जब ध्यान में बैठा जाये, तो क्या देखने का प्रयत्न किया जाये। अंधकार, प्रकाश, ओम, प्रतीक या कुछ और?

तो देखिये! यह लम्बा-चौड़ा विषय है। और हर व्यक्ति का स्तर एक जैसा नहीं होता है। अलग-अलग स्तर के व्यक्ति के लिये अलग-अलग प्रकार के अभ्यास हैं। पहले-पहले आँख खोलकर के भी आप किसी वस्तु को देख सकते हैं। ऐसा पांच दिन, दस दिन, पन्द्रह दिन करें, बहुत दिन नहीं करें। दीवार पर एक ओम अक्षर लिख लीजिये और उस ओम को देखिये। स्थिर दृष्टि से दस-पांच दिन उसको देखिये। पाँच मिनट, दस मिनट रोज देखिये। तो देखते-देखते आपको दृष्टि स्थिर करने का अभ्यास हो जायेगा। उसके बाद फिर इस अभ्यास को बन्द कर देंगे। अगला अभ्यास करेंगे।
फिर आंख बंद करके मन के अंदर कोई प्रकाश, कोई सूर्य, कोई चन्द्रमा, कोई दीपक इस तरह की कोई प्रकाश वाली वस्तु को देखेंगे। आँख बंद करके पांच दिन, दस दिन, पन्द्रह दिन तक देखेंगे, इससे अधिक नहीं। नहीं तो फिर उसी अभ्यास में चिपक जायेंगे, उससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जायेगा। यह प्रारंभिक अभ्यास है। पहले आंख खोलकर करें, फिर आंख बंद करके करें। आँख बन्द करके कोई प्रकाश देंखे, कोई दीपक देखें, कोई चन्द्रमा देखें, फिर धीरे-धीरे और अगला अभ्यास शुरू करें।
धीरे- धीरे सब प्रकाश को समाप्त कर दें। जैसे मान लीजिये-अमावस्या की रात है, तो उस दिन चन्द्रमा भी नहीं होता और रात को सूरज भी नहीं दिखता। और मान लीजिये कि- खूब गहरे बादल छाये हुये हैं, तो तारे भी नहीं दिखेंगे, उनका भी प्रकाश नहीं है। और यह जो सरकारी बिजली आती है, वो भी बंद। अब तो सब तरफ घुप्प अंधेरा हो जायेगा। फिर ऐसा देंखें, सब तरफ से अंधकार ही अंधकार, कोई प्रकाश नहीं। मन में ऐसा देखेंगे, तो क्या होगा? आपको केवल यह आकाश दिखाई देगा, शून्य आकाश। इस शून्य आकाश में अब ईश्वर का विचार करेंगे। ईश्वर एक देशीय है, या सर्वव्यापक? सर्वव्यापक है। यह सि(ांत की बात है। तो जब ध्यान में बैठेंगे, तब सि(ांत का क्रियात्मक रूप देखेंगे। उसको प्रैक्टिकल करेंगे, कि ईश्वर सर्वव्यापक है। जैसे आकाश दूर तक फैला हुआ है और आकाश की कोई आकृति नहीं है अर्थात् आकाश निराकार है। जैसे आकाश दूर तक फैला हुआ है, निराकार है, ऐसे ही ईश्वर भी आकाश के समान दूर तक फैला हुआ है। और वो भी निराकार है। उसकी भी कोई आकृति नहीं है। तब ऐसे ईश्वर का ध्यान करेंगे, तो आपको सफलता मिलेगी।

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