मान लीजिये छह वर्ष का एक छोटा बच्चा है। उसको एक दिन सर्दी, जुखाम हो गया, हल्का बुखार आ गया । और बाहर गली में आइसक्रीम बेचने वाला आया। उसने आवाज लगाई आइसक्रीम-आइसक्रीम। बच्चे ने सुन लिया, कि बाहर आइसक्रीम बेचने वाला आया है, तो बच्चे का मन करता ही है। वो अपनी माँ से कहेगा- मम्मी, मम्मी, मुझे आइसक्रीम दिलाओ, आइसक्रीम खानी है।
स माँ को पता है, कि आज इसकी तबियत ठीक नहीं है, इसको सर्दी-जुखाम है, बुखार है, आज तो आइसक्रीम नहीं खानी चाहिये, नही तो और अधिक रोगी हो जायेगा। इसलिए माँ ने मना कर दिया। बेटा आज आइसक्रीम नहीं मिलेगी, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। तीन दिन में ठीक हो जाओगे, फिर खिलायेंगे। अब यह बात बच्चे की समझ में थोड़े ही आती है, कि ‘आज मेरी तबियत ठीक नहीं है। मुझे नहीं खानी चाहिये।’ वो तो छोटा बच्चा है। उसका मन पर इतना नियंत्रण (कंट्रोल( नहीं है। वो तो कहता है, नहीं, मैं तो अभी आइसक्रीम खाऊँगा।’ वो नहीं समझता है, कि आज आइसक्रीम से नुकसान होगा। वो फिर दोबारा रट लगाता है, कि ‘नहीं-नहीं, मुझे तो आइसक्रीम खिलाओ।’ अब उसको खिलायेंगे, तो रोगी पड़ेगा। इसीलिये माँ ने दोबारा मना कर दिया, कि ‘नहीं बेटा, आज नहीं मिलेगी। तीसरी बार फिर माँगी। माँ ने फिर मना कर दिया। बच्चा रोने लगा, ‘मुझे तो आइसक्रीम चाहिये।’ जमकर रोना शुरू कर दिया।
स इतने में आई बच्चे की चाची। उसने पूछा, बेटा क्यों रोते हो। बच्चे ने कहा- ‘यह मम्मी बहुत खराब है।’ अच्छा क्यों क्या हुआ?’ मुझे आइसक्रीम नहीं खिलाती।’ अच्छा, मम्मी आइसक्रीम नहीं खिलाती। अच्छा चल, तू मेरे साथ चल। मैं तुझे आइसक्रीम खिलाती हूँ। वो चाची आकर के ले जायेगी और उसको बाहर जाकर के आइसक्रीम खिला देगी। समझ लेना, आपका बच्चा बिगड़ेगा। आपके हाथ में नहीं रहेगा। यह गलती की चाची ने। चाची को पहले पूछना चाहिये था, कि तुम्हारी माँ ने तुमको आइसक्रीम क्यों नहीं खिलाई। बिना पूछे ऐसे ही आकर मम्मी के ऊपर आरोप लगा दिया, ‘तुम्हारी मम्मी बहुत खराब है, बच्चों का इतना भी ध्यान नहीं देती। बच्चे रोते रहते हैं और उनको आइसक्रीम नहीं खिलातीं। अरे! आइसक्रीम ही तो है न, दो-चार-पाँच रुपये की आइसक्रीम होती है। पैसे किसलिए कमाते हैं। ये किस दिन काम आयेंगे।’ ऐसे उसने डाँट-फाँट शुरू कर दी। बच्चे की माँ से यह नहीं पूछा कि ‘तुमने बच्चे को आइसक्रीम क्यों नहीं खिलाई। बस यहाँ चाची मार खा गई। उसे पहले आकर पूछना चाहिये था, कि ‘आपने इस बच्चे को आइसक्रीम क्यों नहीं खिलाई।’ तो माँ बताती, कि ‘आज इसको सर्दी है, जुकाम है, बुखार है, इसीलिये आइसक्रीम नहीं खिलायी।’ पहले जानकारी करो। फिर चाहे, चाची खिलाये, चाहे दादी खिलाये, चाहे दादा खिलाये, चाहे चाचा। कोई भी आये, चाहे बच्चों का पिता जी आये। पहले वो माँ से पूछेगा, कि इसको आइसक्रीम क्यों नहीं खिलाई, और माँ बतायेगीं, सर्दी है, बुखार है, इसलिये नहीं खिलाई।’ सारी जानकारी करके अब बच्चे को सभी बड़े लोग एक ही जवाब दो- ‘बेटा तुम्हारी मम्मी बहुत अच्छी है। बहुत समझदार है। उसने आइसक्रीम नहीं खिलाई, बहुत अच्छा किया। आज तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। आज तुमको आइसक्रीम नहीं मिलेगी।’ तो माँ ने भी मना किया, चाची ने भी मना किया। चाचा आया, तो उसने भी मना किया। अब बताइये बच्चा कहाँ जायेगा? उसको चुपचाप मन मारके रहना पड़ेगा। अगर आप इतना कर सकते हैं, तो समझ लो आपके बच्चे अच्छे बनेंगे, आपके नियंत्रण में रहेंगे। आपके अनुशासन में चलेंगे। अगर आप इतनी मेहनत नहीं कर सकते, जानकारी नहीं करते और खामखां बिना परीक्षण किये ऐसे दोष लगाते हैं चाची के ऊपर, माँ के ऊपर, पिता के ऊपर, तो समझ लेना बच्चे बिगड़ेंगे। माँ ने कह दिया, ‘बेटा परीक्षा आ रही है सर पे, बैठ के थोड़ी देर पढ़ लो। अचानक आए पिताजी। उन्होंने कुछ जानकारी की नहीं। और आते ही उसका विरोध कर दिया।’ क्या तुम सारा दिन बच्चे को पढ़ते ही रहने दोगी। कभी खेलने की छुट्टी भी तो दिया करो। पढ़-पढ़के पागल हो जायेंगे। जाओ बेटा, जाओ खेलो।’ पिताजी ने कह दिया जाओ खेलो। माँ कह रही है, बेटा पढ़ो। बच्चा किसकी बात सुनेगा? पिताजी की। क्योंकि उसको तो खेलना अच्छा लगता है। वो माँ की नहीं सुनेगा। और फिर माँ चिल्लायेगी- ‘देखो मेरा बेटा मेरी बात नहीं सुनता।’
स इस झंझट से बचने के लिये, अपने घर में विधान-सभा लगाओ। जैसे सब राज्यों (स्टेट( की अपनी-अपनी विधानसभा होती है। और जितने मंत्री लोग होते हैं, वहाँ सब बैठके बहस करते हैं, चर्चा करते हैं। समस्याओं को सुलझाते हैं, और सारे मिल करके एक कानून पास करते हैं। और फिर उस कानून को जनता पर लागू करते हैं। तब सरकार चलती है, तब शासन चलता है। जो घर के बड़े लोग हैं, माता-पिता, चाचा-चाची, दादा-दादी, ये सब घर के राजा लोग हैं। और बच्चे आपकी प्रजा हैं। अगर आपको प्रजा पर ठीक शासन करना है, तो घर के जितने बड़े लोग हैं, बैठ करके अपने घर में विधानसभा लगाओ। और बच्चों के लिये कानून पास करो। ‘इन बच्चों को क्या खिलाना, कब खिलाना, क्या नहीं खिलाना, कितना खिलाना, कैसे खिलाना, कब सुलाना, कब जगाना, कब स्कूल भेजना, कब खेलना, कब कूदना, कब टी.व्ही, देखना?’ यानि पूरा चौबीस घंटे का टाइम-टेबिल बनाओ।
स माँ कहती है, बच्चा दस बजे सो जायेगा। पिताजी कहते हैं, नहीं बारह बजे तक पढ़ेगा। गलत बात है। बच्चा आपके हाथ में नहीं रहेगा।
