क्या हजारों वैज्ञानिकों की तुलना में एक ब्रह्मवेत्ता द्वारा संसार का उपकार अधिक होता है?

हाँ! बिल्कुल अधिक होता है। ये सैकड़ों वैज्ञानिक मिलकर के विज्ञान के अविष्कार तो कर देंगे और अच्छी चीजें भी बनायेंगे, बना भी रहे हैं। इन्होंने बड़ा अच्छा परिश्रम किया, हम इनकी प्रशंसा करते हैं। लेकिन जो मनुष्य की मूल आवश्यकता है, उसकी पूर्ति वैज्ञानिक लोग नहीं कर सकते। ये रेडिया बना देंगे, टेलीवीजन बना देंगे, सैटेलाईट बना देंगे, कम्प्यूटर बना देंगे, मोबाईल फोन बना देंगे, सारी सुविधा दिला देंगे, पर व्यक्ति को इससे आगे शांति भी चाहिये। वो शांति ये नहीं दिला सकते। वो इनके बस की बात नहीं है। हजारों वैज्ञानिक भी मिलकर के मनुष्य की अंतिम इच्छा को पूर्ण नहीं कर सकते लेकिन एक ब्रह्मवेत्ता कर सकता है। वो लोगों को शांति दिला सकता है। उसके पास समाधान है। जैसे एक विद्यार्थी गया था काकरिया तालाब में डूबने के लिये, तो एक वृ( व्यक्ति ने उसको समझा दिया न, और उसको समझ में आ गई बात। फिर उसने मरना कैन्सिल कर दिया। तो ऐसे ही एक ब्रह्मवेत्ता लोगों की आखिरी इच्छा पूर्ण कर सकता है।
जब तक व्यक्ति के पास शांति नहीं है, तब-तक उसके पास सारे साधन होते हुये भी उसका जीवन व्यर्थ है। वेद आदि शास्त्र, )षि मुनि लोग इस बात को मानते हैं, कि यदि आपके पास शांति है, तो सब कुछ है। और शांति नहीं है, तो कुछ भी नहीं है। भौतिक साधन कितने भी हों, उससे आपका जीवन संतुष्ट नहीं होगा, तृप्त नहीं होगा। और फिर अन्त में लोगों को वहीं समाधान दिखता है- जापान वाला। आत्महत्या कैसे करें?

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