धन का उपयोग ‘सत्कर्म’ में भी तो कर सकते हैं?

सत्कर्म’ में धन का उपयोग कर सकते हैं, परन्तु प्रायः करते नहीं हैं। कारण कि, पैसा हाथ में आते ही बु(ि घूम जाती है।
स वेद यह कहता है कि खूब धन कमाओ। पर केवल परीक्षण करने के लिए कि क्या धन से हमारी तृप्ति हो सकती है? धन ऐश्वर्य के स्वामी बनो। ऐसा इसलिए कहा गया है कि, मनुष्यों को यह शंका है कि धन मिला तो सब कुछ मिला। खूब धन कमाने से मनुष्य सुखी हो जाता है।
स धन का परीक्षण करना चाहिए। यदि बहुत सा धन कमा कर भी वह सुख नहीं मिला, जिसकी कल्पना की थी तो परिणाम निकालो कि भोगों में सुख नहीं है। भोग-विलास में सुख एक है और दुःख चार हैं। इस परिणाम के आधार पर मोक्ष की तैयारी करो।
स जब तक व्यक्ति इस संसार में भोगों से दुःख प्राप्त नहीं कर लेगा, भोगों से थक नहीं जाएगा, तब तक मोक्ष की इच्छा उत्पन्ना नहीं हो सकती। वेद में धन कमाने और वैराग्य प्राप्त करने, इन दोनों बातों की चर्चा है। पर लोग वैराग्य को भूल जाते हैं, और धन कमाने की बात याद रखते हैं। जब भोग-विलास में सुख नहीं मिलता, तब वेद की दूसरी बात भी तो याद करनी चाहिए। और राजा भर्तृहरि व राजा जनक के समान वैराग्य ले लेना चाहिए। नचिकेता ने अपने पिछले जन्म में भोग किया, पर उसे सुख नहीं मिला। और जब वह अपने नचिकेता वाले जन्म में आया, तो गुरुजी ने उसे बहुत से प्रलोभन दिए, पर उसने कहा कि ‘धन से कोई तृप्त नहीं हुआ।’ अतः सार यह है कि –
स धन उतना कमाओ, जिससे मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इससे अधिक कमाएंगे, तो मोह-माया में फँस जाएंगे।
विदेशियों ने खूब धन कमाया, भोग किया, और अंत में सुख नहीं मिला तो वे भारत की ओर आने लगे कि यहाँ ऋषि-मुनि रहते हैं, और इन्हीं से सुख प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु भारत के लोग विदेशियों की नकल कर रहे हैं। वे भोग-विलास, धन-ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं, पर उनके परिणाम को नहीं देख रहे हैं। इस प्रकार, जिन लोगों ने संसार का सुख भोग लिया है, वे वैराग्य को प्राप्त करेंगे, और जिन्होंने अभी कुछ भोगा नहीं है, वे पहले भोगेंगे और फिर वैराग्य और मोक्ष को प्राप्त करेंगे।

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