पहले से सावधानी रखें।
स अच्छे-बुरे लोगों की पहचान करें, कि कौन व्यक्ति अच्छे स्वभाव का है, कौन व्यक्ति खराब स्वभाव का है। अगर इस दुनिया में ठीक तरह से जीना है, तो हमको अच्छे-बुरे की पहचान करना सीखना पड़ेगा।
जो अच्छे स्वभाव का है, उसके साथ मित्रता रखें, उससे दोस्ती रखें, उसके साथ उठना-बैठना रखें, लेन-देन का व्यवहार रखें। जो खराब स्वभाव के लोग हैं, उनसे दूर रहें, बच के रहें, उनसे झगड़ा भी नहीं करना और उनसे रिश्ता भी नहीं रखना। उनसे अलग ही रहें। अच्छे लोगों से मित्रता बनायें, खराब लोगों से दूर रहें।
स और फिर भी मान लो, कोई ऊँचा-नीचा व्यवहार कर दे, और थोड़ा-बहुत नुकसान कर भी दे, तब भी उस पर गुस्सा नहीं करना, क्रोध नहीं करना, चुपचाप कन्नी-काटकर अपना बचाव कर लेना। दुष्टों से झगड़ा नहीं करना, जहाँ तक हो सके झगड़े से बचने की कोशिश करना।
स जिनको आध्यात्म में विशेष उन्नति करनी है, उनको इस तरह से व्यवहार करना पड़ेगा। वे इस तरह से नहीं करेंगे, लड़ाई-झगड़ा करेंगे, कोर्ट-केस करेंगे तो क्या कोर्ट में हमेशा ही न्याय मिलता है? नहीं मिलता। कोर्ट में जाने से कोई विशेष लाभ नहीं। वहाँ दस साल तक केस चलेगा, आपका सारा समय बेकार चला जायेगा, पैसा चला जायेगा। और तब तक के लिए टेंशन हो जायेगी, वो अलग। लाभ कुछ होगा नहीं। तो फिर व्यर्थ में इतना समय, पैसा और बु(ि क्यों खर्च करें? ईश्वर की कोर्ट में केस डाल दें, वही ठीक है। ”ईश्वर न्याय करेगा।” बस ये तीन शब्द बोलो और अपना मस्त रहो। शांति से अपना योगाभ्यास करो।
स छोटी-मोटी बात हो, तो उसके लिये एक और सूत्र है, वो भी तीन शब्द का है- ”कोई बात नहीं”। यानि छोटी-मोटी बात हो तो, बोलो- कोई बात नहीं। और अगर बड़ी बात हो, और हम उससे लड़ नहीं सकते, न्याय नहीं ले सकते, न्याय कोर्ट में नहीं मिलता। तो बस फिर ईश्वर के न्यायालय में केस डाल दो, ‘ईश्वर न्याय करेगा’।
स रोज संध्या में आप एक मंत्र बोलते हैं -”जो हम पर अन्याय करता है, द्वेष करता है, हम उसको ईश्वर के न्यायालय में छोड़ते हैं।” लेकिन दिक्कत यह है, कि हम सिर्फ बोलते ही बोलते हैं, छोड़ते कहाँ हैं? छोड़ते तो हैं ही नहीं। अगर ईश्वर के न्याय पर छोड़ देंगे तो मस्त रहेंगे, कोई टेंशन नहीं है, खूब आनंद से जियो।
स सावधान रहो, दुर्घटना से बचो, खराब लोगों से बच के जियो, यही तरीका है और कोई रास्ता नहीं है। बचो न, इसलिये तो कह रहा हूँ। अत्याचारी को ठीक करने के लिये दूसरे बहुत से क्षत्रिय लोग बैठे हैं। वो यह काम कर लेंगे। लेकिन आप इस काम में लगे रहेंगे, तो आपका योगाभ्यास रह जायेगा।
स और आप पिछले जन्मों में यही तो करते चले आ रहे हैं। पिछले जन्मों में यही तो करते थे, और क्या किया? भई, कब तक करेंगे, ऐसे तो हर जन्म में लाखों झगड़ालू लोग आपको मिलेंगे। आप किस-किस से निपटेंगे। हर आदमी झगड़ने को तैयार बैठा है। किस-किस से झगड़ा करेंगे और कब तक करेंगे? यहाँ तो झगड़े का कोई अंत नहीं है। इसीलिये तो अब तक यहाँ बैठे हैं, वरना अब तक ‘मोक्ष’ में चले जाते। पिछले जन्मों में योगाभ्यास किया होता, तो मोक्ष में चले जाते। पिछले जन्मों में लोगों से लड़ते रहे, इससे लड़ाई की, उससे लड़ाई की, इसीलिए तो यहाँ बैठे हैं। कम से कम अब तो मोक्ष की तैयारी करो।
