डॉक्टर के झूठ बोलने से रोगी ठीक हो जाता है, तो फिर इसमें क्या दिक्कत है।’ यह बड़ा भयंकर प्रश्न है। बहुत लोग इस पर बहस करते हैं, और वो झूठ बोलने की पुष्टि करते हैं। अब इसका उत्तर सुनिये-
स एक डॉक्टर ने रोगी का परीक्षण कर लिया और देख लिया कि यह बूढ़ा व्यक्ति है, और इसके लक्षण बता रहे हैं, तीन दिन से आगे नहीं जियेगा। तो रोगी पूछता है, कि ‘डॉक्टर साहब मैं ठीक तो हो जाऊँगा?’
स ऐसी `िस्थ्ति में झूठ की पुष्टि करने वाले लोग कहते हैं, कि डॉक्टर को रोगी के सामने तो ऐसा ही कहना चाहिये ‘हाँ, हाँ, तुम ठीक हो जाओगे, तुम्हें कुछ नहीं होगा।’ ये झूठ बोलना चाहिये। और रोगी के कमरे से बाहर जाके, जो उसके घर के बाकी पांच-छहः सदस्य हैं, उनको सच बताना चाहिये, कि ‘देखिये भई! ये तीन दिन का मेहमान है, इससे जो वसीयत करवानी है, वो करवा लो, फिर मत कहना कि हमें बताया नहीं था। जिस रिश्तेदार को बुलाना हो बुला लो।’ रोगी के सामने झूठ बोलो, कि हाँ, तुम ठीक हो जाओगे और दूसरे कमरे में जाके सच बताओ, ऐसा झूठे लोग कहते हैं।
स हम कहते हैं,यह गलत है। रोगी के सामने झूठ क्यों बोलना? इससे नुकसान होता है। क्या नुकसान होता है? इससे बाकी लोग क्या सोचेंगे, कि यह डॉक्टर कैसा है? रोगी के सामने झूठ बोलता है, बाकी लोगों के सामने सच बोलता है। जो घर के बाकी छह सदस्य हैं, वो तो यही सोचेंगे न कि यह डॉक्टर रोगी के सामने तो झूठ बोलता है। रोगी को सच नहीं बताता। और बाकी लोगों को सच बताता है। उन छह व्यक्तियों के मन पर इसका प्रभाव ऐसा पड़ेगा। पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा? पड़ेगा न। उसका विश्वास खत्म होगा न।
स अब चलो, वो तो बूढ़ा व्यक्ति था। वो तो तीन दिन के बाद मरने ही वाला था, सो मर गया। जो घर के छह सदस्य बाकी बचे थे, उनमें से एक बत्तीस साल का जवान था। वो दो महीने के बाद, बीमार हो गया। अब उसी फैमिली डॉक्टर को फिर बुलाया गया। वो आया, उसने उस रोगी को देखा, और कहा ‘तुम ठीक हो जाओगे, तुम्हें कुछ नहीं होगा।’ अब वो रोगी क्या सोचेगा?
