समाधि-काल में बाहर के काम नहीं होते, वो सारे बंद हो जाते हैं।
स एक व्यक्ति समाधि लगाता है, ईश्वर की उपासना करता है, तो उसको ईश्वर की अनुभूति होती है, ईश्वर से आनंद मिलता है, ज्ञान मिलता है, बल मिलता है, उत्साह मिलता है, बहुत सारे अच्छे गुणों की प्राप्ति होती है।
समाधि-काल में ईश्वर की उपासना ही एकमात्र कर्म होता है।
स समाधि-काल में भी उसके जो पहले किए हुये कर्म हैं, वो जमा रहते हैं। इससे कर्म नष्ट नहीं होते। दरअसल, कर्म बिना फल भोगे नष्ट होते ही नहीं हैं। वो चाहे समाधि लगाए, या न लगाए। यदि किसी व्यक्ति ने कोई भी कर्म किया है, तो उसका फल निःसंदेह भोगना ही पड़ेगा।
स कर्म, बिना फल दिए कभी भी नष्ट नहीं होते, वो हमेशा जमा रहते हैं। जब उनका फल मिलता जाता है तो फल भोगने से वो कर्म हट जाते हैं। मान लीजिए, किसी व्यक्ति के दो हजार कर्म थे। तीन सौ कर्मों का फल मिल गया, सत्रह सौ बाकी रह गए। अब समाधि लगाओ अथवा न लगाओ कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वे बचे हुए सत्रह सौ कर्म, फल भोगकर ही नष्ट होंगे, अन्यथा नहीं।