क्या संसार में कहीं सुरक्षा नहीं है। माँ की गोद में भी नहीं?

 समाधान– संसार में कहीं भी सुरक्षा नहीं है। पूरी सुरक्षा केवल ‘मोक्ष’

में है। तीन प्र्रकार से हम पर आपत्ति आ सकती है :-

(1)  एक तो अपनी मूर्खता से, अपनी गलतियों से हम नुकसान उठा लेते हैं। सड़क पर चलते हुए दुकान या बोर्ड देख रहे हैं। जिससे सड़क पर पड़े ऊँचे-नीचे पत्थरों पर हमने ध्यान नहीं दिया और पाँव टकराया, धड़ाम से गिरे, हाथ-पाँव टूट गए। किसकी गलती हुई? हमारी गलती।

सड़क पर केले का छिलका आ गया, हमने उस पर ध्यान नहीं दिया, पाँव पड़ गया, धड़ाम से गिर गए और कमर की हड्डी टूट गई। किसकी गलती  से? हमारी गलती से।

इस तरह एक क्षेत्र ऐसा है, जहाँ हम अपनी गलतियों से नुकसान उठाते हैं। अपनी मूर्खता से जो गलतियाँ की, उससे जो दुःख मिला, उसका नाम है- ‘आध्यात्मिक दुःख’।

(2)  दूसरा क्षेत्र ऐसा है, जहाँ दूसरे प्राणियों की गलतियों से हमको दुःख भोगना पड़ता है। आपका प्रश्न है कि क्या माँ की गोद में हमको नुकसान हो सकता है? उत्तर है कि – माँ ने कोई गलत दवा या खान-पान में कुछ गलत चीज खा ली तो बच्चे को नुकसान हो गया। पिता की भूल से हमको नुकसान हो सकता है। किसी पड़ोस के बच्चे ने क्रिकेट में बॉलिंग की और उसकी बॉल हमारी आँख में लगी। पूरी आँख बेकार हो गई। उसकी गलती से जीवन भर के लिए हमको नुकसान हो सकता है। सड़क पर चल रहे हैं। पीछे से चुपचाप एक कुत्ता आया और उसने टाँग काट ली। स्कूटर वाला, कार वाला हमको ठोंक दे। हम ऐसे किसी गलत गुरु-आचार्य के पल्ले पड़ गए और उसने हमको उल्टे पाठ पढ़ा दिए और मोक्ष के मार्ग से कहीं और भटका दिया। उससे भी हमको नुकसान हो सकता है।

दूसरे व्यक्तियों के कारण से, साँप से, बिच्छुओं से, शेर आदि दूसरे प्राणियों के कारण से, इनके अन्याय से भी हमको दुःख भोगने पड़ सकते हैं। इसे ‘आधिभौतिक-दुःख’ कहते हैं।

(3)  तीसरी हैं – प्राकृतिक दुर्घटनाएं। जैसे – भूकंप, तूफान, बाढ़, आँधी, चक्रवात, सूखा, अकाल, वर्षा आदि। मकान गिर जाते हैं, बाढ़ का पानी भर जाता है। प्राकृतिक दुर्घटनाओं से भी हमको नुकसान उठाना पड़ता है तो दुःख होता है। इसी का नाम है– ‘आधिदैविक-दुःख’।

उपरोक्त तीन प्रकार के दुःख हैं। आपने जन्म ले लिया तो कहीं भी सुरक्षा नहीं। कोई न कोई दुःख आएगा ही।

महर्षि कपिल कहते हैं – ‘कुत्रापि कोऽपि सुखी न’। सीधा सरल वाक्य है। धरती पर कहीं भी कोई भी व्यक्ति पूरा सुखी नहीं है। एक सुख मिलता है, उसके पीछे चार दुःख आते हैं तो सौदा मँहगा पड़ता है। चार रुपए की खरीदी और बिक्री मूल्य एक रुपया। ये कैसा घाटे वाला व्यापार है। सुख मिलता है – ‘एक’ और दुःख मिलते हैं – ‘चार’। इसलिए चारों ओर दुःख ही दुःख है। धरती पर कोई भी पूर्ण सुखी नहीं है। दार्शनिक दृष्टि से सारे दुःखी हैं।             दर्शन शास्त्र मानसिक सुख-दुःख की बात कर रहा है। मन में अविद्या,

क्रोध, लोभ आदि के कारण सारे लोग दुःखी हैं। इस दृष्टि से दुःख अधिक है।

सत्यार्थ प्रकाश’ में महर्षि दयानंद जी ने लिखा है कि संसार में

सुख अधिक है। उनका तात्पर्य है कि – शारीरिक स्तर पर, बाह्य स्तर पर सुख अधिक है। महर्षि दयानंद बाह्य स्तर की बात कर रहे हैं और महर्षि कपिल, महर्षि पतञजलि आन्तरिक स्तर की बात कह रहे हैं। दोनों ठीक कह रहे हैं। बाह्य स्तर पर तो सुख अधिक है और मानसिक स्तर पर दुःख अधिक है। शारीरिक और मानसिक दोनों दुःख की तुलना करते हैं तो मानसिक ज्यादा हानिकारक है। और मानसिक स्तर पर दुःख अधिक है। इसलिए कपिल मुनि जी कहते हैं – तीन दुःखों से छूटो।

यह मनुष्य का सबसे ऊँचा लक्ष्य है। पूरी सुरक्षा केवल मोक्ष में है। इसलिए फटाफट मोक्ष में सरक जाओ।