क्या ज्यादा धन कमाना ठीक नहीं है? यदि सच्चाई के साथ यम-नियमों के पालन का पूर्ण प्रयास करते हुए कमाया जाए तो?

अच्छे कामों के लिए धन तो आवश्यक है ही। धन कमाना चाहिए परन्तु यम-नियम का पालन करते हुए, ठीक ईमानदारी से, मेहनत से धन कमाएं, तो कमा सकते हैं, अधिक भी कमा सकते हैं।
स यहाँ नियम यह है कि – ”जितना अधिक कमाएंगे, उतनी आपकी समस्या बढ़ती जाएगी। आवश्यकता से अधिक धन जमा करेंगे, तो फिर वो आपके लिए बाधक बनेगा।”
पहले तो समय अधिक खर्च करना पड़ेगा।वह खुद भी खाएगा नहीं, जमा करता रहेगा। जमा किया हुआ धन, फिर उसके लिए कार्य में बाधक होता है। वो ‘परिग्रह’ का पालन करता रहता है।
फिर उसकी सुरक्षा की चिन्ता हो जाएगी। और बस उसकी सुरक्षा
में ही लगा रहेगा।कोई धन छीन ले जाए तो दुःखी, कोई चुरा ले जाए तो दुःखी, कोई उधार ले जाए और लौटाए नहीं तो दुःखी। इसलिए एक विद्वान ने बड़ा अच्छा श्लोक लिखा है – ”अर्थानाम्् अर्जने दुःखम् अर्जितानां च रक्षणे।आये दुःखं व्यये दुःखं धिगर्थान् कष्टसंश्रयान्।।” अर्थात् पैसा कमाने में दुःख उठाओ, और कमाए हुए धन की रक्षा करने में दुःख उठाओ। इस तरह इन्कम हो तो दुःख, और खर्चा हो तो और दुःख। जो धन हमेशा कष्ट ही देता है, ऐसे धन को धिक्कार है। ऐसा धन क्या करेंगे? इसलिए हमारे अनुभव से लाभ उठाईए, अधिक मत कमाइए।
हम पूरे देश में घूमते हैं। बड़े-बड़े सेठ लोगों के यहाँ जाते हैं। हमारा अनुभव यह है कि – ‘जो जितना बड़ा सेठ है, वो उतना अधिक दुःखी है’। जितने बड़े सेठ से मैं मिला, उसे उतना ज्यादा दुःखी पाया। ऐसा मुझे उन सेठों ने अपनी जुबानी कहा है। एक सेठ ने मुझे कहा – ”मेरा नाम तो है शाँतिलाल, लेकिन मुझे आधा घंटा भी शाँति नहीं है।” इसलिए ज्यादा धन मत कमाइए, आवश्यकतानुसार कमाइए।
स आपको जितनी आवश्यकता है, उतना धन कमाइए। और फिर जितनी समय-शक्ति शेष बचती है, उसको आध्यात्मिक-क्षेत्र में लगाइए।
स धन के पीछे मत पड़िए। वो तो बु(ि खराब ही करता है। जब व्यक्ति के पास पैसे नहीं होते तो उसका विचार कुछ और होता है, और जब जेब में पैसे आ जाते हैं, तो उसका विचार बदल जाता है। कैसे?
एक व्यक्ति के पास बहुत पैसे नहीं थे, तो वो सोचता था – ”हे भगवान! मेरी दस लाख रुपये की लॉटरी लग जाए तो पाँच लाख दान कर दूँगा।” यह विचार तब तक है, जब तक दस लाख रुपये जेब में नहीं आ जाते हैं। और कल्पना कीजिए, दस लाख रुपये की लॉटरी लग गई। अब वो पाँच लाख रुपये भी दान में नहीं देना चाहेगा, अब उसका विचार बदल जाएगा। लॉटरी से कमाना तो वैसे ही गलत है, क्योंकि वो तो जुआ है।
मेहनत से, ईमानदारी से भी जब व्यक्ति धन कमा लेता है, तो भी उसकी बु(ि बदल जाती है, विचार बदल जाते हैं। पहले सोचता था-जितना कमाऊंगा, उसमें से बीस, पच्चीस, पचास प्रतिशत दान कर दूंगा। लेकिन जब प्रैक्टिकली जेब में पैसे आ जाते हैं, तो विचार बदल जाता है। अब दान का प्रतिशत दो-तीन पर आकर फिसल जाता है। वो भी मुश्किल से, घिस-घिस करके दान देगा। इसलिए इतना धन न कमाएं कि उपयोग ही न कर सकें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *