जी हाँ, ईश्वर का अनुभव, जो सूक्ष्म अनुभव है, जिसको समाधि कहते हैं, समाधि-प्रत्यक्ष कहते हैं, वो तो समाधि लगाने पर ही होगा। परंतु उससे पहले भी कुछ मोटे स्तर का अनुभव हो सकता है। और वैसे बहुत सारे लोगों को होता भी है, पर वो ध्यान नहीं देते, ध्यान कम देते हैं। कैसे होता है ईश्वर का अनुभव? पहले भी मैंने कहा था, कि जब हम बुरा काम करने की बात सोचते हैं, तो मन में भय, शंका, लज्जा होती है। होती है कि नहीं होती? होती है न। यह जीवात्मा की ओर से नहीं है। यह ईश्वर की ओर से है। ये ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के सातवें समुल्लास में लिखा है। इस तरह से हम अपने अंदर ईश्वर को अनुभव कर सकते हैं। जब हम अच्छी योजना बनाते हैं, तब आनंद, उत्साह, निर्भयता, ये अंदर से प्रतीत होता तो है। तो महर्षि दयानंद जी लिखते हैं यह ईश्वर का अनुभव है यह एक मोटे स्तर का आंतरिक अनुभव है। और एक दूसरा स्थूल-बाह्य अनुभव भी है, वो कौन सा है। इस प्रसंग में सातवें समुल्लास में लिखा है, गुणों को देखकर गुणी का प्रत्यक्ष होता है। प्रसंग यह चल रहा है, आप ईश्वर-ईश्वर कहते हो, उसकी सि(ि कैसे करते हो? तो उत्तर दिया है, कि सब प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से हम ईश्वर की सि(ी करते हैं। तो प्रत्यक्ष प्रमाण के प्रसंग में महर्षि दयानंद जी ने लिखा है, कि गुणों के माध्यम से गुणी का प्रत्यक्ष होता है। उदाहरण के लिये जैसे यह पृथ्वी है। पृथ्वी एक गुणी है, एक द्रव्य है। और इसमें रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि-आदि ये गुण हैं। जब हम पृथ्वी का प्रत्यक्ष करते हैं, तो आँख से देखकर के रूप के माध्यम से पृथ्वी का प्रत्यक्ष करते हैं या इसकी (मिट्टी की( गंध आती है, तो गंध से हम पृथ्वी का प्रत्यक्ष करते हैं। अथवा हाथ से छूकर के स्पर्श गुण से प्रत्यक्ष करते हैं। इससे पता चला कि किसी पदार्थ का जो प्रत्यक्ष है, वो उस पदार्थ के गुणों के माध्यम से होता है। तो यह उदाहरण देकर महर्षि दयानंद जी आगे कहते हैं कि इस सृष्टि में ईश्वर के ‘रचना आदि गुण’ इस सृष्टि में देखिये । सूर्य ईश्वर द्वारा रचित पदार्थ है, चंद्रमा ईश्वर की रचना है, पृथ्वी ईश्वर द्वारा रचित पदार्थ है, और फल-फूल, वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, प्राणियों के शरीर, ये किसने बनाये? ईश्वर ने। तो सृष्टि के पदार्थो में ईश्वर की रचना आदि गुणों को सृष्टि में देखो और इस रचना गुण से इनके रचनाकार ईश्वर का प्रत्यक्ष करो। तो यदि हम इन पदार्थों की रचना को ध्यान से देखेंगे, तो भी हमको मोटे स्तर पर ईश्वर का अनुभव होगा, कि हाँ,कोई न कोई है, जो फूल बनाता है, कलियाँ बनाता है, वनस्पतियाँ बनाता है, पेड़-पौधे बनाता है, और साग-सब्जी बनाता है, प्राणियों के शरीर बनाता है, सूरज-चाँद-धरती बनाता है, कोई न कोई है। इस तरह से मोटे स्तर का प्रत्यक्ष, बिना समाधि के भी हो सकता है। तो यह है दो प्रकार का प्रत्यक्ष। एक तो रचना आदि गुणों को देखकर ईश्वर का मोटा स्तर का अनुभव, और दूसरा अंदर वाला। अर्थात् भय, शंका, लज्जा के माध्यम से ईश्वर का अनुभव। यह दो तरह का अनुभव तो सबको हो सकता है। थोड़ा सा ध्यान देंगे, तो सबको हो जायेगा। बाकी तीसरा समाधि वाला सूक्ष्म है, कठिन है । इसलिए वो लंबे समय के बाद होगा।