क्या घर में धर्मपत्नी के साथ किया गया हवन ही ”सम्पूर्ण-यज्ञ” कहलाता है। ‘यज्ञ’ करने से क्या ‘लाभ’ होता है?

पति-पत्नी दोनों को साथ में बैठकर हवन करना चाहिए। तभी यज्ञ समग्र रूप से संपन्न माना जाता है। जब घर में भोजन सभी लोग मिलकर करते हैं, तो हवन भी सभी को करना चाहिए। आजकल तो बच्चे भी घर पर ही रहते हैं। गुरूकुल में बहुत कम लोग बच्चे भेजते हैं। उनको भी हवन करना चाहिए। हर व्यक्ति को हवन करना चाहिए।
यज्ञ करने से उत्तम मनुष्य का जन्म मिलता है। जो लोग उत्तम मनुष्य बनना चाहते हैं, उन्हें यज्ञ करना अनिवार्य है। आप ईश्वर को कैसा मानते हैं, न्यायकारी या अन्यायकारी? न्यायकारी मानते हैं न। तो न्याय के कुछ नियम हैंः-
पहला नियम- अच्छे कर्म का फल अच्छा, बुरे कर्म का फल बुरा। और सबसे अच्छे कर्म का सबसे अच्छा फल।
दूसरा नियम- कर्म नहीं, तो फल नहीं।
तीसरा नियम- जो व्यक्ति कर्म करे, उसी को फल।
चौथा नियम है- पहले कर्म, बाद में फल।
पाँचवाँ नियम- कर्म करेगा, तो फल अवश्य मिलेगा।
सारे प्राणियों में से सबसे अच्छा प्राणी कौन? मनुष्य। मनुष्यों में भी उत्तम कौन? अच्छे विद्वान्, धार्मिक माता-पिता के घर जन्म मिलना। तो सबसे अच्छा फल हुआ- ‘उत्तम मनुष्य जन्म’। यहाँ एक बात तो पकड़ में आ गई, कि नियम कहता है कि- सबसे अच्छे कर्म का, सबसे अच्छा फल। सबसे अच्छा फल है- ‘उत्तम मनुष्य जन्म’। यदि सबसे अच्छा फल प्राप्त करना हो, तो कर्म कैसा करना होगा? ‘सबसे अच्छा’।
सबसे अच्छा कर्म क्या? ‘यज्ञ करना।’ कैसे? अच्छा तो आप ही बताइये। मैं कुछ अच्छे कर्मों का उदाहरण देता हूँ। (क( किसी को भोजन खिलना। (ख( पानी पिलाना। (ग( वस्त्र दान करना। (घ( शु( वायु देना। इनमें से सबसे अच्छा कर्म कौन सा है? शु( वायु देना। शु( वायु दी जाती है, यज्ञ करने से। इस प्रकार से सबसे अच्छा कर्म हुआ- यज्ञ करना। तो बात समझ में आ गई, कि अगर उत्तम मनुष्य बनना हो, तो सबसे अच्छा कर्म करना होगा। सबसे अच्छा कर्म है- यज्ञ करना। इसलिए मैंने कहा था, जो यज्ञ करेगा वो मनुष्य बनेगा। इसके अतिरिक्त मन की शु(ि, त्याग की भावना, संगठन, अनुशासन की वृ(ि, प्रेम, बड़ों का सम्मान करने की भावना की वृ(ि इत्यादि अनेक लाभ यज्ञ करने से होते हैं।

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