स पहले माता-पिता दोनों एक विचार तो बना लो। आपका खुद का एक विचार नहीं है। बच्चा किसकी सुनेगा! उसके मन में जो आयेगा, वो उसकी बात सुनेगा। आपकी बात नहीं सुनेगा। अगर माता-पिता में आपस में मतभेद हैं तो पहले बैठकर के अपने घर की विधानसभा में बहस कर लो। दस बजे सोना ठीक है या बारह बजे। दोनों पहले एक निर्णय कर लो। और फिर वो जो एक निर्णय स्वीकार हो जाये, फाइनल हो जाये। फिर उसको बच्चे पर लागू करो, दो अलग-अलग बात नहीं। एक मंत्री ने कहा कि जमीन के ऊपर तीस प्रतिशत टैक्स लगेगा। दूसरे मंत्री ने कहा नहीं-नहीं पच्चीस प्रतिशत टैक्स लगेगा। बोलो जनता किसकी बात सुनेगी? पच्चीस वाले की। तीस वाले की क्यों सुनेगी। फिर तीस वाला मंत्री चिल्लायेगा, ‘देखो साहब, यह जनता कैसी है, मेरी बात ही नहीं सुनती।’ आपकी बात तब सुनेगी, जब आप दोनों मंत्री एक बात बोलेंगे। तो बच्चे आपकी जनता हैं, आपकी प्रजा हैं। आप उनके शासक हैं, राजा हैं, माता-पिता, चाचा-चाची, दादा-दादी। आपको जो भी बच्चों को सिखाना है। उसका कानून बनाओ। और फिर सबके सब वो कानून बच्चों पर लागू करो। देखो आपके बच्चे कैसे नहीं बनते। हम गारंटी देते हैं, खूब बनेंगे। और आपने पालन नहीं किया, तो फिर वो खूब बिगड़ेंगे। और बिगाड़-बिगाड़ के हमारे पास ले आओगे। महाराज जी ये बच्चा बिगड़ गया है, अब आप सुधारो।’ बिगाड़ो आप, सुधारें हम। आपकी भी तो कुछ जिम्मेदारी है। आप भी तो कुछ मेहनत करो। हम तो करते ही हैं, आगे भी करेंगे।
स 24 घण्टे का टाइम टेबिल बनाओ। रात के दस बजे सोना है, और सुबह पाँच बजे उठ जाना है। इसके बाद कोई नहीं सोयेगा। आज संडे है, तो आठ बजे तक सोयेंगे। और स्कूल जाना है तो पाँच बजे उठेंगे। यह क्या मतलब हुआ भाई, सन्डे को तो स्कूल जाना नहीं, तो क्यों सोओ आठ बजे तक? क्या सन्डे को रोटी नहीं खाते? जब संडे को रोटी खाते हैं, तो आठ बजे तक क्यों सोयेंगे? ऐसे माता-पिता ने बिगाड़ रखा है बच्चों को। तो पहले माता-पिता को सुधरने की जरूरत है। पहले वो अपना कानून ठीक करें।
स सुबह जल्दी उठना इसलिए नहीं होता, कि हमको स्कूल जाना है। दरअसल, अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिये उठना है। स्कूल जाना, नहीं जाना, वो अलग विषय है। सबने सीख रखा है- ”अरली टू बैड, अरली टू राईज, मेक्स अ मैन, हेल्दी-वेल्दी एंड वाईज”। सबको पता है। लेकिन प्रैक्टिकल उल्टा है- ”लेट टू बेड, लेट टू राईज, मेक्स अ मैन, अनहैल्दी, अनवैल्दी अनवाईज।” रिजल्ट भी उल्टा ही आयेगा। अनहैल्दी (रोगी( पड़ेंगे। देखो पूरा देश रोगी हो गया, कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा देश रोगी है। तभी तो जाते हैं स्वामी रामदेव जी के पास, सुबह-सुबह वो व्यायाम करवाते हैं न। आजकल लोग पाँच बजे टेलीविजन के सामने बैठ जाते हैं। थोड़ा एक्सरसाईज करें, तो ठीक हो जायेंगे। दूसरा परिणाम = अनवैल्दी यानि पैसे नहीं कमा सकता। और अनवाईज यानि बु(ि भी जायेगी। शरीर रोगी हो जायेगा, बु(ि भी जायेगी, तो फिर पैसा क्या कमायेंगे। तीनों जायेंगे। और आज तीनों बिगड़े हुये हैं। इसीलिये