दस वर्ष के लड़के-लड़की ठीक से भोजन नहीं करते। इस तरह के बच्चों का मन ईश्वर में लगाने के लिये उन्हें कैसी शिक्षा दी जाये?

ये समस्याएँ घर-घर में है। बच्चों से पूछो- क्या खाओगे बेटा? तो अधिकांश बच्चे बोलेंगे- आलू। अगर पूछें कि- अच्छा, यह बैगन खा लो। तो बच्चे बोलेंगे – न बैगन नहीं खाऊँगा, वो मुझे पसंद नहीं है। ऐसे नखरे घर-घर में बहुत हैं। तो बच्चों के नखरे नहीं सुनना। बच्चों की एक भी गलत बात नहीं माननी। बच्चो ठीक बात बोलें, तो सब मानो। भाई, टिंडे में, दूधी (घिया( में क्या तकलीफ है? इन्हें खाना स्वास्थ के लिये अच्छा है। नेत्र-ज्योति (आई-साइट( के लिये अच्छा है। पालक, मैथी, सरसों आदि-आदि जो हरी पत्ती वाले साग हैं, वो बच्चे नहीं खाते। इससे आई-साइट कमजोर हो जाएगी। छोटी उम्र में चश्मे लग जाएंगे। इसलिए उनको समझाओ और खिलाओ।
स हम भी छोटे बच्चे थे। एक दिन हमारे घर में टिंडे की सब्जी बनी। वो हमको अच्छी नहीं लगी तो हमने कहा- यह टिंडे की सब्जी हम नहीं खायेंगे। हमारे लिये दूसरी सब्जी बनाओ। माता जी ने कहा- बेटा, हमारे घर में एक ही सब्जी बनती है। खानी है तो खा ले, नहीं तो सो जा। बोलिये, क्या करेंगे? भूखे सो जायेंगे। हमको खानी पड़ी। एक दिन नखरा किया, दूसरे दिन किया। वो ही जवाब था कि आज तो बैगन की सब्जी बनी है, तुमको यही खानी पड़ेगी, नहीं खानी तो भूखे सो जाओ। यह घर है, कोई होटल नहीं है। तुम्हारे लिये दूसरी सब्जी नहीं बनेगी। दो दिन नखरा किया। तीसरे दिन अक्ल ठिकाने आ गयी। बस, सीख गये। तब से लेकर आज तक जो मिलता है, खाते हैं, सब खाते हैं, कोई नखरा नहीं। भगवान ने सारी सब्जियाँ हमारे स्वास्थ के लिये ही बनाई हैं। अच्छी बनाई हैं। बच्चों को समझाओ और बारह-तेरह साल की उम्र तक जबरदस्ती खिलाओ। तब तक उनको आदत हो जाएगी। आगे फिर अपने आप खायेंगे। उनको इस तरह से खिलाओ।
स ऐसे बच्चों या सभी बच्चों का मन ईश्वर में लगाने के लिये उन पर नियम लगाओ, कि सुबह शाम ईश्वर का ध्यान, यज्ञ, सन्ध्या, गायत्री मन्त्र का पाठ अवश्य करना पड़ेगा । जो नहीं करेगा, उसको नाश्ता, भोजन आदि नहीं मिलेगा। अच्छे खिलौने, फल, मिठाई, कम्प्यूटर आदि की सुविधा नहीं मिलेगी। जो करेगा, उसे सब सुविधाएँ और कभी-कभी विशेष इनाम भी मिलेगा बच्चों पर ऐसे नियम उनकी 12-13 वर्ष की उम्र तक जबरदस्ती लगायें । अन्यथा आपके बच्चे बिगड़ जाएँगे । भविष्य में वे स्वयं दुखी होंगे और सबको दुख देंगे ।

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