स वो सोचेगा, ये डॉक्टर झूठ बोलता है। मेरे दादा को भी यही कहता रहा, कि तुम बच जाओगे, तुम्हें कुछ नहीं होगा। मुझे भी कह रहा है कि तुम बच जाओगे, तुम्हें कुछ नहीं होगा। अब मैं भी मरूंगा।’ वो न मरता हो, तो भी मरेगा। उसका विश्वास खत्म। उसके दिमाग पर यह असर हो चुका है, कि यह डॉक्टर रोगी के सामने झूठ बोलता है, बाकी लोगों के सामने ठीक बोलता है। मैं इस समय रोगी हूँ। मुझे यह झूठ बोल रहा है। बताईये लाभ हुआ, कि हानि हुई।
स वो बूढ़ा व्यक्ति तो बेचारा तीन दिन बाद मरने ही वाला था। अगर डॉक्टर वहाँ सच बोलता तो छह व्यक्तियों का (घर के छह सदस्यों का( डॉक्टर पर विश्वास बना रहता। डॉक्टर के ऊपर वो लोग सच्चा विश्वास करते कि डॉक्टर जो कहता है, सच कहता है। झूठ बोल के वह डॉक्टर न तो रोगी को बचा पाया और उधर छह व्यक्तियों का विश्वास भी खोया। ऐसी स्थिति में लाभ तो कुछ हुआ नहीं, हानि ही हुई। रोगी तो झूठ बोलने पर भी बचा नहीं। इसलिये डॉक्टर को झूठ नहीं बोलना चाहिये, सच बोलना चाहिये।
स एक दिन मैं ऐसे ही कह रहा था। एक व्यक्ति थोड़ा अड़ियल टाइप का था। वो खड़ा होकर बोला, ‘तो आप यह कहना चाहते हैं, कि डॉक्टर को यूं साफ-साफ कह देना चाहिये, अब तुम मरने वाले हो। ऐसा बोल देना चाहिये।’ मैंने कहा- नहीं। ऐसा क्यों बोलें? मनु जी कहते हैं- ‘सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात’ अर्थात् सच बोलना चाहिये, मीठा बोलना चाहिये। कड़वा नहीं बोलना चाहिये।
स उसने पूछा- कैसे बोलना चाहिये? मैंने कहा ऐसे बोलना चाहिये कि – ‘देखो भाई, तुम्हारी कितनी उम्र हो गई? छियत्तर साल। अच्छा देखो, छियत्तर साल उम्र हो गई, खा लिया, पी लिया, सारी दुनिया देख ली। देख ली न? हाँ, देख ली। कोई आदमी हमेशा जीता है क्या? यहां किससे बात चल रही है? रोगी से। किसकी बात चल रही है? डॉक्टर की। तो डॉक्टर उस रोगी को पूछता है? कोई आदमी हमेशा जीता है क्या? तो वो रोगी कहेगा, नहीं। रामचन्द्र जी चले गये न, हाँ चले गये। कृष्ण जी महाराज, और सिकन्दर, वो भी चले गये। हम और तुम भी सब चले जायेंगे, सबको मरना है, बारी-बारी से सबका नंबर लगेगा। अब खा लिया, पी लिया, देख ली दुनिया। छियत्तर साल हो गये, बस दो-चार दिन की बात है। अब तैयारी कर लो, उसके बाद शांतिपाठ होने वाला है।’ उसको अच्छी तरह से, सच बात बताओ, प्रेम से बताओ, सीधी-सीधी बात बताओ, झूठ क्यों बोलो।
स उस व्यक्ति ने पूछा- यदि डॉक्टर द्वारा सच बोलने से रोगी को हार्ट अटैक आ जाये, और रोगी उसी समय मर जाये, तो? तब मैंने उत्तर दियाः- उसको अटैक आ जाये, तो उसका जिम्मेदार डॉक्टर नहीं है। वेदो में डॉक्टर के लिए ‘झूठ बोलना’ नहीं लिखा है, ‘सत्य बोलना’ ही लिखा है। उनके कारण डॉक्टर क्यों झूठ बोले। डॉक्टर क्यों पाप का भागी बने? झूठ बोलेंगे तो दण्ड मिलेगा। हमने ठेका लिया है क्या झूठ बोलने का। हमको भगवान ने कहा है, सच बोलो। हम तो सच बोलेंगे। तुम्हारी गलती का दण्ड हम क्यों भोगें।
