जातिपांति और ईश्वर—विषयक

श्री चक्रवर्ती के प्रश्न तथा उनके उत्तर का विवरण

प्रश्नजातिभेद है या नहीं ?

उत्तरमनुष्य एक जाति, पशु एक जाति, पक्षी एक जाति, जातिभेद

इसी प्रकार है ।

उनके इस उत्तर को सुनकर हम मौन हो गये तब स्वामी जी ने कहा

कि तुम्हारा प्रश्न कदाचित् यह है कि वर्णभेद है या नहीं ? हमने कहा यही

हमारा अभिप्राय है । स्वामी जी ने कहा निस्सन्देह वर्णभेद है। जो वेदज्ञ और

पण्डित है, वह ब्राह्मण; जो उससे न्यून और ज्ञानवान् हैं वे क्षत्रिय; जो व्यापार

करते हैं वे वैश्य और जो मूर्ख हैं वे शूद्र हैं । और जो महामूर्ख वे अतिशूद्र

हैं । तब हम बहुत प्रसन्न हुए और इसी से स्वामी जी पर हमारी भक्ति आई।

दूसरा प्रश्नहमारा यह था कि ईश्वर मूर्तिवाला साकार है या निराकार?

स्वामी जी ने उत्तर दिया कि वर्त्तमान संस्कृत पुस्तकों में तो बहुत से

ईश्वर बताये हैं । तुम कौन सा ईश्वर चाहते हो, सच्चिदानन्द आदि लक्षणवाला

चाहते हो तो वह ईश्वर एक है और निराकार है ।

हम ने पूछा कि वह जो संसार का स्वामी है उसका आकार है या

नहीं? स्वामी जी ने उत्तर दिया उसका आकार नहीं है । वह तो सच्चिदानन्द

है, यही उसका लक्षण है ।

चौथा प्रश्न हम ने चौथा प्रश्न पूछा कि उसके मिलने का क्या उपाय

है ? स्वामी जी ने उत्तर दिया कि बहुत दिन तक योग करने रूपी कर्म से

ईश्वर की उपलब्धि होती है ।

हमने पूछावह योग किस प्रकार का है ? उस पर स्वामी जी ने अष्टाग्

योग की बातें हम को लिख दीं । वह कागज हमारे पास है और मौखिक

इस प्रकार समझाया कि जब रात तीन घड़ी शेष रह जाये उस समय उठकर

मुंह हाथ धो पद्मासन लगाये । जहां तुम्हारी इच्छा हो बैठो, परन्तु स्थान निर्जन

हो । गायत्री का अर्थ सहित ध्यान करो और वह अर्थ भी लिख दिया जो

अब तक मेरे पास विघमान है । (लेखराम पृष्ठ २१५—२१६)