आध्यात्मिक क्षेत्र में कोई श्र(ालु व्यक्ति अपने गुरूजी में बहुत श्र(ा रखता है, उनके वचनों का पालन करता है, उनको आदर्श मानता है। गुरूजी जो कहते हैं, वह श्र(ालु व्यक्ति उसको मानता है। ऐसा हो सकता है। परन्तु इस प्रक्रिया में श्र(ालु का मन रहेगा उसी के आधीन। गुरूजी पर श्र(ा होने के कारण, वह अपने मन को उनके निर्देशानुसार चला देगा।
इस प्रक्रिया में गुरूजी का आत्मा उनके अपने शरीर में और श्र(ालु का आत्मा उसके अपने शरीर में ही रहेगा। दोनों आत्माएँ अलग-अलग शरीर में रहेंगी। इसी प्रकार से एक आत्मा दूसरे के मन को नियंत्रित करके कुछ-कुछ तो चला सकता है पर पूरी तरह से नहीं। क्योंकि प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र है। और प्रत्येक व्यक्ति का मन पूरा-पूरा आत्मा के आधीन है, दूसरे के आधीन नहीं। जैसे सेनाधिकारी का आत्मा, सेनाधिकारी के शरीर में रहेगा, सैनिक के शरीर में नहीं घुस जाएगा। दोनों का आत्मा अलग-अलग है। दोनों का आत्मा अपने-अपने शरीर में रहेगा। केवल निर्देश से, संकेत से वो दूसरे व्यक्ति का थोड़ा सा नियंत्रण कर सकता है, लेकिन पूरा नियंत्रण नहीं कर सकता।