माता के गर्भ में रहते हुए, पूरी बात वह नहीं सीख पाया। माता के गर्भ में रहते हुए उसके कुछ-न-कुछ संस्कार जरूर पड़ते हैं। इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
‘संस्कार विधि’ नामक पुस्तक को पढ़ने से आपको पता चलेगा कि गर्भावस्था में भी बालक पर संस्कार पड़ते हैं। इसलिए माता को कैसे उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना, लिखना-पढ़ना चाहिए, क्या दृश्य देखना चाहिए, क्या नहीं देखना चाहिए, कैसे सोचना चाहिए, कैसे नहीं सोचना चाहिए?
गर्भावस्था से बालक का निर्माण शुरु हो जाता है। उसका प्रभाव पड़ता है। बालक बड़ा होता जाता है, जन्म लेता है। फिर जैसे-जैसे चलना-फिरना सीखता है, उसके विकास के लिए, उसकी बु(ि के विकास के लिए, उसके शरीर के विकास के लिए, उसकी सेहत के लिए बहुत सारे संस्कार होते हैं। तो ये संस्कार जरूर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। बाकी यह बात सत्य है कि छोटी उम्र में उसने चक्रव्यूह में घुसना सीख लिया था।
हमारे शास्त्रों में यह भी कहा है कि विद्यार्थी जब गुरुजी के पास जाता है, तो वो भी गुरुजी के गर्भ में रहता है। अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त में ऐसी चर्चा आती है। गुरुजी के गर्भ में रहने का मतलब गुरुजी की सुरक्षा में रहता है, उनके अनुशासन में चलता है। वे जैसा सिखाते हैं, वैसा सीखता है। अभिमन्यु को छोटी उम्र में माता-पिता ने जो बातें सिखाई, उससे उसने चक्रव्यूह में घुसना सीख लिया। कुछ गर्भावस्था में और कुछ जन्म लेने के बाद में। इस तरह से उसने छोटी उम्र में सीखा। यह है इस वाक्य का अभिप्राय।