क्या वेदों में नाचने (डांस) का विधान है? अगर है, तो किसलिए?

वेद में सिर्फ इतना नहीं लिखा कि सारे बस मोक्ष में ही जाओ। वेद में ऐसा नहीं लिखा कि डांस मत करो, धंधा भी मत करो। वेद में सब विहित कर्मों का विधान है अर्थात् नौकरी करो, व्यापार करो, खेती करो, उद्योग-धंधे चलाओ, फैक्ट्रियाँ चलाओ, कारखाने चलाओ, विद्वान बनो, राजा बनो, क्षत्रिय बनो, साइंटिस्ट बनो, पायलट बनो, शादी करो, बच्चे पैदा करो, उनका पालन करो, विद्वान बनाओ, उनको देशभक्त बनाओ, ईमानदार बनाओ और गीत भी गाओ, संगीत बजाओ और डांस भी करो।
स इन सारे कार्यों को करो, पर इनकी सीमाएं हैं और विकल्प (ऑप्शन) हैं। जिसको यहाँ संसार के सारे सुख लेने हों, वो संसार का सुख ले और जिसको मोक्ष में जाना हो, वो मोक्ष में जाए। दोनों के लिए अलग-अलग विकल्प हैं। सबके लिए सारे काम अनिवार्य (कम्पलसरी) नहीं हैं। जिसकी डांस करने की इच्छा नहीं है, उस पर थोपा-थोपी नहीं है कि तुम्हें डांस करना ही पड़ेगा। जिसकी मोक्ष में जाने की रुचि नहीं, तो उसके लिए भी कोई जबरदस्ती नहीं है कि तुमको मोक्ष में जाना ही पड़ेगा। आपकी इच्छा है, मत जाओ।
स डांस करने की भी सीमा है। अपने जो प्राचीन भारतीय नृत्य होते थे – शास्त्रीय नृत्य, उनकी परंपरा अभी भी कुछ बची हुई है। जैसे कि कत्थक कली, भरत नाट्यम। इस तरह के जो शास्त्रीय नृत्य (क्लासिकल डांस) होते हैं, वो अच्छे होते हैं। उनकी तो वेदों में छूट है। ऐसे डांस कर सकते हैं। उसमें सभ्यता भी होती है, शरीर भी अच्छी तरह से ढका होता है, कपड़े भी ठीक पहने होते हैं और अच्छी सुंदर व्यवस्था भी होती है। सब अच्छी तरह से करते हैं, वो अच्छा लगता है।
स जिसकी अभी मोक्ष में रुचि नहीं है, जिसको वैराग्य नहीं हुआ, तो वह अपना टाइमपास कैसे करेगा? उसको अपना टाइमपास करने के लिए मनोरंजन चाहिए। वो अच्छे गीत गाए और अच्छे डांस करे।
स वेस्टर्न वाले डांस नहीं। ऐसे उल्टे-सीधे, वो हड्डियाँ-वड्डियाँ तोड़ के करते हैं, वैसा ब्रेक-डांस नहीं करना। उससे मन, बु(ि खराब होती है।
स जो अपने भारतीय ढंग के डांस हैं, वे अच्छे हैं। उससे चित्त शु( रहता है। अपने भारतीय संगीत हैं, शास्त्रीय संगीत (क्लासिकल म्यूजिक) हैं। जिनमें राग-भैरवी, बागेश्वरी और इस प्रकार अच्छे-अच्छे मालकौंस आदि राग हैं, वे सब गा सकते हैं। उनमें भी प्रधानता ईश्वर-भक्ति की रहनी चाहिए। भरतनाट्यम्, कत्थककली और दूसरे कुच्ची-पुड़ी आदि भारतीय डांस होते हैं, इनमें बहुत सारी ईश्वर उपासना की बातें होती हैं। इनमें बहुत सारी धार्मिक लोककथाओं के माध्यम से ईश्वर-भक्ति का मंचन होता हैं अर्थात् भरतनाट्यम् आदि डांस में जो हाव-भाव दिखाए जाते हैं, वे हमें ईश्वर की ओर श्र(ा-भक्ति उत्पन्ना करते हैं। वे पश्चिमी नृत्यों की तरह काम-वासना को नहीं जगाते। इसलिए जिनकी डांस में रुचि हो, वे ऐसे अच्छे डांस कर सकते हैं।

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