इसका उत्तर है कि- जितना लंबा उपदेश आज गीता में उपलब्ध है, यह सारा का सारा उपदेश श्रीकृष्ण जी का नहीं है। और व्यावहारिक दृष्टि से यु( के मैदान में इतना लंबा उपदेश संभव भी नहीं है। महाभारत में मूल श्लोक दस हजार थे, और आज मिलते हैं- एक लाख। नब्बे हजार श्लोंको की तो महाभारत में मिलावट है। और महाभारत के ही एक हिस्से का नाम गीता है। गीता कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है, अलग पुस्तक नहीं है। देखिये महाभारत के अंदर अठारह भाग हैं। इन भागों को ‘पर्व’ नाम से कहा गया है। अठारह पवरें में एक छठा पर्व है, जिसका नाम है- ‘भीष्म पर्व’। इस भीष्म पर्व के अठारह अध्यायों का नाम गीता है। जब महाभारत में इतनी मिलावट है, तो गीता में भी उतने ही प्रतिशत (परसेन्ट( मिलावट गिन लो। जब वहाँ दस हजार के एक लाख श्लोक हो गये, मतलब उससे नौ गुनी मिलावट हो गई, तो गीता में भी नौ गुनी मिलावट है। अब जितने श्लोक आजकल गीता में मिलते हैं। उनका दस प्रतिशत निकाल लो, कितना हुआ? साठ-सत्तर श्लोक बनेंगे। बस असली गीता इतनी ही थी। साठ-सत्तर श्लोक का उपदेश था, और वो पन्द्रह-बीस मिनट में हो सकता है। श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को भ्रांति होने पर पन्द्रह -बीस मिनट का उपदेश दिया, उसका दिमाग ठीक हो गया, और उसने कहा- लाओ मेरा गांडीव धनुष, मैं अभी कौरवों को ठीक करता हूँ। हो गई गीता पूरी। और कुछ नहीं है। बाकी सब बाद की मिलावट है, यानि प्रक्षेप है।
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sorry we dont have
Haven’t any pandits filtered it?it is very popular Book and anyone must have to Filter it.
There are so many commentaries on it
You may refer of Swami Sampurnanand ji etc
O site owner where should i found it ….any link …..
You may but it from vedicbooks.com