एक व्यक्ति कार चला रहा है। और वो कार चलाते-चलाते एक्सीलेटर पर पाँव रखता है। और एक्सीलेटर को थोड़ा दबाता है तो कार भागती है। फिर पाँव थोड़ा पीछे खींच लेता है, तो स्पीड कम हो जाती है। और वो बार-बार ऐसे एक्सीलेटर दबाता रहे तो कार फिर ऐसे ही चलेगी न। झटके मार-मार के, फिर चलेगी, फिर स्लो हो जायेगी, फिर चलेगी, फिर स्लो हो जायेगी। अब बताइये, इसमें किसका दोष है। कार का दोष है , कि ड्रायवर का दोष है। तो आप मन को ऐसे ही करते रहते हैं। उसको बार-बार एक्सीलेटर देते रहते हैं। और कहते हैं -साहब, यह ज्यादा परेशान करता है। वास्तव में मन परेशान नहीं करता है। आप ही उसको भगाते रहते हैं। आप उसमें विचार उठाते रहते हैं, वो भागता रहता है। जैसे ‘कार’ जड़ है वैसे ही ‘मन’ जड़ है।
स गलती हमारी है। हमने मन को ठीक तरह से चलाना सीखा नहीं। अब मन को चलाना भी सीख लीजिये और मन को रोकना भी सीख लीजिये। तो यह समस्या हल हो जायेगी। मन कैसे चलता है, मन में विचार कैसे आते हैं। पहला कारण है- ‘इच्छा’ और दूसरा कारण है- ‘प्रयत्न’। तो लोग जब ध्यान में बैठते हैं, वो मन में दुनिया भर की इच्छायें पैदा करते रहते हैं। कपड़े खरीदने हैं, शॉपिंग में जाना है, फलानी पार्टी में जाना है, बच्चे की स्कूल की फीस भरनी है, कोर्ट में झगड़ा चल रहा है। वो तरह-तरह की इच्छायें पैदा करते रहते हैं। और फिर उन बातों का याद करने का प्रयत्न करते रहते हैं। इच्छा करते रहते हैं, प्रयत्न करते रहते हैं, तो मन में विचार उठते रहते हैं।
स आप उन सब बातों को याद करने की इच्छा को बंद कर दो। और उन सब बातों को याद करने का प्रयत्न बंद कर दो। इच्छा भी नहीं करनी, प्रयत्न भी नहीं करना। इस तरह कोई विचार नहीं आयेगा। मन बिल्कुल आपकी इच्छा के अनुसार चलेगा।
स अगर एक मिनट का प्रयोग करना हो तो अभी कर लो। हाँ जी करेगें। आप आसन लगाइये, कमर सीधी, गर्दन सीधी, आँखे बंद। पूरी सावधानी के साथ मेरी बात को सुनें, और मन में वैसा ही सोचने का प्रयत्न करें। कल्पना कीजिये, आप अपने घर में बैठे हैं। अपने ड्राइंग रूम में, जहाँ आपके अतिथि लोग आकर बैठते हैं, उस कमरे में बैठे हैं। आपके सामने टेबल पर अखबार पड़ा है। आपने अखबार उठाया और उसकी हेडलाइन पढ़नी शुरू की। कश्मीर में बम विस्फोटः चार मृत, अठारह घायल। दूसरा समाचार- महाराष्ट्र के एक गाँव में चोरी। पाँच लाख की संपत्ति चोर लूट कर ले गये। आपने समाचार पढ़ा। इतने में दरवाजे पर घंटी बजी। आपने अखबार छोड़ दिया, उठकर के बाहर गये, दरवाजा खोला। आपके एक मित्र आये। आपने उनको नमस्ते किया, कहा-आइये, स्वागत है, बहुत दिनों बाद मिले। उनको प्रेम से अंदर लेकर आये। वहीं पर बैठाया, ड्राइंग रूम में। हालचाल पूछा, सब ठीक-ठाक है? हाँ ठीक-ठाक है। फिर उनको बैठाकर आप रसोई में गये। एक डिब्बे में से आपने चार लड्डू निकाले, प्लेट में लड्डू रखे। दो गिलास पानी भरा, और ट्रे में पानी का गिलास और लड्डू की प्लेट ले आये। उन आये हुये मित्र को लड्डू खिलाया, एक लड्डू मित्र ने खाया, एक लड्डू आपने खाया। दोनों ने थोड़ा-थोड़ा पानी पिया। दस मिनट कुछ बातचीत हुई, कुछ चर्चा हुई, उसके बाद वो मित्र जाने लगे। तो आपने प्रेम से विदाई दी। और उनको बाहर दरवाजे तक छोड़कर आये। बस, अब आप आँखें खोल सकते हैं। अब बताइये, आपने अपने मित्र को लड्डू खिलाया, कि नहीं खिलाया। खिलाया। और आपने खाया कि नहीं खाया, खाया न। अब बताइये, दूसरा विचार क्यों नहीं आया। अब नहीं आया न। अब वही विचार आया। अब तो दूसरा विचार नहीं आया। और ध्यान में दूसरा विचार क्यों आता है।
स कारण पहले मैं बता चुका हूँ। लड्डू खाने में रूचि है, ईश्वर में रूचि नहीं है, गड़बड़ी यह है। लड्डू खा रखा है, पानी पी रखा है, मित्र को देख रखा है, अपना घर भी मालूम है, ड्राइंग रूम भी पता है, न्यूज पेपर भी रोज पढ़ते हैं। इन सब से हम परिचित हैं और इन चीजों में, कार्यों में खूब रूचि है। इसलिये वहाँ पर मन खूब लगता है। और ईश्वर में रूचि नहीं, ईश्वर का महत्व नहीं जानते, ईश्वर के प्रति श्र(ा कम है, इसलिये ईश्वर का विचार मन में नहीं टिकता है। तो इस प्रयोग से पता चला, कि हमारी इच्छा से, हमारे प्रयत्न से ही मन में विचार उठते हैं। बस, तो ईश्वर के प्रति इच्छा पैदा करो, ईश्वर के प्रति रूचि बनाओ और उसको स्मरण करने का प्रयत्न करो। तो यह मन ठीक-ठाक चलेगा। कार की तरह चलेगा। फिर दूसरी बात नहीं उठायेंगे, ईश्वर की बात उठायेंगे।