उपनिषद् में लिखा है, कि एक कीड़ा अपने दो अगले पाँव उठाकर के ऐसे रख देता है और पीछे के पाँव उठा करके यूँ आगे चलता रहता है। जैसे वो अगले पाँव उठाकर यूँ चलता है, बस इतनी देर में जीवात्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण कर लेता है।
मोटे-तौर पर यह मानना चाहिए कि उसको बहुत ज्यादा देर नहीं लगती, क्योंकि हर आत्मा का कर्मों का बही-खाता (एकाउंट( तैयार ही रहता है।