बिल्कुल है। इसमें कोई शंका नहीं है।
स सत्यार्थ प्रकाश के आठवें समुल्लास में इस बारे में लिखा है। ईश्वर सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं होता। आप और हम, जो थोड़ी-बहुत बु(ि रखते हैं, जब भी कोई काम करते हैं, तो सोच-समझकर करते हैं। हम कोई फालतू काम नहीं करते। अगर कोई काम करने से कुछ भी लाभ नहीं है, तो हम बिल्कुल नहीं करेंगे। जब हम इतनी छोटी बु(ि रखने वाले होकर भी, व्यर्थ में कोई काम नहीं करते, तो इतनी बड़ी सृष्टि बनाने वाला सर्वज्ञ ईश्वर ऐसा क्यों करेगा। ब्रह्माण्ड में अरबों-खरबों आकाशगंगायें हैं। एक-एक आकाशगंगा में खरबों-खरबों तारे हैं, उनके अपने-अपने सोलर सिस्टम्स है। तो सवाल उठता है, कि इतनी लंबी-चौड़ी दुनिया जो ईश्वर ने बनाई है, क्या यह व्यर्थ में बनाई है? अगर यहाँ प्राणी न रहते हों, तो इतनी बड़ी सृष्टि बनाना व्यर्थ है। हमारे इस सौर मंडल में कम से कम एक पृथ्वी पर तो जीवन है। यह प्रत्यक्ष दिख रहा है। मंगल पर जीवन नहीं मिला, बृहस्पति पर नहीं मिला, शुक्र पर नहीं मिला, बुध पर नहीं मिला, शनि पर नहीं मिला, न सही। विभिन्न ग्रहों में से एक ग्रह ‘पृथ्वी’ पर तो जीवन है। तो इसी हिसाब से अनुमान लगा लीजिये कि जैसे इस एक सौरमंडल में कम से कम एक पृथ्वी पर जीवन है। ऐसे ही प्रत्येक सौरमंडल में कम से कम एक ग्रह में तो निःसंदेह जीवन होना ही चाहिये, अन्यथा वो बनाना व्यर्थ है। तो अनुमान-प्रमाण से सि( होता है, कि और भी करोड़ों अरबों पृथ्वियाँ हैं। वहाँ भी हमारे जैसे ही मनुष्य, पशु-पक्षी, आदि प्राणी रहते होंगे। वहाँ भी इसी ईश्वर का शासन चलता होगा। वहाँ भी ऐसे ही चार ‘वेद’ होंगे, जैसे हमारी इस धरती पर है।