(ख) यदि आत्मा अर्थात् मैं या मेरा आत्मा स्थान बदलता है तो मुझे पता क्यों नहीं चलता। किसके बदलने से बदलता है, संचालन कौन करता है?

(ख) यदि आत्मा स्थान बदलता है तो हमें पता क्यों नहीं चलता? इसमें मैं इतना ही कहूँगा कि यह व्यवस्था ईश्वराधीन है। ईश्वर ने ऐसी अवस्था कर रखी है कि आत्मा स्थान बदलता है। यहाँ व्यवस्था ईश्वर की है और संचालक स्वयं आत्मा है।

स्थान बदलता है तो हमें पता क्यों नहीं चलता? इसको तो आप छोड़िए कितनी सारी स्थूल बातों का ही हमें पता नहीं चल पा रहा। कैसे हमारे अन्दर भोजन विखण्डन हो रहा है, उससे रक्तादि का निर्माण कैसे हो रहा है, हमारे पूरे शरीर के ऊपर रोम-बाल कितने हैं, नेत्र की संरचना कैसी है और भी बहुत सारी स्थूल बातों को हम नहीं जान पा रहे, जान पाते। और फिर आत्मा का विषय तो अति सूक्ष्म है। हाँ, हो सकता है इस स्थान वाली स्थिति को योगी लोग जान लेते हों।