जल्दी सोयें, जल्दी उठें। जल्दी सोने का मतलब, दस बजे सोना। साढ़े नौ दस बजे तक सो जाओ। यह मेडिकल साइंस कह रहा है, मैं नहीं कह रहा हूँ। हाँ, मेरा कोई संदेश नहीं है, यह सब शास्त्रों का संदेश है। नौ, साढ़े नौ, दस बजे सो जाइये। जल्दी उठने का मतलब सुबह चार बजे, साढ़े चार, पाँच बजे तक उठ जाना । बस, पाँच के बाद नहीं। फिर देखो आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
स जो बच्चे रात को देर तक पढ़ते हैं। रात को दस से लेकर बारह, एक, दो बजे तक पढ़ते हैं। क्या रात को पढ़ने से दिन अट्ठाइस घंटे का हो जाता है। दिन के घंटे तो चौबीस ही रहते हैं। आप दिन में पढ़ो, चाहे रात में, घंटे तो उतने ही रहने हैं। तो रात को क्यों पढ़ते हो, सुबह उठके पढ़ो न। पुराने समय में लोग जल्दी सोते थे, जल्दी उठते थे। सुबह-सुबह पढ़ते थे, उससे बहुत अच्छा याद होता था। सात घंटा आप नींद ले चुके हैं, तो आपका माइंड फ्रेश हो जायेगा। सुबह तरोताजा दिमाग के साथ पढ़ाई अच्छी होती है। अच्छा याद रहेगा। स्मृति अच्छी बनेंगी। और देर तक रात को जागेंगे, पढ़ाई अच्छी नहीं होगी, स्मृति अच्छी नहीं होगी। दिन-भर के थके हुए दिमाग से आप रात को पढ़ेंगे, तो पढ़ाई अच्छी नहीं होती। सुबह अच्छी होती है।
स इस तरह से अपना टाइम-टेबिल बनायें। बच्चों का चौबीस घंटे का समय-चक्र कागज पर लिखें। उनके कमरे में चिपका दें दीवार पर। कहें, यह तुम्हारा टाइम-टेबिल है, अब इसके हिसाब से चलना है। और जो पालन नहीं करेगा, उसको दंड मिलेगा।
स दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है। यह बिलकुल सही नियम है। धरती पर बु(िमान लोगों ने प्रैक्टिकल करके, इसके बड़े अच्छे रिजल्ट देखे हैं। ये सिर्फ किताबी बातें नहीं हैं। आप दंड लागू करो। बच्चे फटाफट ठीक हो जायेंगे। माता-पिता दंड देना नहीं चाहते। वो डरते हैं। सोचते हैं कि बच्चे बीमार हो जायेंगे, दुःखी हो जायेंगे। ये भूखे रहेंगे तो कैसे गाड़ी चलेगी। आप दो बार, चार बार, दंड देकर तो देखो। फटाफट सीधे हो जायेंगे। अब मैं आपको अपने घर की बात सुना रहा हूँ। जब मैं छोटा बच्चा था। हमारे घर में ये सारे नियम चलते थे, जो मैंने अब तक आपको सुनाये। दस बजे सोना, सुबह पाँच बजे उठना। हम बचपन से ये काम करते रहे। हमको माता-पिता ने बचपन से सिखा दिया। दस बजे लाइट ऑफ हो जायेगी, कोई नहीं जगेगा। हमारे माता-पिता भी दस बजे सो जाते थे। यदि वो बारह बजे तक जागते होते, तब हम भी बारह बजे तक जागते होते।
