यह ‘सब-कांशियस’ माइंड क्या है? आजकल के साइकोलॉजी वाले कितने सारे माइंड पढ़ाते हैं। दरअसल, इनको ठीक से पता नहीं है। ये लोग नहीं जानते, कि माइंड इज वन, ऑनली वन। हमारे शरीर में, एक आत्मा के साथ केवल एक ही मन है। मन दो-तीन-चार नहीं हैं, लेकिन ये दो-तीन-चार पढ़ाते हैं। एक सब-कांशियस माइंड है, एक कांशियस माइंड है, एक अनकांशियस माइंड है। जबकि मन एक ही है।
स हालांकि मन की अवस्थायें (स्टेट्स ऑफ माइन्ड( पाँच हैं। इनके नाम ‘योग-दर्शन’ के व्यास-भाष्य में लिखे हैं। मन की पहली अवस्था का नाम है- क्षिप्त। दूसरी का नाम है- मूढ़। तीसरी का नाम है- विक्षिप्त। चौथी का नाम है- एकाग्र। पाँचवी अवस्था का नाम है- निरू(।
स प्रकृति में तीन प्रकार के तत्त्व (द्रव्य( हैं, जिनको गुण कहते हैं। उनके नाम हैं- सत्त्व गुण, रजोगुण, तमोगुण। इस प्रकृति के इन सबसे छोटे-छोटे कणों (सत्त्व, रज और तम( का अपना-अपना अलग-अलग स्वभाव है।
स सत्त्व गुण का स्वभाव यह है, कि वो शांति देता है, सुख देता है, जिससे मन में स्थिरता होती है। जब मन में सत्त्वगुण प्रबल होता है, सत्त्वगुण का प्रभाव अधिक होता है, तो हमको शांति महसूस होती है, अच्छा लगता है, सुख लगता है। मन में सेवा और परोपकार के, दान के, दया के अच्छे-अच्छे भाव आते हैं।
स जब रजोगुण बलवान हो जाता है और अपना प्रभाव शुरू करता है, तो चंचलता और अशांति आती है। इससे मन में काम्पटीशन की भावना आती है, स्वार्थ की भावना आती है, छीना-झपटी की भावना आती है, हेरा-फेरी, निंदा-चुगली और गड़बड़ करने की इच्छा होती है।
स जब तमोगुण प्रबल होता है, तब बहुत बुरे काम करने की इच्छा होती है। मसलन, चोरी करना, डकैती करना, स्मगलिंग करना, ब्लैक मार्केटिंग करना, हत्यायें करना, आतंकवाद फैलाना इत्यादि।
इन गुणों का प्रभाव हमेशा एक सा नहीं रहता, बल्कि बदलता रहता है। इन गुणों के प्रभाव के बदलते रहने से ये अवस्थायें बदलती रहती हैं। कभी क्षिप्त अवस्था आती है, कभी मूढ़ अवस्था आती है। जिसको आप अनकांशियस माइंड कहते हैं, वास्तव में वो चित्त की मूढ़ अवस्था है। मन कोई दो तीन नहीं हैं।