जब हम शिविर इत्यादि में आते हैं। तब सब कुछ अच्छा लगता है। क्रोध कम हो जाता है। लेकिन जब हम वापस सांसारिक-जीवन में जाते हैं, तो ऐसे नहीं जी पाते, क्या करें?

पहला उपाय तो यह है कि- सांसारिक जीवन में वापस मत जाओ, यहीं रहो। जब यहाँ शांति से जी रहे हो, तो क्यों जाओ बेकार दुनिया में? वहाँ काम, क्रोध, लोभ, ईष्या, द्वेष आदि सब झंझट हैं। इसलिए एक उपाय तो यह है, कि- ऐसे किसी भी आश्रम में रहो, जहाँ व्यवस्था मिले। यहाँ रहने की गारंटी मेरे अधिकार में नहीं है। अधिकारी हैं, उनसे पूछो, कि यहाँ के नियम क्या हैं? आपकी योग्यता यहाँ रहने की है या नहीं है। वो अधिकारी बतायेंगे। मैंने तो आपको सुझाव दिया, कि यदि ऐसा जीवन अच्छा लगता है, संसार में झंझट होता है, तो वो जीवन छोड़कर किसी भी आश्रम में रहो। जहाँ सुविधा, अनुकूलता हो, वहाँ रहो।
दूसरा- यहाँ से खूब तैयारी करके जाओ, खूब संकल्प करके जाओ, कि हम नगर के जीवन में जायेंगे, लेकिन यह छल-कपट नहीं करेंगे। फिर उसके हिसाब से वहाँ मेहनत करो। यहाँ से जब जायेंगे तो कुछ दिन तक तो आपका वो संकल्प टिकेगा और आप ठीक मेहनत करेंगे। शांति से जी लेंगे। कुछ महीने में आपकी बैटरी डाउन हो जाएगी, तो कुछ महीने बाद चार्जिंग के लिये अगले शिविर में फिर आओ और अपनी बैटरी चार्ज करो। फिर वापस जाओ।
तीसरा- कुछ महीने या वर्ष (जब तक आपकी सांसारिक जिम्मेदारी पूरी हो जाए, तब तक( शिविरों में आ-आकर वानप्रस्थी बनने की तैयारी करो । जब सांसारिक जिम्मेदारी भी पूरी हो जाए, वानप्रस्थी बनने की योग्यता भी बन जाये, तब वानप्रस्थी बनकर किसी आश्रम में रहना शुरु करो । इस प्रकार से दो-तीन विकल्प हैं, जो आपको ठीक लगे, उसको अपनाओ।

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