स तो पहले आपको सुधरने की जरूरत है। पहले माता-पिता सुधरेंगे, तो बच्चे सुधरेंगे। गृहस्थ-आश्रम मौज-मस्ती के लिये नहीं है, तपस्या के लिये है। बच्चे ऐसे ही नहीं बनते। बहुत तप करना पड़ता है। हमारे माता-पिता ने यह तप किया। वो खुद सुबह चार बजे उठते थे। और हमको पाँच बजे उठाते थे। और पाँच बजे कैसे उठाते थे? पिताजी एक बार आवाज लगाते थे- ”हाँ बेटा, पाँच बज गये उठ जाओ।” अब दूसरी आवाज नहीं लगेगी। तुम्हारी मर्जी है, सोते रहो या उठो। और आज मैं देखता हूँ, आधे घंटे तक माता-पिता चिल्लाते रहते हैं, ‘बेटा उठो, उठो न।’ उठ रहा हूँ। यहाँ से उठके, वहाँ सो जायेगा। ‘बेटा स्कूल का टाइम हो रहा है, जल्दी उठो, नहाना भी है, स्कूल भी जाना है।” उठता हूँ, उठता हूँ, फिर यहाँ से उठेगा, वहाँ सो जायेगा। आधा-पौना घंटा तो उठाने में चला जाता है। इतना तो सीख लो कम से कम, यह आधे घंटे तक बच्चों को उठाना छोड़ दो। बिल्कुल नहीं उठाना। एक आवाज लगाना बस, बेटा पाँच बज गये उठ जाओ। न उठे, छोड़ दो, उसको सोने दो, लेट होगा न स्कूल जाने में। एक दिन स्कूल लेट जायेगा, वहाँ होगी पिटाई। फलस्वरूप दूसरे दिन से ठीक हो जायेगा।
स मैं कह रहा हूँ, ‘दंड के बिना कोई सुधरता नहीं।’ हमारे घर में सुबह छह बजे नहा-धोकर तैयार होके हवन में आना होता था। छह बजे जो हवन में नहीं आता था, उसे नाश्ता नहीं मिलता था, यानि नो ब्रेकफास्ट। भूखे जाओ स्कूल, नहीं मिलेगा नाश्ता। आपमें हिम्मत है, अपने बच्चे को बोल सकते हो, बेटा छह बजे नहा धोकर तैयार हो जाओ और हवन करना है, बिना हवन के नाश्ता नहीं मिलेगा। है हिम्मत? नहीं है। इसीलिये आपके बच्चे नहीं बनते। इतनी हिम्मत जगाओ, घर आपका है। आप घर के मालिक हैं, क्यों खिलाते हो बच्चे को रोटी। जब वो आपकी बात नहीं सुनता। रोटी कब खिलाओ, जब वो आपकी बात मानेगा। आजकल गड़बड़ मम्मी में है, और पापा में है। दोनों में गड़बड़ है। पहले वो सुधरने चाहिये। फिर शाम को हम खेलकूद के आये तो भूख लगी है। माता जी को बोला, ‘माता जी, भोजन चाहिये, तो माताजी कहती थीं- सन्ध्या की या नहीं । हम कहते-नहीं की । तो वे कहतीं -भाग जाओ यहाँ से, खाना नहीं मिलेगा, पहले सन्ध्या करो, फिर खाना मिलेगा।’ है इतनी हिम्मत आपके अंदर, जो अपने बच्चों को ऐसा बोल सकें। अगर इतनी हिम्मत नहीं है तो भूल जाओ। आपके बच्चे नहीं सुधरने वाले। अगर सुधारना चाहते हैं, तो इतनी हिम्मत बनाओ। सुबह हवन के बिना नाश्ता नहीं मिलेगा, पाँच बजे सुबह उठना पड़ेगा, रात को दस बजे सोना पड़ेगा। चौबीस घंटे का टाइम-टेबिल हमारे पिताजी ने बनाया, हमारे कमरे में चिपका दिया दीवार पर। और कह दिया, इसका पालन करना है। मेरे घर में रहना है तो यह करना पड़ेगा। नहीं तो दरवाजा खुला है, भाग जाओ यहाँ से। ये सब प्रैक्टिकल बातें हैं। हमारे घर में हो चुकी है। तब जाकर हम कुछ ज्ञानार्जन करके आपके सामने बैठकर बोल रहे हैं। इसके पीछे बहुत लंबी तपस्या है। माता-पिता की भी और कुछ हमारी भी। गुरूजनों की, परमात्मा की बहुत कृपा है। इस तरह से बच्चों का निर्माण होता है। आप लोग भी अपने बच्चों के निर्माण के लिये इस प्रकार से प्रयत्न करें ।