जब शरीर जड़ है, तो इसकी पीड़ा हमें क्यों होती है?

अच्छा जब आपकी कार टूटती है तो किसको पीड़ा होती है? मकान गिर जाता है, तो किसको पीड़ा होती है? आपको ही होती है न। वो जड़ है। जड़ मकान टूटने पर, जड़ कार के टूटने पर भी आपको पीड़ा होती है। इसलिये होती है कि क्योंकि आपका उससे कोई संबंध है। और जापान में भूकंप आये, पाकिस्तान में भूकंप आये तब पीड़ा नहीं होती। क्योंकि उससे आपका संबंध नहीं है। यहाँ सवाल जड़ और चेतन का नहीं है, सवाल तो संबंध का है। जिस वस्तु से हमारा संबंध है, उस वस्तु के टूटने-फूटने, नष्ट होने पर हमको कष्ट होता है, वो वस्तु चाहे जड़ हो, चाहे जो भी हो। मकान जड़ है, कार भी जड़ है, वो टूट जाते हैं तो पीड़ा होती है, क्योंकि वो हमारी कार है। ऐसे ही यह शरीर हमारा है। शरीर जड़ है, और शरीर में चोट लगती है तो हमको कष्ट होता है। कष्ट तो चेतन को ही होना है। जड़ वस्तु तो सुख-दुख को महसूस करती नहीं। चेतन हैं हम (आत्मा(, इसलिए हमको ही कष्ट होता है। तो अब शरीर को जो सामान्य चोट लगती है, उतना कष्ट तो हम सहन भी कर लेंगे। पर ज्यादा गहरी चोट लगेगी, तो उस कष्ट को रोकने का हमारा सामर्थ्य नहीं है। इसलिये हमको न चाहते हुए भी वो कष्ट भोगना पड़ता है। जैसे- सर दुख रहा है, पेट दुख रहा है, बुखार आ गया, तो उस कष्ट को हम रोक नहीं पाते, जीवात्मा में इतनी शक्ति नहीं है। इसलिये उसको भोगना पड़ता है। और फिर दवाई-चिकित्सा करते हैं तो वो रोग हट जाता है, वो कष्ट मिट जाता है। सार यह हुआ – शरीर के साथ हमारा संबंध होने के कारण हमें पीड़ा होती है।

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