ङ) आकाश को ऋषि दो प्रकार का मानते हैं, एक- जो शद तन्मात्रा से बना है, दूसरा- जो अवकाश रूप आकाश है। उपरोक्त आकार की परिभाषा 3 के आधार पर देखेंगे तो यह शद सूक्ष्म भूत से निर्मित आकाश भी निराकार कहलायेगा और दूसरा जो अवकाश रूप आकाश है वह तो है ही निराकार। यदि आप इस परिभाषा 3 को न मानकर 1 को माने तो भी कोई बाधा नहीं आयेगी क्योंकि अवकाश रूप आकाश तो निराकार है ही। यदि आप निराकार आकाश को लेकर ‘ओ3म् खं ब्रह्म’ को घटाना चाहते हैं तो इस प्रकार आपकी बात घट जायेगी।
किन्तु यहाँ ‘ओ3म् खं ब्रह्म’ में साकार निराकार को लेकर बात नहीं कही जा रही है, यहाँ तो ब्रह्म की विशालता को कहा जा रहा है कि वह ब्रह्म आकाश के समान व्यापक है, विशाल है, बड़ा है। यहाँ यह नहीं कहा जा रहा कि वह ब्रह्म आकाश के समान निराकार है। इस प्रकार यहाँ ब्रह्म की व्यापकता को जो आकाश की उपमा देकर कहा है वह उपमा दोनों आकाश से कही जा सकती है क्योंकि दोनों ही आकाश व्यापक है।