रश्न स्वामी जी
से पूछा । उन्होंने एक पत्थर उठाकर कहा कि इसमें अग्नि व्यापक है या
नहीं ?
मैंने कहा किव्यापक है ।
फिर पूछा कि मिट्टी ? मैंने कहा कि व्यापक है ।
फिर पूछा कि जल ? मैंने कहा कि व्यापक है ।
फिर पूछा किआकाश और वायु ? मैंने कहा किव्यापक हैं ।
फिर पूछा कि परमात्मा ? मैंने कहा किवह भी व्यापक है ।
कहा कि देखा कितनी चीजें हैं परन्तु सब इस में व्यापक हैं । वास्तव
में बात यह है कि जो जिस से सूक्ष्म होती है वह उस में व्यापक हो सकती
है । ब्रह्म चूंकि सब से अति सूक्ष्म है इसलिए सर्वव्यापक है, जिस से मेरी
शान्ति हो गई ।
मुझ से उन्होंने कहा कि और जो तुम्हारे मन में सन्देह हों सब निवारण
कर लो मैंने बहुत सोच विचार कर दश प्रश्न लिखे जिन में से आठ मुझे
स्मरण हैं, शेष भूल गये ।
प्रश्नजीव ब्रह्म की भिन्नता में कोई वेद का प्रमाण बतलाइये ?
उत्तरयजुर्वेद का ४०वां अध्याय सारा जीव—ब्रह्म का भेद
बतलाता है।
प्रश्नअन्य मत के मनुष्यों को शुद्ध करना चाहिये या नहीं ?
उत्तरअवश्य करना चाहिये ।
प्रश्नविघुत् क्या वस्तु है और किस प्रकार उत्पन्न होती है ?
उत्तरविघुत् सर्वत्र है और रगड़ से उत्पन्न होती है । बादलों की विघुत्
भी बादलों और वायु की रगड़ से उत्पन्न होती है ।
मुझ से कहा कि २५ वर्ष से पूर्व विवाह न करना। कई ईसाई और
जैनी प्रश्न करने आते परन्तु शीघ्र निरुत्तर हो जाते थे । (लेखराम पृष्ठ ५३२)