ज्ञान बिना कर्म नहीं, तो मोक्ष के लिए पतंजलि निर्दिष्ट अष्टांग योग पढ़ना, समझना, आचरण में लाना क्यों काफी नहीं है? हर एक दर्शन, वेद पढ़ना क्यों जरूरी है? इसमें तो काफी समय लगेगा?

इन दो प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित हैंः-
स मुक्ति भी कोई जल्दी थोड़े मिलने वाली है। मुक्ति प्राप्त करने में समय तो लगेगा।
स सारे दर्शन पढ़ना होगा। केवल योग-दर्शन से काम नहीं चलेगा। केवल एक शास्त्र पढ़ने से हमारा ज्ञान-विज्ञान उतना विकसित नहीं होता। उसका ज्ञान बहुत संक्षिप्त और सीमित रहता है। बहुत सी बातें समझ में नहीं आतीं। मन में प्रश्न उठेंगे- ईश्वर को क्यों मान लो, पुनर्जन्म को क्यों मान लो, मुक्ति को क्यों मान लो। इन प्रश्नों का उत्तर कहाँ से लाएंगे? इनका उत्तर योग-दर्शन तो नहीं देगा। और योग-दर्शन देगा तो, सीधा-सीधा वाक्य बोल देगा- हाँ भाई, ईश्वर होता है, सबका गुरु है, अनादिकाल से है, अनंतकाल तक रहेगा। इतने में तो आपको संतोष नहीं होगा।
स आज तो साइंस का विद्यार्थी पहले पूछता है कि ‘क्यों’ मान लें ? क्यों का उत्तर, योग-दर्शन नहीं देगा। उसका उत्तर देगा-‘न्याय दर्शन’। अगर आपको ‘क्यों’ का उत्तर नहीं मिलेगा, तो आपको ‘संतोष’ नहीं होगा। बात आपके दिमाग में जमेगी नहीं।
आप कहेंगे- ”यह तो बस ऐसे ही थोपा-थोपी वाली बात है। मान लो, हाँ, भगवान है, मान लो, अगला जन्म है। भई, हमको नहीं जँचती, यह “मान लो वाली” बात। इतने से बात नहीं बनेगी। क्यों मान लो? उसका कारण हमको स्पष्ट होना चाहिए। दिमाग में बैठना चाहिए, तब मानेंगे। ”
इसके लिए व्यक्ति को अन्य दर्शन भी पढ़ने होंगे। इसमें कोई शंका नहीं है कि- पढ़ने में लंबा समय लगेगा और वो समय लगाना पड़ेगा, आपको भी और मुझे भी मेहनत करनी है, कीजिए।
स प्रश्न यह भी किया है कि जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति ही है तो क्या संस्कृत पढ़ना, चारों वेद पढ़ना, सभी दर्शन पढ़ना जरूरी है? सारे न भी पढ़ो तो कम से कम इतना तो पढ़ लो कि दुनिया समझ में आ जाए, ईश्वर समझ में आ जाए, जीव समझ में आ जाए।
इतना तो व्यवहारिक रूप से समझ में आना चाहिए कि –
”तीन वस्तुएं अनादि हैं, तीनों के गुण, कर्म, स्वभाव ये-ये हैं। प्रकृति दुःखदायी है, चारों ओर दुःख ही दुःख है।”
महर्षि पतंजलि लिखते हैं – ‘दुखमेव सर्वम् विवेकिनः’। बु(िमान व्यक्ति की दृष्टि में चारों ओर दुःख ही दुःख है। और इतना समझने के लिए भले ही आप चारों वेद न भी पूरे पढ़ें, परन्तु कुछ दर्शन, कुछ संस्कृत, कुछ उपनिषद्, कुछ वेद तो पढ़ना ही होगा। इसके बिना बात नहीं बनेगी।
स सांख्य दर्शन का पहला सूत्र है – ‘अथ त्रिविध दुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्त पुरुषार्थः।”अर्थात तीन प्रकार के दुःखों से पूरी तरह छूट जाना, यह मनुष्य का सबसे अंतिम लक्ष्य है। इसलिए दुःखों से छूटो और मोक्ष की प्राप्ति करो। बार-बार शुरू से आखिर तक सभी दर्शन, वेद, उपनिषद्, यही कहते हैं।
अष्टांग-योग का पालन करिए। थोड़ी संस्कृत भाषा सीख लीजिए। चार-पाँच दर्शन पढ़ लीजिए। इतना तो जरूरी है बाकी अपना योगाभ्यास कीजिए, समाज की सेवा कीजिए, मोक्ष मिल जाएगा।

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