जब तक हम स्थूल (शारीरिक, वाचनिक) रूप से किसी पर प्रभाव नहीं डालते, तब तक गुनाह नहीं हो सकता। मन में एक पल के लिए बुरा विचार आया और अगले ही पल विचार बदल गया। तो विचार मात्र से पाप क्यों माना जाए अर्थात् बिना क्रिया के परिणाम या फल कैसे ?

हमने मन में कुछ बुरा विचार किया और अगले ही पल उस विचार को बदल दिया, यानि कोई बुरा विचार किया, लेकिन उसकी क्रिया नहीं की और फिर वो बुरा विचार मन से हटा दिया। हमारे विचारमात्र से कोई प्रभावित या सुखी-दुःखी नहीं होता तो इसमें पाप क्यों माना जाए? यह प्रश्न है।
स भले ही हमारे बुरे विचार से दूसरों का कोई नुकसान नहीं हुआ, वाणी से हमने कुछ नहीं कहा, शरीर से किसी पर कोई अत्याचार नहीं किया, केवल मन ही मन में बुरा सोचा। इससे दूसरों को तो प्रत्यक्ष रूप से कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन हमारा नुकसान जरूर हुआ।
अगर हम गलत योजना बनाते हैं, बुरी योजना बनाते हैं, तो इससे हमारे संस्कार अवश्य बिगड़ेंगे और आगे हम भविष्य में भी गलत योजनायें बनायेंगे और गलत काम करेंगे। हर बार ऐसा थोड़े होगा कि हमने योजना बनाई, और बदल दी। हर बार बदलेंगे नहीं। कई बार तो कर ही डालेंगे। तो हमारे विचार, संस्कार न बिगड़ें, इसलिए हमको मन मे भी बुरी बात नहीं सोचनी चाहिए।
यहाँ एक और सावधानी रखने की बात यह है कि, मानसिक कर्म में दो स्थितियाँ हैं। एक स्थिति में तो केवल ‘विचार’ मात्र है, वो कर्म नहीं माना जायेगा। जबकि दूसरी स्थिति में, वो ‘कर्म’ भी माना जायेगा।
स पहली स्थिति क्या है? एक व्यक्ति ने मन में सोचा- झूठ बोलूँ, या नहीं बोलूँ? यहाँ दिमाग में दो पक्ष हैं कि, मैं झूठ बोलूँ, या फिर नहीं बोलूँ? यहाँ तक तो इसका नाम है – ‘विचार’। अभी यह कर्म नहीं बना। इसका कोई दंड नहीं है।
स अगर दो निर्णयों में से एक निर्णय कर लिया कि ‘आज झूठ बोलूँगा’। ऐसा निर्णय कर दिया, तो यह ‘कर्म’ बन गया। इसका दंड जरूर मिलेगा। ‘आज चोरी करूँगा’, यदि मन में यह फैसला कर लिया, फिर बाद में चाहे हम शरीर से न करें, यानी योजना बदल दें, लेकिन एक बार योजना बन गई, निर्णय कर लिया कि आज चोरी करनी है, तो वो कर्म बन जाएगा, इसलिए इसका दंड भी अवश्य मिलेगा। यह ‘मानसिक-कर्म’ है। इसका ‘मानसिक-दंड’ मिलेगा। इससे हमारे संस्कार बिगड़ेंगे।
स सावधानी रखें और गलत योजनाएं कतई नहीं बनाएं। विचार गलत आते हैं, अच्छे आते हैं, वो आते ही रहते हैं। वो कोई बड़ी बात नहीं है। मन में उठने वाले प्रत्येक विचार का सतत परीक्षण और निरीक्षण करें कि, मैंने जो विचार उठाया, वह ठीक है या गलत ? गलत है, तो उस पर लगाम (ब्रेक) लगाएं। उसको तुरंत निकाल दें।
स जो ठीक विचार हैं, उनको मन में रखें। ठीक विचारों के अनुसार ही ‘योजनाएं’ बनाएं और सिर्फ योजनाएं ही नहीं बनाएं ‘आचरण’ भी करें। बहुत सारे लोग सिर्फ योजनाएं ही बनाते रहते हैं, उसके अनुसार काम नहीं करते। उससे कोई विशेष लाभ नहीं है, विशेष उन्नाति नहीं है।

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