स परिस्थितियों को सहन करो, अपना बचाव करो, झगड़ा मत करो, द्वेष मत करो, चुपचाप कन्नी-काटकर मोक्ष में सरक जाओ। यहाँ जितनी देर लगायेंगे, उतने ज्यादा दुःख भोगने पड़ेंगे। मैंने तो बता दिया, आगे जैसा आपको ठीक लगे, वैसा करो। मेरी समझ में तो आ गया, कि ‘यहाँ दुनिया में बार-बार जन्म लेना कोई समझदारी का काम नहीं है, इसलिये मैं तो जा रहा हूँ मोक्ष में। आपको चलना हो तो स्वागत है। मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे यहाँ बार-बार जन्म लेना ठीक नहीं लगता। आप भी मेरे साथ चलो। आओ, मोक्ष की यात्रा में बड़ा आनंद मिलेगा।’
स यदि आप सेना में हैं, पुलिस में हैं, तो सहन करना आपके लिये अपराध है। अगर आप सेना में, पुलिस में नहीं हैं, तो फिर कोई अपराध नहीं है। राजा और क्षत्रियों के लिए अपराध है कि वे अन्याय को सहन करें। अत्याचारी को सबक सिखाना उनका कर्तव्य है। आप अधिक से अधिक किसी पुलिस वाले को जाकर सूचना दे सकते हैं, आपका कर्तव्य पूरा। आप पूरे केस में लड़ेंगे, तो आप यहीं रह जायेंगे। फिर मोक्ष नहीं हो पायेंगे।
स अगर आपको मोक्ष में जाना है, तो शास्त्र कहता है- ब्राह्मण बनो। सहन करना ब्राह्मण के लिये धर्म है। मनु जी के अनुसार धर्म का दसवां लक्षण है- ‘अक्रोधो’। दशकं धर्मलक्षमणम् । क्रोध नहीं करना, क्षमा करना, सहन करना, यह ब्राह्मण का तो गुण है, और क्षत्रिय के लिये दोष है। क्षत्रिय व्यक्ति अगर अपराध को सहन करता है, अन्याय को सहन करता है तो उसके लिये यह कार्य दोष है। ब्राह्मण के लिये यह गुण है, वो सहन करेगा, तो उसे मोक्ष मिलेगा। यदि क्षत्रिय अपराध को सहन करता है, और अन्याय का विरोध नहीं करता है, तो उसको नरक मिलेगा, उसको दण्ड मिलेगा।
स एक व्यक्ति ने पूछा- सबके साथ यथायोग्य व्यवहार करना चाहिये। इसका क्या अर्थ है? तो मैंने उसको उत्तर दिया कि- यथायोग्य व्यवहार का मतलब यह नहीं कि मारामारी करो। लोग इसका गलत अर्थ करते हैं। नियम है कि- ‘सबके साथ प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य बरतना चाहिये।’ अब ‘यथायोग्य’ शब्द इस नियम में, इस अर्थ (सेंस( में नहीं है, कि कोई मारामारी करे, तो उससे डबल मारामारी करो। यथायोग्य का अर्थ है, कि जो हमारे सामने पात्र है, जो व्यक्ति हमसे छोटा है, बड़ा है, बराबर का है, किस स्तर (लेवल( का है, उसके साथ उस स्तर (लेवल( का व्यवहार करो। जब प्रीतिपूर्वक व्यवहार करना है, धर्मानुसार व्यवहार करना है तो फिर मारामारी कहाँ से आ गई? हम राजा नहीं हैं, हम क्षत्रिय नहीं हैं। यह नियम क्षत्रियों के लिये नहीं बनाया गया। यह नियम तो सबके लिये है। जहाँ क्षत्रियों का प्रसंग हो, वहाँ पर यथायोग्य का अर्थ यह होगा कि कोई ब्राह्मण है, कोई परोपकारी व्यक्ति है, उसका सम्मान करो और कोई दुष्ट, डाकू, चोर है, उसकी पिटाई करो, और उसको जेल में डालो। यह क्षत्रियों के लिये उपदेश है। लेकिन यह नियम केवल क्षत्रियों के लिये नहीं है। यह नियम तो सबके लिये है। इसका अर्थ यह है कि सबके साथ यथायोग्य व्यवहार करो, यदि हमसे बड़ा है तो उसका आदर सम्मान करो, बराबर का है तो बराबर वाला व्यवहार करो, और छोटा है, तो उसको आशीर्वाद दो, स्नेह, प्रेम से उसको खाने-पीने को दो, खुश रखो। यह है- यथायोग्य व्यवहार।