(ग) आत्मा निराकार है वा साकार? मैंने अपने समाधान में आत्मा को निराकार लिखा, मेरे ऐसा लिखने पर आपने आर्ष प्रमाण माँगा है। मैं आपको आर्ष प्रमाण देने से पहले निवेदनपूर्वक पूछता हूँ कि क्या आपने साकार मानने वालों से और साकार के विषय में कोई एक-आध आर्ष प्रमाण प्राप्त किया? अस्तु।
आत्मा निराकार है इसके लिए मैंने पहले भी तीन आर्ष प्रमाण दिये थे। अब फिर लिखता हूँ- सत्यार्थप्रकाश, प्रकाशक- सत्यधर्म प्रकाशन, शोधकर्त्ता-समीक्षक- सपादक व भाष्यकार- डॉ. सुरेन्द्र कुमार, पृष्ठ- 557 व सत्यार्थप्रकाश, प्रकाशक- परोपकारिणी सभा, अजमेर, संस्करण 40वाँ, पृष्ठ- 551।
(1) ‘‘बदला दिये जावेंगे कर्मानुसार ।।और प्याले हैं भरे हुए।। जिन दिन खड़े होंगे रूह और फ़रिश्ते सफ़ बांधकर।।मं. 7/सि. 30/सू. 78/आ. 26/34/38 समीक्षा- यदि कर्मानुसार फल दिया जाता है तो…… और रूह निराकार होने से वहाँ खड़ी क्योंकर हो सकेगी।’’ सत्यार्थप्रकाश समुल्लास 14
(2) ‘‘इसी प्रकार भक्तों की उपासना के लिए ईश्वर का कुछ आकार होना चाहिए, ऐसा भी कुछ लोग कहते हैं, परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि शरीर स्थित जो जीव है, वह भी आकार रहित है, यह सब कोई मानते हैं…… प्रत्यक्ष कभी न देखते हुए भी केवल गुणानुवादों ही से सद्भावना और पूज्य बुद्धि मनुष्य के विषय में रखते हैं।’’ देखें पूना प्रवचन व्या. 1
(3) ‘‘प्रश्न- मूर्त पदार्थों के बिना ध्यान कैसे करते बनेगा?
उत्तर – शद का आकार नहीं तो भी शद ध्यान में आता है वा नहीं? आकाश का आकार नहीं तो भी आकाश का ज्ञान करने में आता है वा नहीं? जीव का आकार नहीं तो भी जीव का ध्यान होता है वा नहीं?…….।’’ पूना प्रवचन व्या. 4
इन सभी स्थलों पर महर्षि ने आत्मा को निराकार लिखा और कहा है। महर्षि की इन बातों की कोई अवहेलना कर आत्मा साकार माने मनवावे तो उसका कौन क्या कर सकता है?