स पता है क्यों रिश्तेदार बोलते हैं डॉक्टर को, कि ‘आप रोगी को सच नहीं बताना, उसको झूठ बोलना’?उसका उत्तर सुनिये- आज छियत्तर साल की उम्र हो गई। बचपन से लेकर के बुढ़ापे तक किसी आदमी ने उस रोगी को मरना नहीं सिखाया। एक दिन भी यह पाठ नहीं पढ़ाया, कि हमको मरना है। एक न एक दिन शरीर और संसार छोड़कर जाना है। यह पाठ कोई नहीं पढ़ाता। अब देखो, उसने आज तक मरने की तैयारी ही नहीं की। और आज अचानक उसको डॉक्टर कहे कि ‘भई! देखो, अब दो-चार दिन में शांतिपाठ होने वाला है।’ तो उसको हार्टअटैक आने ही वाला है, झटका तो लगेगा ही। तो यह गलती उन लोगों की है। क्यों नहीं उसको बचपन से मरना सिखाया। उसको ‘मरना है’, ऐसा पढ़ाओ। एक न एक दिन सबको मरना है। अगर उसको बचपन से यह पाठ सिखाया गया होता, तो आज डॉक्टर प्रेम से सच बोलता और उसको जरा भी अटैक नहीं आता। खूब आराम से रोगी सत्य सुनता और कहता, ‘ठीक है, बचपन से सुनते चले आ रहे हैं। अब जाने की तैयारी है, तो जाएँगे।’
मैं आपको अपनी बात सुनाता हूँ। मैं अठारह-उन्नीस साल पहले यहाँ आर्यवन में आया। अचानक एक रात को मुझे पेट में दर्द हो गया। अपेंडिक्साइटिस हो गया। रात को दो बजे फोन करके डॉक्टर को बुलाया। दिसम्बर का महीना था। रात को दो बजे डॉक्टर साहब आये और उन्होंने कुछ इंजेक्शन दिया, कोई दवाई दी, डॉक्टर साहब कहने लगे कि सुबह इनको हॉस्पिटल में ले जाओ, इनका अपेंडिसाइटिस का प्राब्लम है। मुश्किल से थोड़ी नींद आयी। सुबह चार-पांच बजे तक सोया। सुबह हॉस्पिटल में डॉक्टर साहब ने मेरा चैकअप किया। फिर उन्होंने कहा ‘जी, दवाई से कोशिश करते हैं। एक दिन में ठीक हो जाये तो ठीक है, नहीं तो ऑपरेशन करना पड़ेगा। यहाँ आर्यवन से एक आदमी (अटेंन्डेन्ट( मेरे साथ वहाँ सेवा के लिये हॉस्पिटल में गया था। मैंने उस अटेण्डेण्ट से पूछा, ‘डॉक्टर साहब ने क्या बताया?’ तो उन्होंने कहा, ‘जी एक दिन तो दवाई देकर देखेंगे और नहीं ठीक हुआ, तो फिर ऑपरेशन करेंगे।’ मैंने कहा- ठीक है। अब जब अगले दिन ऑपरेशन का नंबर आया तो जो मेरा अटेन्डेन्ट था, वो बेचारा रोने लगा। मैं तो ठीक-ठाक बैठा हूँ। रोगी मैं हूँ और वो अटेन्डेन्ट रो रहा है कि, स्वामी जी आपका ऑपरेशन होगा। मैंने कहा – तुम क्यों रो रहे हो। ऑपरेशन तो मेरा होगा, तुम्हारा तो कुछ नहीं होगा। मेरा अधिक से अधिक क्या होगा, मर ही तो जाऊँगा, और क्या होगा। मर जाऊँगा, तो दूसरा जन्म लूंगा, कोई आत्मा मरती है क्या? इतने साल हो गये गुरूजी से सुनते-सुनते, अब तक क्या सीखा? अब तक इतना भी नहीं समझ में आया, कि ‘मैं आत्मा हूँ, मैं अजर-अमर हूँ, शरीर ही तो मरता रहता है। एक शरीर छोड़ देंगे, दूसरा मिल जायगा,और क्या होगा? फिर तुम चिंता मत करो, खुश रहो। मरूंगा तो मैं मरूंगा, तुम क्यों दुखी हो रहे हो?’ अटेंडेंट को रोगी को समझाना चाहिये, लेकिन यहाँ उल्टा रोगी अटेंडेंट को समझा रहा है।
