जीवात्मा’ का स्थान मनुष्य ‘शरीर’ के अंदर कहाँ है?

कठोपनिषद् में लिखा है, कि- ‘हृदि ह्येष आत्मा’ अर्थात् आत्मा हृदय में रहता है। लेकिन वो हमेशा एक जगह नहीं रहता। उपनिषदों में अनेक स्थानों पर ऐसी चर्चा आती है। जीवात्मा चौबीस घंटे एक जगह नहीं रहता, वो स्थान भी बदलता रहता है। जैसे आप अपने घर में क्या एक ही कमरे में बैठे रहते हैं, बदलते रहते हैं न। कभी बेडरूम में चले गए, कभी किचन में चले गए, कभी बाथरूम में चले गए, कभी ड्राइंगरूम में चले गए। ऐसे ही यह शरीर जीवात्मा का घर है। वो जब इच्छा होती है, तो अपनी जगह बदल लेता है।
जीवात्मा के सोने के लिए लिखा है, कि हृदय में से बहुत सारी नाड़ियाँ निकलती हैं, उनमें से एक नाड़ी का नाम है- ‘पुरीतत’। जब जीवात्मा सोता है, तो पुरीतत नाम की नाड़ी में जाकर सोता है, यह उसका बेडरूम है। एक उपनिषद् है- ”ऐतरेय’ उपनिषद्, उसमें जीवात्मा के स्थान की चर्चा आई है। उसमें एक वाक्य लिखा है- ‘त्रयः आवसथाः’ अर्थात् जीवात्मा के शरीर में निवास के तीन स्थान हैं- ‘त्रयः’ तीन। फिर आगे लिखा है-‘अयं आवसथ, अयं आवसथ, अयं आवसथा।’ इसका मतलब होता है- यह स्थान है, यह स्थान है और यह स्थान है। अब कौन सा स्थान है, उसका नाम तो लिखा नहीं। दरअसल, विद्यार्थियों को कोई गुरूजी पढ़ा रहे होंगे, जैसे अब आप मेरे सामने बैठे हैं। और मैं कहूँ देखो, जीवात्मा शरीर में तीन जगह रहता है, एक यहाँ रहता है, एक यहाँ रहता है, और एक यहाँ रहता है। अब मैंने ऐसे इशारे से बता दिया और नाम नहीं बोला, तो किसी लिखने वाले ने यूँ का यूँ लिख दिया, कि- यहाँ रहता है, यहाँ रहता है, यहाँ रहता है। अब भई! सामने दिखता हो तो समझ भी जाए, किताब में लिखने से क्या पता चले, कि कहाँ रहता है? ‘यहाँ’ का मतलब क्या? इसलिए पता नहीं चला, कहाँ रहता है। पर तीन जगह लिखा है, यह तो स्पष्ट है। तीन जगह कौन सी? यह स्पष्ट नहीं है।
जीवात्मा के तीन अलग-अलग स्थान हैं। जाग्रत में जीवात्मा कहीं और होता है, स्वप्न में कहीं और होता है, सुषुप्ति में कहीं और होता है। मतलब स्थान बदलता रहता है। इतनी बात तो स्पष्ट है।
एक उपनिषद् है- ‘ब्रह्मोपनिषद्’। वैसे तो वो प्रमाणिक उपनिषद् नहीं है। पर कुछ लोग दूसरे उपनिषदों को भी पढ़ लेते हैं। कुछ अच्छी बातें वहाँ भी मिल जाती हैं। ‘ब्रह्मोपनिषद््’ में एक जगह पर आत्मा के तीन स्थान बताए गए- एक नेत्र, एक कंठ, और एक हृदय। ये तीन स्थान उसमें नामपूर्वक लिखें हैं। वैसे प्रमाणिक तो नहीं है, फिर भी हो सकता है, वो भी अनुकूल हो। इसलिए कुछ कह नहीं सकते, लेकिन जीवात्मा जगह बदलता है, इसमें कोई संशय नहीं है।

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