क्रियात्मक-योगाभ्यास नामक पुस्तक में आया है कि बिना ‘ईश्वर दर्शन’ के ‘अज्ञान’ का नाश नहीं होगा। योगाभ्यास तथा ज्ञान के बिना ईश्वर-दर्शन संभव नहीं है। लेकिन ईश्वर के ज्ञान के पश्चात् भी कोई सूक्ष्म-अज्ञान आत्मा से लिपटा रहता है। ऐेसा क्यों?

देखिए, एक कहावत आपने सुनी होगी, कि पैसा पैसे को कमाता है। अगर आपके पास पांच-सात लाख रूपये हैं, तो आप आगे बिजनेस करके ज्यादा पैसा कमा सकते हैं। यदि आपके पास पूँजी (कैपिटल( ही नहीं, तो आप निवेश (इन्वेस्टमेंट( कैसे करेंगे? बिजनेस में लाभ (प्रॉफिट( क्या कमायेंगें? नहीं कमा सकते। तो व्यापार में धन कमाने के लिए, पहले इन्वेस्टमेंट करने के लिए कुछ राशि होनी चाहिए। वो राशि आगे नई राशि को कमा सकती है।
इसी प्रकार से कुछ ज्ञान पहले हमारे पास होगा। उस ज्ञान से पुरूषार्थ करके हम ईश्वर का दर्शन कर सकते हैं। अब जब ईश्वर का दर्शन हो जाएगा, तो उससे नया ज्ञान मिलेगा, जो अविद्या आदि क्लेशों को नष्ट करेगा। दोनों एक दूसरे पर आधारित हैं। पहले ज्ञान, फिर ईश्वर का दर्शन होगा। फिर ईश्वर दर्शन से प्राप्त हुए नये ज्ञान की प्राप्ति से अविद्या आदि का नाश होगा।
हर एक की योग्यता अलग-अलग है। कोई एक ही जन्म में टाटा-बिरला बन सकता है। किसी को पचास जन्म भी लग जायेंगे। वो अपनी-अपनी योग्यता व पुरूषार्थ की बात है। इसी प्रकार से मोक्ष-प्राप्ति की बात भी समझनी चाहिये। कोई ऐसा भी हो सकता है, जो इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर ले। कोई हो सकता है कि- पांच जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सके और किसी को पचास जन्म भी लग जायें। वो हर एक की योग्यता और पुरूषार्थ की अलग-अलग स्थिति पर निर्भर है।

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