ऐसे अगर किसी व्यक्ति को बचपन से सिखाया जाये कि हमको हमेशा नहीं जीना है, एक न एक दिन मरना ही पड़ेगा तो वो क्यों दुःखी होगा और क्यों उसको अटैक आयेगा? रोगी के सामने बिल्कुल सच बोलो, कुछ नहीं होगा। झूठ बोलेंगे, तो डॉक्टर को पाप लगेगा। इसलिये डॉक्टर को सच बोलना चाहिये।
स आज डॉक्टर जो झूठ बोलते हैं, वो रोगी के परिवार वालों की वजह से, समाज वालों की वजह से उनको झूठ बोलना पड़ता है। वो नहीं चाहते हैं झूठ बोलना, सच बताना चाहते हैं। पर परिवार वालों की वजह से डॉक्टरों को झूठ बोलना पड़ता है।
स तो हम सब लोगों से यह कहना चाहते हैं, जीना भी सीखो, मरना भी सीखो और सबको सिखाओ। केवल जीना ही मत सिखाओ, यह मत सोचो कि हम सदा जीयेंगे। यह भी सोचो, हमको मरना भी है। मरना क्या है? कपड़ा बदलना, और क्या है? लोग गीता की बात करते हैं। दुनियाभर में गीता का प्रचार कर दिया। इतने बार श्लोक पढ़ लिया, अब तक समझ में नहीं आया कि, जैसे कपड़े बदलते हैं, वैसे शरीर बदलना है। और क्या है? दूसरा शरीर मिल जायेगा।
स और हम तो कहते हैं, जितना जल्दी शरीरों का चक्कर छूट जाये, उतना ही अच्छा है। यहाँ तो दुःख का कारण ही शरीर बताया है। भविष्य में जितने भी शरीर धारण करेंगे, तब तक दुःख ही भोगना पड़ेगा। अगर दुःखों से छूटना है, तो मोक्ष प्राप्त करो। उसके लिये शरीर की वैसे ही जरूरत नहीं। अच्छा है, छूट जायेगा, तो किस्सा ही खत्म हो जायेगा।
यह झूठ बोलने-बुलवाने का दोष उन लोगों पर है, जिन्होंने रोगी को मरना नहीं सिखाया। अगर बचपन से सिखाया होता, तो रोगी तिल-तिल करके नहीं मरता, खुशी से मरता।
स अब दुनिया झूठ बोल-बोल के व्यक्ति को झूठ सुनने का आदी बना दे और हम भी उसके कारण झूठ बोलने लगें, यूं लोगों को अगर खुश करने लगें, तो हमको सब जगह पूरे दिन सुबह से रात तक झूठ ही बोलना पड़ेगा। फिर हम सच बोल ही नहीं पायेंगे। तो गल्तियाँ वो करें और उसका दण्ड हम भोगें। हम ऐसा क्यों करें ?
स इसलिये हमको सच बोलना है, थोड़ा अच्छे ढंग से बोलना है, मीठे ढंग से बोलना है। और लोगों को यह भी सिखाना है साथ-साथ, क्या? कि सब लोगों को मरना भी सिखाओ, केवल जीना मत सिखाओ। सबको यह पाठ पढ़ाओ, एक दिन हमको यह शरीर छोड़ के जाना है। यह भी साथ-साथ सिखाते रहेंगे तो धीरे-धीरे यह समस्या हल हो जायेगी। और अगर यही मानते रहे, कि लोगों ने ऐसा कर रखा है, हमको ऐसा करना ही पड़ेगा, फिर तो कभी भी सत्यवादी नहीं बन सकते, कभी मोक्ष में नहीं जा सकते, हमेशा पाप लगता ही रहेगा।