आत्मा ‘अणु-स्वरूप’ मतलब बहुत सूक्ष्म होती है। आत्मा एक जगह रहती है। वह स्थान नहीं घेरती। जीवात्मा निराकार है। नियम सुन लीजिये। जो वस्तु चेतन होती है, वो निराकार होती है। ईश्वर चेतन है या जड़? चेतन। ईश्वर साकार है या निराकार? निराकार। ईश्वर चेतन है, ईश्वर निराकार है। जीवात्मा चेतन है या जड़? उत्तर है- चेतन है। तो वो भी निराकार है, जैसे ईश्वर। और यह प्रकृति जड़ है या चेतन? जड़। प्रकृति जड़ है, तो वो साकार है। दोनों नियम साफ हैं। जो वस्तु चेतन होती है, वो निराकार होती है। जो वस्तु जड़ होती है, वो साकार होती है। प्रकृति जड़ है, वो साकार है। ईश्वर और जीव चेतन हैं, वो दोनों निराकार हैं। मन, आदि जड़ होने के कारण सब साकार हैं। इनका आकार बहुत छोटा है। हम देख नहीं पाते, वो अलग चीज है। लेकिन हैं ये सब साकार। प्रकृति- (सत्त्व, रज, तम( वो भी जड़ हैं, वो भी साकार हैं।
महर्षि दयानंद जी ने ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ में लिखा है कि- साकार वस्तु से ही साकार वस्तु उत्पन्न हो सकती है। निराकार से साकार नहीं हो सकती। एक संदर्भ में लिखा है- जहाँ पर ये लोग मानते हैं, कि यह जगत ईश्वर का ही रूपांतर है, मतलब ईश्वर से ही यह जगत बना है, इस जगत का रॉ-मटेरियल ईश्वर है। इसके संदर्भ में महर्षि दयांनद जी ने लिखा, कि- ईश्वर साकार है या निराकार? यदि ईश्वर निराकार है, और जगत का उपादान कारण ईश्वर होवे, तो जगत भी निराकार होना चाहिये, परंतु जगत तो साकार है। इससे सि( हुआ, कि इसका रॉ-मटेरियल भी साकार है। जगत साकार है, यह प्रत्यक्ष है। इससे अनुमान हुआ, कि जो इसका उपादान कारण प्रकृति है, वो भी साकार है। उसी प्रकृति से- (साकार सत्, रज, तम से( ही मन, इन्द्रियाँ, बु(ि, शरीर आदि सब पदार्थ बने हैं। इसलिये मन, बु(ि, इन्द्रियाँ जड़ भी हैं, साकार भी हैं।